चारा घोटाले में लालू पर लगे आरोप गलत
रांचीः जबलपुर हाइकोर्ट के वरीय अधिवक्ता सुरेंद्र सिंह ने चारा घोटाले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का पक्ष पेश करते हुए कहा कि बिहार के तत्कालीन पशुपालन मंत्री रामजीवन सिंह ने सीबीआइ जांच की अनुशंसा की थी. पर, मुख्य सचिव ने कहा था कि 26 हजार रुपये की गड़बड़ी की जांच सीबीआइ […]
रांचीः जबलपुर हाइकोर्ट के वरीय अधिवक्ता सुरेंद्र सिंह ने चारा घोटाले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का पक्ष पेश करते हुए कहा कि बिहार के तत्कालीन पशुपालन मंत्री रामजीवन सिंह ने सीबीआइ जांच की अनुशंसा की थी. पर, मुख्य सचिव ने कहा था कि 26 हजार रुपये की गड़बड़ी की जांच सीबीआइ नहीं करेगी. इसलिए सीबीआइ को जांच नहीं दी गयी. उन्होंने सदन में भी सीबीआइ जांच का गलत आश्वासन नहीं दिया था. इसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद की ना तो कोई गलती है, ना ही साजिश.
चारा घोटाले के कांड संख्या आरसी 20ए/96 में सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश पीके सिंह की अदालत में अधिवक्ता सुरेंद्र सिंह ने कहा कि सीबीआइ ने उनके मुवक्किल पर यह आरोप लगाया है कि उन्होंने सुनियोजित साजिश के तहत तत्कालीन पशुपालन मंत्री रामजीवन की अनुशंसा नहीं मानी. मंत्री द्वारा सीबीआइ जांच की अनुशंसा के बाद मुख्यमंत्री ने रामजीवन सिंह को पशुपालन विभाग से हटा दिया. सीबीआइ का यह आरोप गलत है. यह पूरा मामला महालेखाकार(एजी) की उस रिपोर्ट से संबंधित है जिसमें स्कूटर,जीप, कार आदि पर गाय,भैंस आदि ढोने की बात कही गयी थी.
एजी ने अपनी रिपोर्ट प्रमंडलीय आयुक्त, पशुपालन सचिव को भेजी थी. इस रिपोर्ट के आधार पर पशुपालन विभाग ने क्षेत्रीय निदेशक(पशुपालन) को यह निर्देश दिया कि वह एजी द्वारा उठाये गये बिंदुओं की विस्तृत जांच कर अपनी रिपोर्ट सरकार को दें. मुख्यालय के निदेश पर इसकी जांच हुई. इसमें यह पाया गया कि पशुपालन विभाग द्वारा दी गई गाय,भैंस आदि लाभुकों को मिले हैं. जांच अधिकारी ने ट्रांसपोर्टर से भी बात की. पाया गया कि उसने भूलवश कुछ गाड़ियों के नंबर गलत लिख दिये थे. इसलिए एजी ने यह आपत्ति की थी. पशुपालन विभाग के वरीय अधिकारियों ने इस पर सहमति जतायी. इसके बाद इस मामले को तत्कालीन मंत्री रामजीवन सिंह के पास भेजा गया. पशुपालन अधिकारियों द्वारा की गयी जांच पर सहमति जताते हुए बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की आशंका जतायी और सीबीआइ से जांच कराने की अनुशंसा की. तब यह फाइल मुख्य सचिव के माध्यम से तत्कालीन मुख्यमंत्री के पास भेजी गयी.
मुख्य सचिव ने अपनी टिप्पणी में लिखा कि गड़बड़ी के इस मामले में सिर्फ 26 हजार रुपये शामिल है. सीबीआइ ने कहा कि वे लोग 26 हजार रुपये की गड़बड़ी की जांच नहीं करेंगे. मुख्यमंत्री ने इस मामले की जांच पुलिस से कराने का आदेश दिया. इसलिए इस पूरे प्रकरण में साजिश रच कर सीबीआइ जांच की अनुशंसा नहीं मानने का आरोप गलत है.
जहां तक तत्कालीन पशुपालन मंत्री रामजीवन सिंह का विभाग बदलने का मामला भी किसी साजिश का परिणाम नहीं है. उस वक्त मंत्रिमंडल का विस्तार होना था. विस्तार के पहले रामजीवन सिंह के पास कई विभाग थे. मंत्रिमंडल में नये मंत्रियों के काम देने के उद्देश्य से रामजीवन सिंह को दिये गये विभाग में कटौती की गयी. सदन में लालू प्रसाद द्वारा सीबीआइ जांच कराने का गलत आश्वासन का आरोप भी गलत है. हकीकत यह है कि विधान परिषद सदस्य कृपानाथ पाठक और शत्रुघ्न सिंह 30 करोड़ की गड़बड़ी के सिलसिले में सवाल उठाये थे और सीबीआइ से जांच कराने की मांग की थी. इसका जवाब पशुपालन विभाग द्वारा तैयार कराया गया था. इसमें कहा गया था कि सरकार किसी भी एजेंसी से जांच कराने को तैयार है. फिलहाल लोक लेखा समिति इसकी जांच कर रही है.
एक ही मामले में एक साथ कई जांच नहीं की जा सकती. समिति की रिपोर्ट का इंतजार करना होगा. समिति ने क्षेत्रीय निदेशक पशुपालन को निदरेष करार दिया था. इसलिए इस मामले में भी लालू प्रसाद की कोई संलिप्तता नहीं है.