महुआ माजी ने कहा बेहिचक समस्या बतायें

रांची: झारखंड राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ महुआ माजी ने कहा है कि महिलाएं अपने दु:ख-दर्द और शिकायतों को लेकर उन तक पहुंचें. आयोग महिलाओं की मदद और सुरक्षा में हर संभव मदद करेगा. चतरा की घटना को संज्ञान में लेते हुए मैंने जिले के एसपी और उपायुक्त से जानकारी मांगी है. राज्य में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 3, 2013 6:45 AM

रांची: झारखंड राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ महुआ माजी ने कहा है कि महिलाएं अपने दु:ख-दर्द और शिकायतों को लेकर उन तक पहुंचें. आयोग महिलाओं की मदद और सुरक्षा में हर संभव मदद करेगा. चतरा की घटना को संज्ञान में लेते हुए मैंने जिले के एसपी और उपायुक्त से जानकारी मांगी है.

राज्य में व्याप्त अंधविश्वास की पराकाष्ठा दुखद है, जिसकी परिणति चतरा की घटना है. चतरा में महिला पंचायत प्रतिनिधि के हल छू लेने पर जिस तरह उसका सामाजिक बहिष्कार किया गया है, यह काफी दुखद है. डॉ माजी सोमवार को रोल ऑफ पीआरआइ इन चाइल्ड एंड वुमेन रिलेटेड इश्यूज पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला को संबोधित कर रही थीं. उन्होंने कहा कि महिलाओं की समस्याओं का निबटारा करना आयोग की प्राथमिकता है. कार्यशाला में यूनिसेफ के झारखंड प्रमुख जॉब जकारिया ने भी विचार रखे. स्वागत सर्ड निदेशक डॉ आरपी सिंह ने किया. संचालन डॉ विष्णु राजगढ़िया ने किया.

झारखंड में हर दूसरी लड़की का बाल विवाह : प्रेमचंद
यूनिसेफ के कुमार प्रेमचंद ने कहा कि झारखंड में बाल विवाह, बाल मजदूरी और ह्यूमन ट्रैफिकिंग बड़ी समस्या है. इसे लेकर यूनिसेफ कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम चला रहा है. वर्ष 2010-11 की जनगणना में यह बात सामने आयी है कि राज्य में हर दूसरी लड़की का बाल विवाह हो रहा है.

जबकि राज्य अपराध नियंत्रण ब्यूरो (एससीआरबी) में बाल विवाह का एक भी मामला दर्ज नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि झारखंड में प्रत्येक एक लाख में 267 महिलाएं प्रसव के दौरान मर जाती हैं. प्रत्येक वर्ष झारखंड में आठ लाख नवजात बच्चों का जन्म होता है. इनमें से सिर्फ 46 प्रतिशत बच्चों का ही जन्म निबंधन होता है. सरकार ने इसके लिए 9000 कर्मियों को लगा रखा है. जबकि पंचायतों में मुखिया और पंचायत प्रमुखों को यह जवाबदेही सौंपी गयी है कि वे घरों में होनेवाले बच्चों के जन्म का प्रमाण पत्र दे सकते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि झारखंड में प्रत्येक दस में से एक बच्चे बाल मजदूर हैं, जबकि 2.26 लाख बच्चे स्कूली शिक्षा नहीं ले पाते हैं.

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