अब धर्म का आधार अध्यात्म होगा

* योगदा के संन्यासियों ने कहा, द्वापर युग की शुरुआत ।। अमरनाथ ठाकुर ।। रांची : कलियुग व अंधकार युग के बाद अब द्वापर युग की शुरुआत हो गयी है. भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में जिस प्राचीन योग की चर्चा की है, वह कालक्रम में द्वापर युग के बाद कलियुग व अंधकार युग में विलुप्त […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 20, 2013 8:24 AM

* योगदा के संन्यासियों ने कहा, द्वापर युग की शुरुआत

।। अमरनाथ ठाकुर ।।

रांची : कलियुग व अंधकार युग के बाद अब द्वापर युग की शुरुआत हो गयी है. भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में जिस प्राचीन योग की चर्चा की है, वह कालक्रम में द्वापर युग के बाद कलियुग व अंधकार युग में विलुप्त हो गया था. अंधकार युग में धर्म के नाम पर झगड़े हुए, जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया. अंधकार युग की समाप्ति के बाद द्वापर युग का आरंभ हुआ और विज्ञान के क्षेत्र में क्रांति आयी.

अब ब्रह्मांड के रहस्यों की खोज के साथ मानव जीवन क्या है. हम स्वयं में कौन हैं, इसकी भी खोज आरंभ हो गयी है. कालक्रम व ईश्वरीय योजना के तहत क्रियायोग की पुनस्र्थापना महावतार बाबाजी के माध्यम से हुई है, जिसका प्रचार-प्रसार योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया व सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप अमेरिका के माध्यम से पूरी दुनिया में किया जा रहा है. इस क्रियायोग विज्ञान के माध्यम से आत्मज्ञान व ईश्वर की प्राप्ति होगी. अब धर्म के नाम पर झगड़े नहीं होंगे.

धर्म का आधार अध्यात्म होगा. गुरुजी परमहंस योगानंदजी ने आध्यात्मिक जीवन जीने का एक ऐसा वैश्विक अध्यात्म का मार्ग दिया है, जिसे पूरी दुनिया के लोग जाति, धर्म व देश की सीमाओं से परे होकर अपना रहे हैं. यह आरोही द्वापर युग है, इसलिए पूरी दुनिया में क्रियायोग फैलेगा, क्योंकि द्वापर के बाद त्रेता व फिर सतयुग आना बाकी है. उक्त बातें शरद संगम के समापन सत्र को संबोधित करते हुए योगदा के संन्यासियों ने कही. शरद संगम 2013 का समापन सोमवार को हुआ. समापन सत्र को स्वामी नित्यानंद गिरि व स्वामी श्रद्धानंद गिरि ने संबोधित किया.

स्वामीजी ने कहा कि अध्यात्म का लक्ष्य सेल्फ रियलाइजेशन (स्वयं की अनुभूति) व गॉड रियलाइजेशन (ईश्वरानुभूति) होना चाहिए. अध्यात्म को शक्ति व चमत्कार का साधन नहीं बनायें, शक्ति व चमत्कार सांसारिक बंधनों से जकड़नेवाले होते हैं. एक व्यक्ति जब किसी कार्य को व्यक्ति अहम की भावना से करता है, तब वह कर्मबंधन में फंसता है. इसलिए सभी कर्म ईश्वर को समर्पित कर करें व सभी अच्छे-बुरे कर्मों के फल ईश्वर को सौंप दें. ऐसा करने से आपका कर्म भगवान की सेवा बना जायेगी व आप कर्मबंधन से मुक्त हो जायेंगे.

* ईश्वर व उनके प्रेम को पाने का अधिकार सभी को

योगदा सत्संग में आयोजित शरद संगम की शुरुआत 13 नवंबर को हुई थी. उद्घाटन सत्र को आश्रम के संन्यासी स्वामी शुद्धानंद गिरि व स्वामी ईश्वरानंद गिरि ने संबोधित किया. उन्होंने कहा कि ईश्वर व उनके प्रेम को पाने का अधिकार सभी को है. एक साधक को यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि वह अयोग्य है, अक्षम है.

ईश्वर की कृपा का पात्र बन कर हम उनकी दया व प्रज्ञा के प्रकाश से दूसरों को आलोकित करते हैं. स्वामीद्वय ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि 84 लाख योनियों से गुजरने के बाद यह मानव शरीर हमें मिला है. जब हमें मानव शरीर मिलता है, तब हमारे समक्ष एक विकल्प रहता है कि हम अपनी चेतना को ईश्वरानुभूति में लगाये व अनेक जन्मों से मिले संस्कारों पर विजय प्राप्त करते हुए, मुक्ति की अवस्था में पहुंचे. माया हमेशा सांसारिक कार्यों में उलझाकर रखती है.

माया कभी अच्छे, तो कभी बुरे अनुभवों का बोध कराते हुएं द्वंद्व में जीने का कार्य कराती रहेगी. हम इस माया को लड़कर जीत नहीं सकते है, इसलिए इससे दूर रहना ही श्रेयकर है. परंतु यह कार्य भी आसान नहीं है. ऐसी परिस्थिति में गुरुजी परमहंस योगानंदजी की शिक्षाएं प्रासंगिक हो जाती है. गुरुजी द्वारा बताये गये ध्यान-प्राणायाम की प्रविधियों व क्रियायोग का नियमित अभ्यास तथा उनकी शिक्षाएं हमें सांसारिक कर्तव्यों को पूरा करते हुए, संतुलित जीवन जीने के बारे में बताती है. जब हम संतुलित जीवन जीते हैं, तब हम परिवर्तनशील जगत से अपनी चेतना को हटाकर, अपरिवर्तनशील प्रभु में लगाना सीख लेते हैं. जीवन के सुख-दुख की घटनाओं को एक सिनेमा की तरह काल्पनिक मानते हुए, इनसे अप्रभावित रहते हैं. सांसारिक चिंताओं से परे ईश्वरीय आनंद, शांति व प्रेम का अनुभव करते हैं. श्रीमदभगवदगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने एक साधक की इसी अवस्था को स्थितप्रज्ञ अथवा योगारूढ़ की संज्ञा दी है.

* शरद संगम की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला

उद्घाटन सत्र के मौके पर योगदा सत्संग सोसाइटी भारत व सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप अमेरिका की संघमाता श्री श्री मृणालिनी माता का संदेश भी पढ़कर सुनाया गया. स्वामी शुद्धानंद गिरि व स्वामी ईश्वरानंद गिरि ने शरद संगम के आयोजन की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि गुरुजी के शिष्य दुनिया के अलग-अलग देशों व स्थानों में रह रहे हैं. इसके बावजूद एक परिवार बंधन में हैं. इस परिवार बंधन के एकमात्र सूत्र हमारे पूज्य गुरुदेव परमहंस योगानंदजी हैं, जो हमें बांधे हुए हैं. शरद संगम में आनेवाले भक्तों को परोक्ष रूप से स्वयं गुरुजी आमंत्रित करते हैं. गुरुजी परमहंस योगानंदजी जब भी अपने गुरु श्री श्री युक्तेश्वर गिरि के आश्रम में जाते थे, शांति का अनुभव करते थे. उनका मन सांसारिक चिंताओं को भूलकर पूरी तरह शांत हो जाता था.

शरद संगम में आनेवाले भक्तों को रांची आश्रम में ऐसी ही अनुभूति होती है, क्योंकि यह आश्रम भी गुरुजी परमहंस योगानंदजी समेत अनेक साधकों की तपोभूमि है. शरद संगम में भाग लेनेवाले भक्तों का एकमात्र उद्देश्य साधना की नई शरद संगम में भाग लेनेवाले साधक चेतना के नये बोध व चेतना की नई अनुभूति को लेकर अपने घर लौटते हैं, जो उन्हें संतुलित जीवन जीने में मदद करती है. शरद संगम के उद्घाटन व समापन सत्र में योगदा सत्संग सोसाइटी के महासचिव स्वामी स्मरणानंद गिरि, स्वामी निर्वाणानंद गिरि, स्वामी कृष्णानंद गिरि, स्वामी हितेषानंद गिरि, स्वामी अमरानंद गिरि, स्वामी ओंकारानंद गिरि, स्वामी ललितानंद गिरि, स्वामी माधवानंद गिरि समेत कई ब्रह्मचारियों, अमेरिका, इंग्लैंड, मलेशिया, ब्राजील, अज्रेंटिना, सिंगापुर, नेपाल, श्रीलंका, थाइलैंड, ऑस्ट्रिया, आस्ट्रेलिया समेत 22 देशों व भारत के 26 राज्यों से आये 1600 से अधिक श्रद्धालुओं व साधकों ने हिस्सा लिया.

* शरद संगम का आयोजन बेहतर प्रबंधन की मिसाल

वैज्ञानिकता से परिपूर्ण भारतीय अध्यात्म के विशुद्ध व परिष्कृत रूप की झलक योगदा सत्संग आश्रम में आयोजित शरद संगम 2013 में दिखायी दी. भारत समेत 23 देशों से आये 1600 से अधिक भक्तों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया. इतनी बड़ी संख्या में आये लोगों का एक साथ रहकर ध्यान, योग के कार्यक्रमों में हिस्सा लेना और फिर चुपचाप यहां से चले जाना सफल प्रबंधन व स्वानुशासन का एक बड़ा उदाहरण है.

पूरी दुनिया में प्रबंधन की जापानी तकनीक टोटल क्वालिटी मेंटेनेंस, बेहतर साफ-सफाई व रख-रखाव की प्रबंधन तकनीक फाइव एस, क्वालिटी सर्किल आदि पर जोर दिया जा रहा है. शरद संगम केप्रबंधन को देखा जाय तो शरद संगम का आयोजन प्रबंधन की इन सभी तकनीकों को अपने में समेटे हुए है. बड़ी संख्या में भाग लेनेवाले भक्तों के बावजूद गंदगी का नामोनिशान दूर-दूर तक नहीं दिखायी देता. एक टॉफी का छिलका भी शायद कहीं दिख जाये, तो बड़ी बात होगी. इस सात दिवसीय शरद संगम में साधक जाति, धर्म, कुल, नस्ल, लिंगभेद आदि मानवकृत बंधनों से परे मानवता व भाईचारे का प्रतीक बनकर आध्यात्मिक साधना करते नजर आये.

सात दिन सौहार्द, सामंजस्य, शांति व आनंद में गुजरा. न तो किसी के चेहरे पर तनाव नजर आया और न किसी में किसी काम को लेकर आपाधापी नजर आयी. सबकुछ स्वत: स्फूर्त होता नजर आ रहा था. घड़ी के कांटों से मेल खाते शरद संगम के सभी कार्यक्रम ससमय संपन्न होते थे. हर दिन सुबह सात बजे साधक अपने नित्य कर्म कर शक्ति संचारक व्यायाम, ध्यान, प्रार्थना के साथ दिन की शुरुआत करते. यह कार्यक्रम शाम को भी दुहराया जाता था.

आश्रम के संन्यासीगण हर दिन आध्यात्मिक व भौतिक जगत से जुड़े आवश्यक विषयों पर व्याख्यान, व्यक्तिगत परामर्श व मार्गदर्शन देते थे. व्यक्तिगत मार्गदर्शन देने के लिए आश्रम परिसर में संन्यासियों के बैठने के लिए शिविर लगाये गये थे. संगम के दौरान योगदा की वैज्ञानिक प्रविधियों से संबंधित विशेष कक्षाएं आयोजित की गयी. जिसमें शक्तिसंचारक व्यायाम, हंस: तकनीक, ऊं तकनीक व क्रियायोग विज्ञान की विशेषताओं व ईश्वर साक्षात्कार में इनके महत्व से अवगत कराया गया.

आध्यात्मिक कार्यक्रमों के बीच साधकों की आम जरूरतों का हर तरह से ख्याल रखा गया. आश्रम परिसर में भोजनालय, आवश्यक सामानों की खरीदारी के लिए फ्रुट व जनरल स्टोर, पुस्तकों व आध्यात्मिक वस्तुओं की खरीदारी के लिए बिक्री केंद्र, ठहरने के आवास के अलावा दिन में आराम करने के लिए पुरुषों व महिलाओं के लिए अलग-अलग टेंट लगाये गये थे. सुबह में हर व्यक्ति के स्नान के लिए गर्म पानी की व्यवस्था थी. शौचालय, नालियों में कहीं से किसी भी प्रकार का दरुगंध नहीं था. मच्छर-मक्खी का तो नामोनिशान भी न था. साधकों, कर्मचारियों, स्वयंसेवकों व सुरक्षाकर्मियों, सभी के लिए दिशा निर्देश तय किये गये थे. जिसका पालन सभी को करना था.

शांतिपूर्ण तरीके से भोजन मुहैया कराने के लिए साधकों को नीले, हरे व गुलाबी बैच दिये गये थे. गुलाबी बैच 65 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ साधकों को दिये गये थे. ताकि उन्हें विशेष सुविधाएं दी जा सके. उनके उम्र का ख्याल रखते हुए उन्हें कतार में नहीं लगकर सीधे भोजन मुहैया कराने की व्यवस्था की गयी थी. आश्रम में हर दिन तैयार व्यंजन संपूर्ण भारत से आये साधकों को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता था.

साधकों के आवागमन के लिए वाहनों की व्यवस्था की गयी थी. चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने के लिए एंबुलेंस, चिकित्सा दल आदि की व्यवस्था की गयी थी. सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया था. बिना पास के गेट से आना जाना पूरी तरह वजिर्त था.

* ..और दीपों से जगमगाने लगा

कार्तिक पूर्णिमा की रात योगदा भक्तों के लिए विशेष रात रही. हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी कार्तिक पूर्णिमा की रात योगदा आश्रम परिसर दीपों की रोशनी से जगमगाने लगा. इस दृश्य को देखने की ख्वाहिश हर योगदा भक्तों की रहती है. आश्रम परिसर स्थित स्मृति मंदिर, ध्यान मंदिर, मठ, लीची वेदी आदि को दीपों से सजाकर एक साथ जलाया गया. इसे देखने हजारों भक्त आश्रम परिसर में मौजूद थे.

* आश्रम के बगीचों के सुंदर फूल भक्तों का स्वागत कर रहे थे

शरद संगम के दौरान योगदा सत्संग आश्रम परिसर स्वर्गिक आनंद से सरोबार रहा. शरद ऋतु की धूप में बैठकर साधना करना साधकों को बड़ा आनंद प्रदान कर रहा था. आश्रम के बगीचे व प्रागंण में रंग-बिरंगे गेंदा, गुलाब समेत कई तरह के फूल व शोभाकारी पौधे शारदा संगम में आये भक्तों का स्वागत कर रहे थे. आश्रम के साधना स्थल में व्याप्त दिव्य सुंगध व वहां धीमे स्वर में बजनेवाले भक्तिमय गीत, वातावरण को भक्तिमय बना रहे थे. आश्रम परिसर स्थित विशाल मैदान में हर दिन सुबह शाम साधक सामूहिक रूप से शक्तिसंचारक व्यायाम करते थे. गुरुजी के कमरे, स्मृति मंदिर, ध्यान मंदिर, लीची वेदी समेत आश्रम के बगीचों में भक्त साधना करते नजर आते थे.

* मन ही मन ईश्वर से वार्तालाप करें : स्वामी कृष्णानंद गिरि

ईश्वर की उपस्थिति का अभ्यास विषयक व्याख्यान में कहा

दैनिक जीवन के कार्यों को करते समय भी ईश्वर को मन ही मन याद करें, उनसे वार्तालाप करें. उन्हें अपने जीवन का हिस्सा बनायें. यदि ऐसा करने का अभ्यास करते हैं, तो कुछ ही समय में आप अपने को आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली पायेंगे. उक्त बातें स्वामी कृष्णानंद गिरि ने कही.

साधकों के समक्ष ईश्वर की उपस्थिति का अभ्यास विषयक व्याख्यान दिये. उन्होंने ध्यान व जपयोग की महत्ता पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि गहनता के साथ लंबे ध्यान का अभ्यास करें, यह आपको ईश्वर के साम्राज्य तक ले जायेगा. उन्होंने कहा कि जपयोग मन को ईश्वर के साथ जोड़नेवाली डोरी है. हर समय मन ही मन हंस:, ओम गुरु या जो कोई जप आपको अच्छा लगे, मन ही मन जपते रहें. अपने मन को 25 प्रतिशत सांसारिक कार्यों से व 75 प्रतिशत भगवान के साथ जोड़ने में लगाये. ईश्वर को समर्पित किये गये कार्य ध्यान के समान हितकर होते हैं.

* ज्ञान से ही हम ऊपर उठ सकते हैं : ब्रह्मचारी धैर्यानंद गिरि

स्वयं को बुरी आदतों से कैसे मुक्त करें विषयक व्याख्यान में कहा

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि हजारों मनुष्यों में कोई एक मुङो पाने का प्रयत्न करता है और उन प्रयत्न करनेवाले हजारों में कोई एक मुङो प्राप्त होता है. भगवान के इस संदेश को पढ़ें, तो हमें आध्यात्मिक जगत की इस अवस्था को पाने के लिए बहुत लंबी यात्रा करनी बाकी है. हम मानव देह में ज्ञानमय कोष की अवस्था में है, जिसे आनंदमय कोष में जाना है. परंतु इस यात्रा में हमारे पूर्व जन्म की आदतें व संस्कार सबसे बड़ी बाधा हैं और इन बाधाओं से हमें बचने के लिए बुरी आदतों पर विजय प्राप्त करनी होगा.

उक्त बातें ब्रह्मचारी धैर्यानंद गिरि ने कही. उन्होंने बुरी आदतों पर विजय पाने के लिए ईश्वर के बनाये नियमों पर चलने की महत्ता पर प्रकाश डाला व कहा कि हमें ध्यान व साधना के माध्यम से वह ज्ञान प्राप्त करना है, जिससे यह जान सकें कि कौन सा कार्य हमें करना है और कौन सा नहीं. हमें इस ज्ञान को प्राप्त करधैर्य, शांति व प्रेम के साथ कार्य करना होगा.

* जीवन में भक्ति का स्थान सर्वोपरि : ब्रह्मचारी वासुदेवानंदजी

भागवत गीता में भक्ति का संदेश विषयक व्याख्यान में कहा

जीवन में भक्ति का स्थान सर्वोपरि होता है. भगवान श्रीकृष्ण गुरु व अजरुन शिष्य के प्रतीक हैं. शिष्य अजरुन ने जब अपने गुरु भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष अपने को भक्तिभाव के साथ समर्पित किया, तब भगवान ने उन्हें ज्ञानयोग व कर्मयोग का ज्ञान दिया. हमें भी अपने गुरु के प्रति अजरुन की तरह भक्ति व समर्पण का भाव रखना होगा, तभी हम गुरु के ज्ञान के पात्र होंगे. उक्त बातें ब्रह्मचारी वासुदेवानंदजी ने कही.

उन्होंने भगवद गीता में भक्ति के संदेश विषयक व्याख्यान को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि हमें संसार में रहते हुए भी संसार से परे रहना है. इसके लिए हमें अपना सारा कार्य भगवान को अर्पण कर करना होगा. उन्होंने गीता में वर्णित भक्त के गुणों की चर्चा करते हुए कहा कि भगवान को वैसे भक्त प्रिय हैं जो द्वेषरहित, स्वार्थरहित, क्षमावान, निरंतर संतुष्ट, मन इंद्रियों सहित शरीर को जीता हुआ, दृढ़ निश्चय, मन बुद्धि को ईश्वर में समर्पित किए हुए होते हैं.

* बच्चा अच्छा इंसान बने यह लक्ष्य हो : ब्रह्मचारी अच्युतानंद गिरि

नौनिहालों की परवरिश विषयक व्याख्यान में कहा

एक बच्चे के लिए उसका घर पहला विद्यालय होता है. उसके व्यक्तित्व की जड़ उसके घर में होती है. इसलिए हरेक माता-पिता को उनकी जिम्मेदारियों का बोध होना चाहिए. अपने बच्चों को नि:शर्त प्रेम दें. घर में अनुशासन का ऐसा मिश्रित माहौल हो, जहां सिद्धांत के रूप में दृढ़ता के साथ प्रेम भी हो. हरेक बच्चे का अपना विशेष स्वभाव व व्यक्तित्व होता है. उनके स्वभाव व व्यक्तित्व के प्रति संवेदनशील होकर माता-पिता को उसके प्रति कठोरता व प्रेम का उपयोग करना चाहिए.

अपने बच्चों पर अपनी महत्वाकांक्षा को न थोपें. आपके बच्चे कैसे एक अच्छा इंसान बनें, यह आपका लक्ष्य होना चाहिए. बच्चों को दैनिक जीवन में ध्यान साधना के महत्व से अवगत करायें. चरित्र निर्माण के लिए नैतिक शिक्षाओं के साथ इनका दैनिक जीवन में अभ्यास भी करायें. बच्चे का वातावरण उनके अंत:करण को प्रभावित करता है. उन्हें प्रेम व आध्यात्मिकता का वातावरण दें.

* दूसरों की हानि के लिए प्रार्थना न करें : स्वामी स्मरणानंद गिरि

सफल प्रार्थना के सिद्धांत विषयक व्याख्यान में कहा

प्रार्थना करने से पहले यह जांच लें कि वह प्रार्थना आपके व दूसरों के लिए लाभकारी है या नहीं. दूसरों की हानि के लिए प्रार्थना कदापि न करें. क्योंकि सभी में भगवान हैं. प्रार्थना के दौरान वैसी चीजें भी नहीं मांगनी चाहिए, जो अनावश्यक इच्छा की श्रेणी में आते हैं. उक्त बातें स्वामी स्मरणानंद गिरि ने सफल प्रार्थना के सिद्धांत विषयक व्याख्यान के दौरान योगदा भक्तों से कही. उन्होंने कहा कि प्रार्थना करते समय भिखारी न बनें, आप ईश्वर के अंश हैं और उनकी संतान हैं.

जिस प्रकार एक बच्चे का अपने माता-पिता से उसकी आवश्यक वस्तुओं को मांगने का अधिकार होता है, ठीक उसी तरह ईश्वर की संतान होने के नाते हमें उनसे मांगने का अधिकार है. उन्होंने सफल प्रार्थना में दृढ़ इच्छा शक्ति के महत्व पर भी प्रकाश डाला व कहा ईश्वर की संतान होने के नाते हमें भी अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति का प्रयोग करना चाहिए. ईश्वर को पाने के लिए प्रार्थना करें.

* क्रियायोग सबसे बड़ा विज्ञान : स्वामी नित्यानंद गिरि

110 साधकों को क्रिया दीक्षा

प्राचीन क्रियायोग का पुनरोद्धार महावतार बाबाजी के माध्यम से हुआ है. मानव ने जितना भी ज्ञान प्राप्त किया है, उनमें क्रियायोग सबसे बड़ा विज्ञान है, इससे सृष्टि के पालक भगवान स्वयं प्राप्त होते हैं. उक्त बातें योगदा सत्संग आश्रम के संन्यासी स्वामी नित्यानंद गिरि ने यहां आयोजित क्रिया दीक्षा के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही.

शरद संगम 2013 के दौरान कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्रियायोग दीक्षा का कार्यक्रम आयोजित किया गया. पूज्य गुरुदेव परमहंस योगानंदजी के प्रतिनिधि के तौर पर योगदा के संतों ने 110 साधकों को क्रियायोग की दीक्षा दी साथ ही क्रियायोग की महत्ता पर भी प्रकाश डाला. स्वामी नित्यानंद गिरि ने हिंदी में दीक्षा लेनेवाले साधकों को संबोधित किया. अंगरेजी में दीक्षा लेनेवाले साधकों को स्वामी स्मरणानंद गिरि ने संबोधित किया. स्वामी नित्यानंद गिरि ने कहा कि 24 घंटे मंत्र का जप करने के बराबर का लाभ एक घंटे हंस: तकनीक के अभ्यास से होता है.

* भक्तों का साक्षात्कार

– एसआरएफ के कई कॉन्वोकेशन में हिस्सा लिया, पहली बार भारत आयी. मैं 34 वर्षों से गुरुजी की शिक्षाएं ले रही हूं, क्रियायोग की दीक्षा लिए 32 वर्ष हो गये. प्रकृति को समेटे रांची की पावन धरती मेरे लिए तीर्थस्थान है. गुरुजी के कमरे व लीची वेदी जहां गुरुजी के स्पंदन हैं, वहां ध्यान करना अदभूत लगा. गुरुजी की शिक्षाओं में जीवन के हर पहलुओं से संबंधित मार्गदर्शन व समस्याओं का समाधान है.

हेरटा मेइरर, ऑस्ट्रिया, यूरोप

– 1994 से रांची आ रहे हैं. घर के आठ सदस्यों में सात क्रियादीक्षा ले चुके हैं. बेटी अगले वर्ष क्रिया दीक्षा लेगी. गुरुजी की शिक्षाओं का पालन करें, तो दैनिक जीवन की समस्याएं स्वत: दूर होंगी. जीवन की चुनौतियों व तनाव को मात देने में खुद का प्रयास व गुरुजी की शिक्षाएं काफी मददगार साबित होती है.

समीर सुभाषचंद्र

कार्निक, मुंबई

– मेरे पति पहली बार योगदा के सदस्य बनें थे. बंद कमरे में उनके द्वारा क्रियायोग व ध्यान का अभ्यास करना कतई पसंद नहीं था. 12 वर्ष पहले योगदा की सदस्य बनी. यहां आकर छोटे से परिवार की जगह योगदा के विशाल परिवार की महत्ता को समझा. मेरा संसार बड़ा हो गया है. खुद में आत्मविश्वास बढ़ा है. अब डिप्रेसन नहीं है. शरद संगम में पांच वर्षों से आ रही हूं. यहां आकर रिचार्ज हो जाती हूं

निशा रिजाल

जावलाखेल, काठमांडू, नेपाल.

– पहले मैं स्वार्थपूर्ण जीवन जीती थी, मैं, मेरा पति, मेरा बच्चा, मेरी प्रॉपर्टी जैसे स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जीती थी. कोई भी मुङो कुछ अच्छा करने की सलाह देता था, तो मैं उसे नकारात्मक रूप से ले लेती थी. गुरुजी की शिक्षाओं को पाकर मेरे नजरिये में व्यापक बदलाव आया है. मैं अब सभी कार्य व्यक्तिगत अहंम से ऊपर सेवा भाव के नजरिये से करती हूं. किसी के प्रति शत्रुभाव नहीं रहता है.

महुआ मंडल नालकोनगर, ओड़िशा

– मेरे पूरा परिवार गुरुजी का शिष्य है. घर के सभी सदस्य क्रियायोगी हैं. घर के वातावरण जबर्दस्त बदलाव आया है. जीवन के हर पहलुओं को विशेष अंदाज से देखने का नजरिया बन गया है. घर में आनंद का वातावरण है. गुरुजी की शिक्षाएं संतुलित व उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने में सहायक साबित हुई है.

स्वाति वर्मा, चंडीगढ़

– क्रियादीक्षा लेने के बाद उद्देश्यपूर्ण जीवन जी रहा हूं. सोचने का नजरिया सकारात्मक हो गया है. जीवन के संग्राम और इस क्रम में आनेवाली चुनौतियों से विशेष प्रभावित नहीं होता, बल्कि इन्हें हल्के तौर पर लेकर इनका मुकाबल धैर्य पूर्वक करता हूं. ईश्वर की प्राप्ति की खोज एकमात्र उद्देश्य है. सदैव आनंद से सरोबार रहता हूं.

वेद प्रकाश पारिक, जयपुर

– वर्ष 1973-74 में योगीकथामृत पढ़कर योगदा का सदस्य बना. मैं पढ़ने में सामान्य छात्र था, परंतु एक अच्छा वकील बना. एक अच्छे वकील बनने में गुरुजी की शिक्षाओं की बड़ी भूमिका है. पहले मैं अपने क्लाइंट को प्रोफेसनल तरीके से हैंडल करता था. मेरे में अब यह भाव आ जाने से कि मेरे पास दुख की घड़ी में लोग कानूनी सहायता के लिए आते हैं, तब मेरा उनके प्रति नजरिया बिल्कुल बदल गया है. मैं अपने क्लाइंट को सेवा भाव से देखता हूं.

अधिवक्ता किरणमूलजी गणांत्र

भुज गुजरात

– मैंने आइआइटी मुंबई से इंजीनियरिंग की, इसके बाद आइआइएम से एमबीए की पढ़ाई पूरी की. मैं नौकरी में था. 2004 से योगदा से जुड़ा, 2006 में पहली बार रांची आया व 2007 में क्रिया दीक्षा ली. गुरुजी से प्रभावित होकर मैंने शिक्षा देने के महत्व से अवगत हुआ और नौकरी छोड़कर एकेडेमिक कंसल्टेंट के रूप में छात्रों का मार्गदर्शन कर रहा हूं. अपने कैरियर से बहुत संतुष्टि मिल रही है.

शरण सक्सेना, जयपुर

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