स्तब्धकारी !

– हरिवंश – झारखंड से जुड़े नेताओं या झारखंड में हुए भ्रष्टाचार के प्रसंग में ही देश भर में छापे. कई राज्यों के आठ शहरों में छापे चले/चल रहे हैं. शायद ही कभी किसी एक राज्य की राजनीति से जुड़े इतने लोगों के यहां एक साथ इतने छापे पड़े हों. इस तरह नौ वर्ष में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 9, 2015 8:20 AM
– हरिवंश –
झारखंड से जुड़े नेताओं या झारखंड में हुए भ्रष्टाचार के प्रसंग में ही देश भर में छापे. कई राज्यों के आठ शहरों में छापे चले/चल रहे हैं. शायद ही कभी किसी एक राज्य की राजनीति से जुड़े इतने लोगों के यहां एक साथ इतने छापे पड़े हों. इस तरह नौ वर्ष में ही झारखंड ने देश में रिकार्ड बना दिया. सूचना है कि इस छापे में आयकर के कई दर्जन लोग थे. आयकर ने प्रवर्तन निदेशालय के कुछेक अफसरों से भी मदद ली. इससे मामले की गंभीरता साफ है. एक साथ इतने छापे यह भी बताते हैं कि बात (भ्रष्टाचार) कितनी बढ़ गयी थी.
छापे जिस वर्ग के लोगों के यहां पड़े, वह भी दिलचस्प है. राजनीति, मीडिया, उद्योग से जुड़े लोगों के यहां छापे. जानेमाने बिचौलियों के यहां भी. इनमें से अनेक की शुरुआत झारखंड बनते समय हुई थी. हैसियत लगभग सामान्य से नीचे. पर झारखंड बनने के बाद इनमें से कई करोड़पति, अरबपति हो गये. सत्ता में आने के पहले गांव, शहर से बाहर नहीं निकले थे, पर गद्दी पाते ही पूरी दुनिया में पसर गये. अर्थशास्त्र के किस गणित या ग्रोथ मॉडल से ? यह समाज नहीं जानता. कानून को भी शायद इसी की तलाश है.
इन छापों के राजनीतिक अर्थ निकाले जायेंगे. पर सच यह है कि इस देश के प्रधानमंत्री अत्यंत ईमानदार हैं. दो माह पहले उन्होंने सीबीआइ, इनकम टैक्स, आइबी वगैरह के अफसरों को संबोधित किया. दिल्ली में. भ्रष्टाचार उन्मूलन के खिलाफ यह आयोजन था.
प्रधानमंत्री ने आला अफसरों से साफ-साफ कहा, भ्रष्टाचार की बड़ी मछलियों को पकड़ें. यह अखबारों में सुर्खियों में छपा. आयकर से लेकर हर विभाग में ईमानदार अफसरों की बहुतायत है. छापों को देख कर लगता है कि आयकर के अफसरों ने टीम बना कर काफी दिनों तक इसकी तैयारी की होगी. क्योंकि इतने छापे एक साथ, एक दिन नहीं डाले जा सकते.
वह भी देश के अलग-अलग हिस्सों में. साफ है, इसकी तैयारी महीनों-महीनों पहले से चल रही होगी. एक-एक तथ्यों को आयकर अफसरों ने जुटाया होगा, तब जाकर यह संभव हुआ होगा. इसलिए इन छापों का राजनीतिक अर्थ निकालना या चुनाव की राजनीति को दोष देना भारी भूल होगी.
ये छापे शुद्ध रूप से गैरकानूनी कामों के परिणाम हैं. झारखंड में कानून का राज नहीं रह गया था. बेधड़क सरकारी फैसले और निर्णय खरीदे और बेचे जाते थे. यह एक-एक बात दिल्ली तक पहुंच रही थी. खुद आयकर के तत्पर अफसर इन पर निगाह रख रहे होंगे, यह अब स्पष्ट हो गया है. खुद कांग्रेस के अजय माकन ने कोड़ा सरकार की कारगुजारियों को ऊपर तक पहंचाया. कांग्रेस के लगभग सभी सांसद, कोड़ा सरकार के खिलाफ थे.
सांसद बागुन सुम्ब्रुई ने तो कई गंभीर आरोप लगाये. खुद केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने इन पूर्व मंत्रियों के खिलाफ अनेक चीजें कही. सार्वजनिक तौर पर. दिल्ली के सत्ता दरबार में भी उन्होंने बताया होगा. उधर भारत सरकार के अनेक सचिव यहां की बात प्रधानमंत्री से लेकर सबको बता ही रहे थे. पर राज्य के कांग्रेसी, कोड़ा सरकार के घोर समर्थक थे.
कारण सब जानते हैं. इस तरह कांग्रेस का एक बड़ा तबका इस भ्रष्टाचार से लाभान्वित और इसमें साझीदार भी था. इसलिए इस हालात की जिम्मेदारी से भी कांग्रेस बच नहीं सकती. झारखंड को लॉलेस (कानून रहित) और सबसे भ्रष्ट राज्य बनाने का श्रेय मधु कोड़ा सरकार को है, जो कांग्रेस, झामुमो और राजद के समर्थन से चली. इस भ्रष्टाचार ने झारखंड को न्यूनतम 50 वर्ष पीछे धकेल दिया. कैसे? आज पूरा देश, झारखंड की यह घटना जान कर स्तब्ध है.
इस भ्रष्टाचार ने जिस राजनीतिक अपसंस्कृति को जन्म दिया है, उसमें नैतिक राजनीति की गुंजाइश ही नहीं बची. धूर्तता, तिकड़म, बिचौलिया, यही लोग आज की राजनीति में आगे आ सकते हैं. यहां राजनीति में कंपीटेंट (योग्य) व विजनरी लोगों की जरूरत है, पर आ रहे हैं इनकंपीटेंट (अयोग्य, अनैतिक, काले धनवाले). टाइम पत्रिका ने राजनीतिज्ञों के बारे में लिखा था कि राजनीतिज्ञ को जनविश्वास के अनुरूप नैतिक सत्ता बनानी होगी.
एक विदेशी सेनापति सर डेनिस ब्याड ने कहा था, सत्ता हमेशा भ्रष्ट करती है, पर इसे उच्चस्तरीय सेवा का माध्यम समझा जाये, तो हालात बदलते भी हैं. पर झारखंड की राजनीति तो आत्मसेवा के लिए थी. एक उर्दू शेर है, जिसका अर्थ है, शराब का नशा मदहोश करता है, पर सत्ता का नशा तो बढ़ता ही जाता है. यह सत्ताधारी को कब्जे में करता है और अंतत: उसी में डुबो देता है.
झारखंड की सत्ता में ये सभी पात्र (जिनके यहां छापे पड़े) सत्ता नशे में डूब गये थे. इन्हें लगता था, ये अजर-अमर हैं. पैसे से कुछ भी कर सकते हैं. इसलिए गांधी ने कहा था, धर्म रहित कोई राजनीति नहीं होती. राजनीति, धर्म की सेवा करती है. धर्म रहित राजनीति मौत का कुआं है.
और यह आत्मा को भी मार डालता है. धर्म से उनका अर्थ, मनुष्य के उदात गुणों और लक्षणों से रहा होगा. झारखंड की राजनीति के मूल में सिर्फ धूर्तता थी. जिधर अधिक पैसे, उधर पासा पलटो. यही दर्शन था. इसका हश्र यही होना था. यह साधन और साध्य का गणित है. रासायनिक फार्मूले की तरह. जिस तरह बेखौफ लूट हो रही थी, उसके परिणाम हैं, छापे. लोभ, लालच और सत्ता मद ने इनकी आत्मा को मार डाला था.
इन छापों की खबर सुन कर झारखंड गठन का दौर याद आया. 15 नंवबर को बिहार से झारखंड अलग हुआ था. विकास के लिए. कुव्यवस्था- अव्यवस्था के अंत के लिए. आदिवासियों-गरीबों के कल्याण के लिए. पशुपालन घोटाला झारखंड में हुआ. तब बिहार का दौर था.
अब झारखंड बने नौ वर्ष हो रहे हैं. नौ वर्षों में झारखंड का जितना शोषण हुआ, वह शायद कभी न हुआ हो. शायद यह झारखंड-धरती बनने से अब तक. इस गरीब राज्य से बड़े पैमाने पर पूंजी देश-विदेश गयी. निवेश के लिए. कई-कई हजार करोड़ की पूंजी. और यह सब किया किसने? धरतीपुत्रों ने. क्या झारखंड की राजनीति में ऐसे तत्वों के खिलाफ झारखंड की मिट्टी से यह आवाज उठेगी? क्या झारखंड की धरती के युवा, शोषक बने धरती पुत्रों के खिलाफ उतरेंगे?
यह सवाल ही झारखंड का भविष्य तय करेगा. झारखंड में चुनाव होने हैं. चाहें या न चाहें, इस चुनाव में भ्रष्टाचार ही सबसे निर्णायक मुद्दा बनना चाहिए या बनेगा. देश में जब-जब भ्रष्टाचार मुद्दा बना है, राजनीति पलटी है.
चाहे 1974 में गुजरात में चिमन चोर का नारा लगा हो. तब या ’74 में जब भ्रष्टाचार राष्ट्रीय मुद्दा बना हो. ’74 में चिमन भाई पटेल गुजरात के मुख्यमंत्री थे. बेतहाशा महंगाई बढ़ी (आज की अपेक्षा महंगाई अत्यंत मामूली थी). मोरवी इंजीनियरिग कॉलेज के छात्र इस महंगाई के खिलाफ कूद पड़े. आंदोलन हुआ. जेपी ने उस युवा आंदोलन में एक नयी रोशनी देखी. फिर ’77 का बदलाव.
फिर ’89 में बोफोर्स मुद्दा बना. वह भी महज 65 करोड़ का मामला था. झारखंड का भ्रष्टाचार कई हजार करोड़ का है. अगर यहां की राजनीति में विचार और मुद्दे जीवित हैं, तो भ्रष्टाचार ही चुनाव में निर्णायक मुद्दा बनेगा. जरूरत है गांव-गांव, घर-घर तक इन नेताओं के भ्रष्टाचार के संदेश फैले? जनता अपने नेताओं से पूछना शुरू करे कि आपकी हैसियत और संपत्ति में अचानक ये बढ़ोत्तरी कहां से और कैसे? जनता की नफरत और घृणा से ऐसे नेता सबक लें, यह होना चाहिए.
भ्रष्टाचार, देशद्रोह जैसा ही गंभीर मामला है. इससे झारखंड में गरीबों के भविष्य की हत्या हो रही है. गरीब और गरीब बन रहे हैं. जो पुल-पुलिया बन रहे हैं, वे बनते ढह रहे हैं. अरबों के पुल-पुलिया गायब हो रहे हैं. करोड़ों -करोड़ की सड़क चोरी चली जा रही है.
यानी सिर्फ कागज पर ही काम हो रहे हैं. यहां मंत्री खुलेआम कहते थे कि यहां उपस्थित सरकारी कर्मचारियों में से कोई बताए जिसका पैसा लेकर हमने काम नहीं किया? यह अहंकार और दर्प था, मंत्रियों का. जिस संविधान और कानून की शपथ लेकर पद पर बैठे, उसी की जड़ खोद रहे थे. उसी की हत्या कर रहे थे. इन भ्रष्ट तत्वों ने पूरी नौकरशाही को अशक्त और पंगु बना दिया था. मीडिया के लोगों को भी अपने चंगुल में लिया.
प्रभात खबर झारखंड बनने के बाद से ही लगातार ऐसे मुद्दे उठा रहा था. पत्रकारिता के प्रति अपने पवित्र फर्ज के तहत. 2000 से 2006 तक की सरकारों ने इसके लिए प्रभात खबर को क्षति भी पहुंचाई. पर कोड़ा सरकार बनने के पहले ही, प्रभात खबर ने लगातार लिखा कि झारखंड के साथ यह प्रयोग सबसे महंगा होगा. आत्मघाती होगा. क्योंकि निर्दलीयों का कोई दर्शन नहीं था. इनकी इधर से उधर पलटने की कलाबाजी ने साफ कर दिया था कि ये क्या चाहते हैं? फिर भी इनकी सरकार बनवायी गयी और आज देश उसका नतीजा देख रहा है.
कोड़ा सरकार बनने के बाद भी लगातार प्रभात खबर इनकी कारगुजारियों को उजागर करता रहा. विधानसभा में मामले उठे भी. पर राज्य सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं होने दी. लगातार प्रभात खबर में वे सारे दस्तावेज छपे, जिनकी आज पुष्टि हो रही है. कैसे देश और विदेश में संपत्ति बनायी जा रही थी?
मुख्यमंत्री का आवास रात दस बजे के बाद तिजारत का केंद्र बन जाता था. यह सवाल पूछा जाना चाहिए, कांग्रेस, राजद और झामुमो के विधायकों- राज्य के नेताओं से कि वे कैसे इस तरह की सरकार का समर्थन वे कर रहे थे? इसकी क्या कीमत थी या मजबूरी थी?
अगर प्रभात खबर में छपे दस्तावेजों पर विधानसभा ने या झारखंड की सरकार ने कार्रवाई की होती या कोड़ा सरकार के समर्थक घटकों ने जांच का दवाब डाला होता, तो आज झारखंड का इतना धन बाहर न गया होता. धन ही महत्वपूर्ण नहीं है. भ्रष्टाचार की संस्कृति को झारखंड में मजबूत बनाने का काम, सबसे अधिक कोड़ा सरकार ने किया. कुछ ही दिनों पहले कोड़ाजी प्रभात खबर में छपी बातों को झुठला चुके थे. उनका यह प्रेस कांफ्रेंस कई जगहों पर टीवी ने दिखाया. खबरें भी छपी.
खुद प्रभात खबर ने विस्तार से छापा. मीडिया अगर कोड़ाजी के प्रभात खबर पर गुस्से को दिखाने के बदले प्रभात खबर में उठाये गये सवालों की छानबीन कर लेती, तब भी बहुत चीजें पता चलतीं. यह प्रभात खबर का सवाल नहीं था. राज्य का सवाल था. अगर पूरी मीडिया इन सवालों पर एक मंच पर खड़ी होती, तब भी झारखंड लुट जाने से बचता. उससे भी अधिक झारखंड में यह लोभ और दलाली की संस्कृति मजबूत नहीं होती. इस घटना के बाद, शायद हम मीडिया के लोग भी एक मंच से जनता के सवालों पर साथ खड़े हों.
1925 में महात्मा गांधी ने कहा था,’भ्रष्टाचार रूपी राक्षस पर रोक नहीं लगी, तो यह देश को गंभीर नुकसान पहंचायेगा.’ इन आसन्न राज्य विधानसभा चुनावों में क्या लोकसभा में सर्वसम्मत से तय यह प्रस्ताव मुद्दा बनेगा-
‘और विशेष तौर से, सभी राजनीतिक दल ऐसे सभी कदम उठायेंगे, जिससे हमारी राजनीति को अपराधीकरण या इसके प्रभाव से बचाने का लक्ष्य हासिल किया जा सके’. (31 अगस्त 1997 को स्वतंत्रता प्राप्ति की स्वर्ण जयंती के अवसर पर लोकसभा के विशेष सत्र में स्वीकार किये गये प्रस्ताव से)
अंगरेजी के ‘सी’ अक्षर से शुरू होनेवाले तीन शब्द – करप्शन (भ्रष्टाचार), क्रिमनलाइजेशन (अपराधीकरण) और कास्टीज्म (जातीयता)/कम्यूनलाइजेशन (संप्रदायिकता) आज देश और राज्य को खोखला कर रहे हैं. क्या इन चुनावों में झारखंड की जनता इन सवालों के जवाब को ढ़ूंढ़ेगी?
दिनांक : 01-11-09

Next Article

Exit mobile version