प्रत्याशा के विपरीत, पर स्वागत योग्य!

– हरिवंश – झारखंड के मौजूदा राजनीतिक प्रकरण का ऐसा व्यवस्थित, संयमित और मर्यादित पटाक्षेप! किसी को यकीन नहीं था. पर इसका स्वागत करिए. आज झारखंड के लोकतंत्र में परिपक्वता झलकी. प्रत्याशा थी कि विधायक, सदन में अशोभनीय हरकत करेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ. यह आशंका थी कि विधानसभा स्पीकर तीन निर्दलीय लोगों के खिलाफ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 10, 2015 7:40 AM
– हरिवंश –
झारखंड के मौजूदा राजनीतिक प्रकरण का ऐसा व्यवस्थित, संयमित और मर्यादित पटाक्षेप! किसी को यकीन नहीं था. पर इसका स्वागत करिए. आज झारखंड के लोकतंत्र में परिपक्वता झलकी. प्रत्याशा थी कि विधायक, सदन में अशोभनीय हरकत करेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ.
यह आशंका थी कि विधानसभा स्पीकर तीन निर्दलीय लोगों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे, पर यह भी नहीं हुआ. पुन: उल्लेख करना जरूरी है कि स्पीकर को कानूनन ऐसा करने का हक था, पर जिस ताबड़तोड़ तरीके से इन निर्दलीय विधायकों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई, उससे मंशा-नीयत के सवाल खड़े हुए. ऐसी कार्रवाई देश में कई जगहों पर कई बार हुई है.
और यह सब कांग्रेसी संस्कृति का प्रतिफल है. फिर भी इसका दुहराव झारखंड में नहीं हुआ. यह अच्छी चीज है. अंतत: ऐसे सवालों पर होना यह चाहिए (यह निजी और व्यक्तिगत धारणा है) कि जनता तय करे. अगर जनता ने ऐसे प्रत्याशी चुने हैं, जो गलत काम करते हैं, तो उसकी कीमत भी जनता ही चुकाये, ताकि भविष्य के लिए जनता भी सबक सीखे.
एक बात याद रखने योग्य है कि कायर समाज, आत्मकेंद्रित लोग और मूकदर्शक नागरिक, सिर्फ दूसरों से कानून लागू करवा कर अपनी आजादी की हिफाजत की अपेक्षा रखते हैं, यह नहीं होता. बेहतर और सभ्य समाज बनाने की कीमत हर एक को चुकानी पड़ती है. इस दृष्टि से झारखंड स्पीकर इंदरसिंह नामधारी ने जनता को ही जनता का सौगात लौटा दिया है. जब अवसर मिले, जनता ऐसे पात्रों के कर्म याद रखे.
सुबह से ही रांची में ऐसा दृश्य था, मानो कोई बड़ी घटना होनेवाली है. स्कूल बंद. पुलिस चौकसी. लोकतंत्र में सत्ता परिवर्तन सहज प्रक्रिया होनी चाहिए. राजनीतिक मतभेद निजी कटुता में न बदले. ‘स्पोर्ट्समैन स्प्रिट’ (खेल भावना) में पक्ष-विपक्ष को इसे लेना चाहिए. इस दृष्टि से राजग के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने भी मेच्युरिटी (परिपक्वता) का परिचय दिया. शालीनता से उन्होंने अपनी बात कही. इस्तीफे की घोषणा की.
श्री मुंडा का पूरा भाषण या प्रेस कांफ्रेंस में दिया गया बयान, राजनीतिक मुद्दों से भरे हैं. व्यक्तिगत प्रकृति-प्रवृत्ति के सवाल नहीं उठा कर श्री मुंडा ने राजग के भविष्य की राजनीति का संकेत दे दिया है. हालांकि इस्तीफे का यह कदम उन्हें उसी दिन उठा लेना चाहिए था, जिस दिन उनके सहयोगी निर्दल मंत्री साथ छोड़ गये. यह सामान्य परंपरा है कि मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद विपक्ष के दिग्गज सदन में हाथ मिला कर अपना भाव प्रदर्शित करते हैं. झारखंड विधानसभा में यह भी होता, तो बेहतर था.
आज गेंद यूपीए के पाले में थी. अब सत्ता भी यूपीए के पास है. अब यूपीए की परख के दिन हैं. यूपीए के दिग्गजों ने, आज ही जिस तरह मधु कोड़ा का चयन आसानी से (स्मूथली) किया, वह स्वागत योग्य है.
यह एकता, सौहार्द अगर कायम रह सके, तो झारखंड के लिए शुभ होगा. एनडीए की आपसी लड़ाई के सबक यूपीए के लिए मार्गदर्शक बने, यह राज्यहित में होगा. मधु कोड़ा शायद पहले निर्दलीय हैं, जो मुख्यमंत्री बन रहे हैं. यही उनकी कमजोरी भी है और ताकत भी. कमजोरी, इस संदर्भ में कि उनके पास अपना समर्थक दल या विधायक नहीं है.
ताकत, इस संदर्भ में कि अपना दल नहीं, तो अपने दलगत हित नहीं, इसलिए सारे घटकों को समान रूप से सहयोग करने का अवसर हाथ में है. अब यह श्री कोड़ा के कौशल, नेतृत्व क्षमता और विवेक पर निर्भर करता है कि अपने निर्दल होने की कमजोरी या अकेले होने की ताकत, वह किस तरह से संचालित करते हैं. उन्हें कांग्रेस, राजद और झामुमो को एक साथ खुश रखने की बाजीगरी साधनी होगी. साथ ही निर्दलीयों को खुश रखने की कला में भी पारंगत होना पड़ेगा. वह खुद निर्दलीय रहे हैं, इसलिए उन्हें अनुभव होगा.
इंदरसिंह नामधारी के कटु आलोचक भी उनकी योग्यता, हाजिर जवाबी और विद्वता के कायल हैं. उन्होंने स्वत: इस्तीफा देकर सही कदम उठाया है.झारखंड विधानसभा में विपक्ष की कारगर भूमिका में होगा एनडीए. एनडीए में कई विधायक ऐसे हैं, जो अपनी भूमिका से विपक्ष को एक नया अर्थ दे सकते हैं. विपक्ष का अर्थ चीखना-चिल्लाना, शोर मचाना या वाकआउट नहीं है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विपक्ष की धारदार भूमिका सबसे जरूरी है. अर्जुन मुंडा ने विपक्ष के रचनात्मक सहयोग की बात की है, अब इसकी परख होगी.
कुल मिला कर झारखंड में 14 सितंबर को जिस बेहतर माहौल में सत्ता परिवर्तन हुआ, वह प्रत्याशा के विपरीत था, पर स्वागत योग्य है.
दिनांक : 15-09-06

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