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”शौर्य गाथा” : गाथा युद्ध वीरों की

प्रभात खबर द्वारा झारखंड के वीर सैनिकों (गैलेंट्री अवार्ड प्राप्त) पर प्रकाशित पुस्तक ‘शौर्य गाथा’ का विमोचन पांच दिसंबर को किया जायेगा. विमोचन मुख्यमंत्री रघुवर दास मोरहाबादी मैदान स्थित आर्यभट्ट सभागार में करेंगे़ इस पुस्तक में भारतीय सेना के 14 बहादुरों, वीर बांकुरों की यश गाथा और पराक्रम का विवरण है, जिन्होंने हमारे लिए अपना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 5, 2015 12:13 PM

प्रभात खबर द्वारा झारखंड के वीर सैनिकों (गैलेंट्री अवार्ड प्राप्त) पर प्रकाशित पुस्तक ‘शौर्य गाथा’ का विमोचन पांच दिसंबर को किया जायेगा. विमोचन मुख्यमंत्री रघुवर दास मोरहाबादी मैदान स्थित आर्यभट्ट सभागार में करेंगे़ इस पुस्तक में भारतीय सेना के 14 बहादुरों, वीर बांकुरों की यश गाथा और पराक्रम का विवरण है, जिन्होंने हमारे लिए अपना जीवन कुरबान किया. इस मिट्टी के लिए अपनी जवानी और जीवन की आहुति दी़ इनमें कुछ आज भी इसी शिद्दत से कार्यरत हैं. इन्हीं वीर सैनिकों पर पेश है यह रिपोर्ट.

लांस नायक अलबर्ट एक्का : गंगासागर में दिखायी थी वीरता

(27 दिसंबर 1942-3 दिसंबर 1971)

अलबर्ट एक्का का जन्म गुमला जिले के जारी गांव में 27 दिसंबर 1942 में हुआ था. पिता जूलियस एक्का भी सेना में थे. पत्नी का नाम बलमदीना एक्का है़ परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का ने 3 दिसंबर 1971 को भारत-पाकिस्तान के युद्ध के दौरान गंगासागर में बेमिसाल साहस का परिचय दिया. यही लांस नायक अलबर्ट एक्का को वीरगति की प्राप्ति हुई थी़ मरणोपरांत देश का सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. वर्ष 2000 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया गया.

ब्रिगेडियर रवि कुमार (28 अगस्‍त 1943)

रवि कुमार का जन्म दुमका में 28 अगस्त, 1943 को एक संपन्न परिवार में हुआ. पिता सीएस प्रसाद आइपीएस अधिकारी थे. उनकी पढ़ाई रांची के संत जांस स्कूल से हुई. मुजफ्फरपुर (बिहार) के लंगट सिंह कॉलेज से इतिहास में बीए ऑनर्स किया. वह शुरू से ही एनसीसी से जुड़े हुए थे़. रवि कुमार ने आइएमए (इंडियन मिलिट्री एकेडमी) की प्रवेश परीक्षा पास कर सेना में प्रवेश पाया़. 1971 की भारत- पाकिस्तान लड़ाई की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए भारत सरकार द्वारा वीर चक्र से सम्मानित किया गया. उनके परिवार में पत्नी नीलिमा कुमार और दो बेटे हैं.

सिपाही शंकर हेंब्रम (11 जून 1923-12जून 1948)

11 जून 1923 को दुमका प्रांत के छुरीबादा में शंकर हेंब्रम का जन्म हुआ था. परिवार में पिता गोपाल हेंब्रम और माता जितनी सोरेन के अलावा दो वर्ष बड़े भाई जगु हेंब्रम भी थे. 1941 में भारतीय सेना में शामिल हो गये़ दुमका के एक छोटे से गांव से निकलकर न केवल अपना, बल्कि पूरे इलाके का नाम रोशन किया. गुजरात के तटीय इलाकों में दुश्मनों का सामना करनेवाली सेना की टीम में शंकर हेंब्रम भी थे. उम्र 24-25 की होगी. 12 जून 1948 का दिन था. शंकर दुश्मनों के साथ संघर्ष कर रहे थे. इसमें दोनों ओर से लोग मारे जा रहे थे. इसमें शंकर हेंब्रम का कोई अता-पता नहीं चला. शव भी नहीं मिला़. बाद में मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया. वे अविवाहित थे.

लेफ्टिनेंट कर्नल प्रशांत कुमार चटर्जी (20 जनवरी 1939-01 अगस्‍त 1986)

लेफ्टिनेंट कर्नल प्रशांत कुमार चटर्जी झारखंड के मधुपुर (देवघर) के रहनेवाले थे. कर्नल चटर्जी 1962 में चीन और1965, 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में शामिल रहे. इनका जन्म 20 जनवरी 1939 को संपन्न परिवार ‘द चटर्जीज’ में हुआ था. संत जेवियर कॉलेज रांची से आइएससी पास की. वर्ष 1956 में एनडीए की परीक्षा में सफल रहे. 13 दिसंबर 1959 को मराठा सैन्य टुकड़ी 5 की कमान सौंपी गयी. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में वीरता का प्रदर्शन करने के लिए इसी वर्ष 30 दिसंबर को वीर चक्र से सुशोभित किया गया. उनका निधन एक अगस्त 1986 को हुआ.

नायब सुबेदार फिल्‍मन कुजूर (20 सितंबर 1946)

नायब सूबेदार फिल्मन कुजूर का जन्म गुमला के चितरपुर, टांगो में 1946 में हुआ था़ गरीबी के कारण चौथी कक्षा से आगे की पढ़ाई पूरी न कर सके. सेना में चयन हो गया. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लोंगेवाला के युद्ध में निर्णायक भूमिका अदा की़ इसी युद्ध पर बॉर्डर फिल्म भी बनायी गयी. लोंगेवाला (राजस्थान) के पोस्ट पर साथियों के साथ फिल्मन कुजूर तैनात थे. तभी पाकिस्तानी फौज ने हमला कर दिया़ वहां भारत के सिर्फ 120 जवान-अफसर तैनात थे़ इन जवानों ने बहादुरी से पाकिस्तानी फौज को रोके रखा़ इसी बहादुरी के कारण फिल्मन कुजूर को शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया़.

ग्रुप कैप्‍टन फेलिक्‍स पैट्रिक पिंटो (27 जुलाई 1973)

फेलिक्स पिंटो ने वायुसेना में बचाव काम करते हुए असंभव को संभव कर दिखाया. अप्रैल 2011 की घटना है. अरुणाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दोरजी खांडु का विमान तवांग की वादियों में लापता हो गया था. विमान खोजने की विशेष जिम्मेवारी विंग कमांडर फेलिक्स पिंटो को मिली. मलबे का पता लगा लिया. कुछ ही दिनों बाद जिस हेलीकॉप्टर पर वे शिलांग से उड़े थे, वह हवा में ही खराब हो गया. उसका क्रैश करना लगभग तय था, लेकिन अपनी बुद्धिमता से उन्होंने हेलीकॉप्टर को सुरक्षित गुवाहाटी एयरपोर्ट पर उतार दिया. 26 जनवरी 2012 को शौर्य चक्र से सम्मानित कि या गया.

कर्नल राजेश सिंह (15 मार्च 1973)

राजेश सिंह जमशेदपुर के पास आदित्यपुर के रहनेवाले हैं. जमशेदपुर के राजेंद्र विद्यालय से पढ़ाई की. सीडीएस (कंबाइंड डिफेंस सर्विसेज) की परीक्षा देने के बाद चेन्नई स्थित ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी में 10 महीने की कड़ी ट्रेनिंगली. ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उन्होंने ‘द राजपूताना राइफल्स’ को चुना़ उनकी पहली पोस्टिंग नगालैंड में हुई. बाद में उन्हें जम्मू-कश्मीर के ओ.पी. रक्षक में भेजा गया. यहां उन्होंने निर्भय ऑपरेशन के तहत दो खूंखार आतंकवादियों का खात्मा किया. इस बहादुरी के लिए 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटील द्वारा शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया.

सिपाही जॉन ब्रिटो किड़ो (22 अक्‍तूबर 1968-13 सितंबर 1989)

जॉन का जन्म सिमडेगा जिले के ठेठईटांगर पंचायत में एक साधारण परिवार में हुआ था़ वह कारलुस किड़ो के पुत्र थे. प्रारंभिक शिक्षा तमाड़ मिशन स्कूल से हुई. तोरपा से मैट्रिक पास करने के बाद सिमडेगा कॉलेज में नामांकन कराया. कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही 1986-87 के बीच सेना में चले गये. श्रीलंका में शांति सेना के रूप में अपनी सेवा दी़ यहां बारूदी सुरंग से पैर उड़ने, घायल होने के बावजूद हार नहीं मानी. सांस टूटने से पहले कई विद्रोहियों को मार डाला. इसी वीरता के लिए मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

सूबेदार घामा उरांव (05 फरवरी 1968)

घामा उरांव का जन्म 5 फरवरी 1968 को लोहरदगा में हुआ था. घामा तीन भाई और तीन बहनें थे. तीनों भाइयों में वह सबसे बड़े थे. गरीबी के कारण खुद उच्च शिक्षा नहीं ग्रहण कर सके, लेकिन अपने बच्चों को इंजीनियर और डॉक्टर बनाना चाहते थे. फुटबॉल उनका प्रिय खेल था. 1989 की बात है. उन दिनों श्रीलंका गृह युद्ध से जूझ रहा था. भारतीय फौज श्रीलंका गयी थी. इसमें वह भी शामिल थे. यहां घने जंगल में चार लड़ाकों ने उन पर हमला कर दिया़. घामा ने सभी लड़ाकों को मार गिराया. इसी दौरान वह भी गंभीर रूप से घायल हो गये थे. 26 जनवरी 1991 को वीर चक्र दिया गया.

नायक विश्‍वा केरकेट्टा (05 अगस्‍त 1964-20 अक्‍तूबर 1997)

20 अक्तूबर 1997 को जम्मू -कश्मीर में आतंकियों के साथ बहादुरी से लड़ते हुए झारखंड के सपूत विश्वा केरकेट्टा शहीद हो गये थे. अपनी शहादत से पहले दो खतरनाक आतंकियों को मार गिराया था. इस बहादुरी के लिए विश्वाकेरकेट्टा को वर्ष 2000 में तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन द्वारा कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया, जिसे उनकी पत्नी उर्मिला केरकेट्टा ने ग्रहण किया. रांची के बूटी मोड़ पर युद्ध स्मारक में परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का के साथ-साथ विश्वा केरकेट्टा की भी प्रतिमा लगी है. उनकी पत्नी के मन में आज भी आर्मी के प्रति काफी सम्मान है.

नायक जिदान बागे (18 जनवरी 1958-27 फरवरी 1991)

जिदान बागे का जन्म 18 जनवरी 1958 को गुमला के टाटी कुरकुरा में हुआ था. 29 जुलाई 1977 को सेना में शामिल हो गये. 80 और 90 दशक में पंजाब अशांत था. आतंकवाद से लोग तबाह थे. जिदान पंजाब में तैनात थे. 27 फरवरी 1991 का दिन था. जिदान को खबर मिली कि आतंकवादियों का जत्था गेहूं के खेतों में घात लगाकर बैठा है. नायक जिदान बागे ने कुछ साथी जवानों के साथ उन्हें घेर लिया़ कई गोलियां उन्हें लग चुकी थी. इसी लड़ाई में शहीद हो गये. इसके पहले पांच आतंकवादियों को मार चुके थे. इस वीरता के लिए उन्हें शौर्य चक्र प्रदान किया गया.

लेफ्टिनेंट कर्नल संकल्‍प कुमार (24 नवंबर 1974-05 दिसंबर 2014)

संकल्प का पूरा परिवार रांची में रहता है. संकल्प ने रांची के संत जेवियर स्कूल और कॉलेज में पढ़ाई की थी. सच्चाई और मिलनसार स्वभाव के कारण अपने सभी शिक्षकों, दोस्तों, पास-पड़ोस के लोगों और परिवारजनों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय थे. उनमें दूसरों की हमेशा मदद करने की सोच और असाधारण नेतृत्व क्षमता थी. सेना में जाने की इच्छा ने उनका चयन सीडीएस में कराया. देहरादून में ट्रेनिंग खत्म करने के बाद पहली पोस्टिंग लखनऊ में हुई थी. वे 24 पंजाब रेजिमेंट में कार्यरत थे़ 5 दिसंबर, 2014 को बोफोर्स पावर हाउस की रक्षा करते हुए जम्मू-कश्मीर में शहीद हुए. उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया.

लांस हवलदार तिफिल तिडू (02 अप्रैल 1958-28 मार्च 1994)

1994 में सोमालिया में शांति स्थापित करने के लिए भारतीय फौज गयी थी. इनमें झारखंड के तिफिल तिडू भी थे. वे बिहार रेजीमेंट के थे. विदेशी धरती पर बहादुरी से लड़ते हुए तिफिल तिडू 28 मार्च 1994 को सोमालिया के किस्माऊक्षेत्र में शहीद हो गये. सोमालिया में विद्रोही खाने का सामान लूट रहे थे. इसे रोकने के प्रयास में विद्रोहियों ने हमला कर दिया था. तिफिल तिडू माता-पिता के इकलौते संतान थे. उनके पिता एक फौजी थे. माता गृहिणी थी. उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया.

मेजर कुमार अंकुर (04 अप्रैल 1976)

कुमार अंकुर का जन्म 4 अप्रैल 1976 को धनबाद में हुआ. सैनिक स्कूल, तिलैया में पढ़ाई की. वर्ष 1993 में प्लस टू के बाद एसएसबी की परीक्षा पास कर एनडीए में अपना स्थान पक्का किया. ट्रेनिंग के बाद बिहार रेजिमेंट में सेकेंड लेफ्टिनेंट के पद पर सेवा शुरू की. वे 12 बिहार रेजिमेंट में कार्यरत थे. जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में अपने दल का नेतृत्व करते हुए आतंकवादियों के घुसपैठ को विफल कर दिया. इस असाधारण वीरता, साहस, बेहतर रणनीति और कुशल नेतृत्व के कारण उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया.

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