””जिस ओर जवानी चलती है उस ओर जमाना चलता है””

– हरिवंश – यह याद दिलाने की जरूरत नहीं कि चिंगारी ही दावानल बनती है. ‘ 74 के जिस छात्र आंदोलन ने कांग्रेस को पहली बार अपदस्थ किया, उसकी चिंगारी छात्रों ने ही सुलगायी. गुजरात के मोरवी इंजीनियरिग कॉलेज के छात्रावास के छात्रों ने. मुद्दा था, महंगाई. छात्रावासों में अचानक मेस (भोजनालय) का शुल्क बढ़ा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 20, 2015 7:57 AM
– हरिवंश –
यह याद दिलाने की जरूरत नहीं कि चिंगारी ही दावानल बनती है. ‘ 74 के जिस छात्र आंदोलन ने कांग्रेस को पहली बार अपदस्थ किया, उसकी चिंगारी छात्रों ने ही सुलगायी. गुजरात के मोरवी इंजीनियरिग कॉलेज के छात्रावास के छात्रों ने. मुद्दा था, महंगाई. छात्रावासों में अचानक मेस (भोजनालय) का शुल्क बढ़ा दिया गया. इंजीनियरिंग के प्रतिभाशाली छात्र बैठे.
संवाद हुआ कि अचानक शुल्क क्यों बढ़ा? हमारे परिवार के लोग कैसे यह बढ़ा खर्च देंगे? छात्र जब तह में गये, तो पता चला कि महंगाई के पीछे भ्रष्टाचार और कुशासन है. चिमनभाई पटेल, तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे. तब नारा लगा ‘चिमन चोर गद्दी छोड़.’ नवनिर्माण आंदोलन की नींव गुजरात में पड़ी. जेपी ने लेख लिख कर कहा, गुजरात से रोशनी मिली है. यह भी बुनियाद में है, जेपी आंदोलन के.
इसलिए हर मामूली प्रयास में बड़ी संभावनाएं छिपी होती हैं. इसलिए झारखंड के छात्रों को खड़ा होना चाहिए. हर रोज छात्र, किसी न किसी ‘इश्यू’ पर सड़क पर उतरते हैं. क्या वे रांची वीमेंस कॉलेज की छात्रा के साथ हुए बलात्कार के खिलाफ चुप रहेंगे? झारखंड में छात्र राजनीति की बुनियाद, कॉलेजों-विश्वविद्यालयों में पड़ रही है. छात्रसंघ के चुनाव होनेवाले हैं, इससे बड़ा मुद्दा भावी छात्र नेताओं के लिए दूसरा और क्या है? शुरुआत रांची वीमेंस कॉलेज की छात्राएं करें. वे शालीनता से एक मेमोरंडम तैयार करें. इसमें भुक्तभोगी छात्रा द्वारा हाइकोर्ट को लिखे पत्र के अंश हों. फिर अंत में सिर्फ दो मांगें. 1. बलात्कारी और गाड़ी, एक निश्चित अवधि में पकड़े जायें. 2. हर गाड़ी से काला शीशा, पूरे राज्य में हटे.
इसके बाद राज्य के हर वीमेंस कॉलेज या अन्य कॉलेजों में छात्र-छात्राएं सभाएं करें. और यही मेमोरंडम अपने-अपने जिले में पुलिस अधीक्षक को दें. शालीनता से. संयम से. बिना परेशान, बेचैन या उग्र हुए. कॉलेज में जो सभाएं हों, उनमें बतायें कि क्या स्थिति है राज्य में? बतायें कि राजधानी की सड़क से लड़की उठा ली जाती है? मां, बहन और बेटी को हम राजधानी में सुरक्षित नहीं रख सकते?
एक सप्ताह तक हर कॉलेज में सभाएं हों. पुलिस को सिर्फ इन दो मांगों का एक मेमोरंडम दिया जाये. पूरे राज्य में एक जैसा मर्म और मांग. गांधीवादी तरीके से एक नया माहौल बनेगा. छात्र आंदोलन में ही हमने नारा सुना,’जिस ओर जवानी चलती है, उस ओर जमाना चलता है.’
झारखंड की जवानी, झारखंड की गरिमा के लिए खड़ी भर हो जाये, तो देखिए क्या होता है? इतिहास युवा बदलते हैं. पुराणों में भी यही है. नचिकेता और ध्रुव क्या थे? बालक. संकल्प और कर्म ने उन्हें अमर बना दिया. अध्यात्म देखिए. बुद्ध ने जब ‘महाभिनिष्क्रमण’ किया, तो वे बूढ़े, अधेड़ या वयस्क नहीं, युवा थे. शंकर जब धर्म स्थापना करने के लिए निकले, तो वे क्या थे? युवा. विवेकानंद कौन थे? युवा, जिन्होंने गुमनाम देश को अमर बना दिया. युवा कृष्ण ने अत्याचारी कंस का वध किया. भारत की आजादी दिलाने में युवकों की भूमिका अमर है. भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, तब घर-घर के नायक थे. धींगड़ा, खुदीराम बोस जैसे लोग घर-घर पूजे गये. बिहार सेक्रेटेरिएट के बाहर जिन शहीदों की प्रतिमा है, वे कौन थे? युवा विद्यार्थी. एक-एक कर गोली खाते गये, पर झंडा न गिरने दिया. फहरा डाला. 1942 में बलिया को 15 दिन आजाद करनेवाले कौन थे? युवा विद्यार्थी .
पुराने प्रसंगों को छोड़ भी दें, तो 67 के जिस छात्र आंदोलन ने भारतीय राजनीति में प्रभावी हस्तक्षेप किया, वह कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में शुरू हआ. बल्कि दुनिया को भी पेरिस स्थित मशहूर सोरोबान विश्वविद्यालय में शुरू युवा आंदोलन ने झिंझोड़ा था. ‘ 75 के दशक में पढ़ते हुए हम छात्र भी यही नारा लगाते थे. सच कहना, अगर बगावत है, तो समझो हम भी बागी हैं. फिर आंदोलन से ही यह नारा उभरा. ‘फाइट टू रीड एंड रीड टू चेंज’ (पढ़ने के लिए लड़ो और बदलाव के लिए पढ़ो).
इन्हीं युवाओं ने सूचना क्रांति में अपने काम-प्रतिभा से भारत को नयी महाशक्ति बनाने के रास्ते पर डाला है. युवाओं के बारे में कहावत भी है, लीक छाड़ि तीन चलें, शायर, सूरमा और सपूत. खुद झारखंड में, अलग झारखंड आंदोलन को आजसू समेत जिन युवा नेताओं ने गति दी, वह उल्लेखनीय है.
इस तरह हर कॉलेज विश्वविद्यालय में सभाएं हों. सभाओं में एक और कदम पर गौर करें. हर कॉलेज में, छात्रों का एक ग्रिवांस सेल (शिकायत प्रकोष्ठ) बनायें, ताकि हर छात्र अपनी परेशानी वहां दर्ज कराये. इस तरह छात्र-छात्राओं की गंभीर परेशानियां सार्वजनिक होंगी. छात्र नेता, हर सभा में अपनी बात खत्म करने से पहले पास्तर मार्टिन निमोलर की यह कविता जरूर सुनायें.
यह कविता नाजी शासन में लिखी गयी. नाजियों के खिलाफ जो लोग खड़े हुए , उन्हें हिटलर की पुलिस-फौज पकड़ ले जाती थी. दूसरे लोग चुप रहते थे कि हम सुरक्षित हैं. पड़ोसी पकड़ा गया, तो क्या? अंतत: कोई बचा नहीं. यही अर्थ है, कविता का.
‘पहले वे (नाजी) कम्युनिस्टों के लिए (पकड़ने) आये.
पर मैं चुप रहा, क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था.
वे फिर यहूदियों के लिए (पकड़ने) आये.
तब भी मैं खामोश रहा, क्योंकि मैं यहूदी नहीं था.
वे फिर ट्रेड यूनियनों के लिए (पकड़ने) आये
फिर भी मैं ,खामोश रहा, क्योंकि मैं ट्रेड यूनियनिस्ट नहीं था.
वे फिर कैथोलिक के लिए आये.
फिर भी मैं खामोश रहा, क्योंकि मैं प्रोटेस्टेंट था.
तब वे मुझे पकड़ने आये
और तब तक, कोई बचा नहीं था, जो मेरे लिए आवाज उठा सके’
मर्म यह है कि ऐसी चीजों के खिलाफ हम खड़े नहीं होंगे, तो हम भी इसके शिकार होंगे.
अगर छात्रों ने यह मामूली पहल कर दी, तो झारखंड से निराशा हटेगी. अंतत: काले शीशों, काली करतूत, काले चेहरों व काले परदों के खिलाफ खड़ा होना, नये तैमूरलंगों, पिंडारियों और चंगेजों के खिलाफ खड़ा होना होगा.
इस आंदोलन को गति देने में महिला संगठनों की निर्णायक भूमिका हो सकती है. इस राज्य में अनेक बहादुर महिलाएं हैं. मालंच घोष, चाइना मैत्रा, प्रभा तिवारी, रोज केरकेट्टा, कुमुद जी, कनक जी, वासवी, दयामनी बरला वगैरह. अगर ये महिला संगठन और ये महिलाएं, इस सवाल पर एक मंच पर आयें, तो चमत्कार हो सकता है.
झारखंड की जड़ता-ठहराव में गति आ सकती है. ये महिला संगठन, मिल कर राज्य सरकार को दो मांगों का प्रतिवेदन दें (बलात्कारी तुरंत पकड़े जायें. गाड़ी भी. (2) किसी गाड़ी में (बगैर भेदभाव के) काला शीशा न हो, अगर मोहल्ले-मोहल्ले महिला संगठन की सक्रिय महिलाएं सभाएं कर लोगों की जड़ता तोड़ने का प्रयास करें, तो झारखंड देश के लिए एक उदाहरण बनेगा.
हर राजनीतिक दल में बड़ी संख्या में अच्छे लोग हैं. उनकी अलग पीड़ा है. अच्छे कार्यकर्ताओं-नेताओं को धकिया कर गलत लोग कमांड में हैं. हर दल में इन राजनीतिक दलों के बहुसंख्यक, अच्छे, ईमानदार और समर्पित जमीनी कार्यकर्ताओं को छात्र पहल कर अपने साथ जोड़ें. अंतत: राजनीति ही बदलाव लाती है.
और बुद्धिजीवी भी कारगार हो सकते हैं. यह दुखद है, पर सही है. जिस मध्य वर्ग ने या बुद्धिजीवी तबके ने हर मोड़ पर इतिहास बदला है. क्रांतियों की अगुवाई की है, वह वर्ग आज भारत-झारखंड में या तो भोग में डूबा है या तटस्थ है. कुछेक बेचैन हैं, पर बिखरे और अलग-थलग. कुछ ऐसे हैं, जिन्हें विनोबा जी ने ‘इंद्रियजीवी’ कह कर विभूषित किया.
पर यह वर्ग सूत्रधार रहा है, इतिहास को दिशा व गति देने में. लेखक, कवि, साहित्यकार, प्रतिबद्ध राजनीतिक कार्यकर्ता और प्रेस. अगर इनमें मामूली सुगबुगाहट हो, तो झारखंड का अंधेरा छंटेगा. और सबके ऊपर हम सब नया समाज चाहते हैं, तो करने के लिए मौसम नहीं, मन चाहिए.
दिनांक : 18-07

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