बीडीओ ताकतवर हैं उपायुक्त से

-हरिवंश- यह कहना असत्य होगा कि पलामू या गढ़वा के सूखे या अकाल की स्थिति के प्रति डालटनगंज पहुंचते ही अदालत परिसर में भीड़ दिखी. झकाझक सफेद खद्दर धारण किये कुछ लोग खड़े थे. उनके अगल-बगल सुरक्षा के लिए पुलिस के मुस्तैद जवान थे. आस-पास इस भीड़ को निहार रही भदेस जनता थी. मालूम हुआ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 21, 2016 10:54 AM

-हरिवंश-

यह कहना असत्य होगा कि पलामू या गढ़वा के सूखे या अकाल की स्थिति के प्रति डालटनगंज पहुंचते ही अदालत परिसर में भीड़ दिखी. झकाझक सफेद खद्दर धारण किये कुछ लोग खड़े थे. उनके अगल-बगल सुरक्षा के लिए पुलिस के मुस्तैद जवान थे. आस-पास इस भीड़ को निहार रही भदेस जनता थी. मालूम हुआ कि ये कांग्रेसी हैं. सूखे से मर्माहत हैं. राहत मंत्री का घेराव करने आये हैं. दिल्ली के शासक कांग्रेसी जिस तरह का ताना-बाना धारण करते हैं, क्रीज न टूटनेवाला खद्दर पोशाक पहनते हैं, उनको कांग्रेसी डालटनगंजन कचहरी परिसर में सूखे की अपनी पीड़ा सार्वजनिक करने आये थे.

यह दृश्य देखते ही न जाने कितनी चीजें एक साथ कौंध गयीं. दरअसल पलामू-गढ़वा का अकाल तो मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों का परिणाम है. यह ईश्वरीय प्रकोप या प्राकृतिक, विपदा नहीं है. व्यवस्था की विफलता का परिणाम है अकाल और आजाद देश में सबसे अधिक बरसों तक शासन किया है, इन्हीं कांग्रेसियों ने . अपनी विफलता-करतूत से उपजे अकाल पर शोक जाहिर करने आये कांग्रेसियों के चेहरे पर रत्ती भर भी शिकन. आत्मशर्म और बेबसी नहीं थी. इनमें से शायद ही कोई पलामू-गढ़वा के सुदूर पहाड़ी गांवों में गया हो.

न जाने क्यों रामवृक्ष बेनीपुरी की याद आयी. संभव है शिवपूजन सहाय और रामवृक्ष बेनीपुरी को अब बहुत लोग न जानते हों. स्वराज्य के बाद उन्होंने राजनीति को नमस्कार कर दिया था. यह कहते हुए कि अब राजनीति में तीन पार्टियां होंगी. एक चोरी करनेवालों की, दूसरी गाली देनेवालों की और तीसरी सबसे बड़ी पार्टी वैसे लोगों की होगी, जो चोरी भी करेंगे और गालियां भी देंगे. यही कांग्रेसी करते आ रहे हैं. प्रख्यात अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने अकाल की राजनीति पर काफी गहराई से काम किया है.

अर्थशास्त्र में उन्हें नोबुल पुरस्कार मिलने की चर्चा होती है. अगर वह नोबुल पुरस्कार से पुरस्कृत हो जाएंगे, तो हम ढिंढोरा पीटेंगे. कि वह भारतीय हैं. दुनिया में भूख, राजनीति और इन दोनों के अंतर्सबंध पर अमर्त्य सेन से बेहतर काम किसी ने नहीं किया है. उनका निष्कर्ष है कि अकाल, व्यवस्था की विफलता, राजनीति कौशल. प्रबंध की विफलता और राजनेताओं की विफलता के परिणाम हैं. इस कसौटी पर कांग्रेसी अगर आत्म अवलोकन करें, तो उनके हित में होगा.

दूसरे दलों की स्थिति भी बेहतर नहीं है. रामविलास सिंह बिहार सरकार के वरिष्ठ मंत्री हैं. राहत का काम देख रहे हैं. 22 फरवरी को डालटनगंज आये थे. कहा कि जो लोग भूख से मरने की बात कहेंगे और जांच से प्रमाणित नहीं होगी, उनके खिलाफ प्रशासन मुकदमा करेगा. भारत के विरोधी दलों की यही सबसे बड़ी विडंबना रही है कि वे कुरसी पर बैठते ही कांग्रेसी भाषा बोलते हैं और कांग्रेसी आचरण समृद्ध करते हैं, अपना सत्व, अपनी जड़ और अपना आधार भूल कर. अगर 74 आंदोलन के गर्भ से ऐसी ही बात करनेवाले मंत्र निकलने थे, तो अब यह दो मत नहीं कि 1974 का आंदोलन भारतीय राज-समाज को तहस-नहस करने में कांग्रेस को भी मात कर रहा है. मंत्री महोदय, क्या बतायेंगे कि भूख से मरने के लक्षण क्या-कौन से हैं? दुनिया के किस मेडिकल कॉलेज में विशेषज्ञ डॉक्टरों ने भूख से मरने की कसौटी तय की है? पलामू में भूख से जूझ रहे लोग किस कसौटी पर चिह्नि‰त किये जायेंगे? आज तक पलामू-गढ़वा के भूखे लोगों को लाल कार्ड मुहैया नहीं कराया गया है जिस एक ईमानदार अधिकारी ने जोखिम लेकर कुछ कार्ड बंटवाये हैं, उसे बदलने का गुपचुप अभियान चल रहा है.

ठेकेदार-नेता सक्रिय हैं कि उनकी रूझान के अनुरूप अफसर इन जिलों में भेजे जायें, ताकि सूखे के नाम पर आनेवाली सरकारी राशि में उन्हें हिस्सा मिल सके. इस महान उद्देश्य के लिए अब उपायुक्त या विकास उपायुक्त को रखने-हटाने की जरूरत नहीं है. बीडीओ पर्याप्त है. विकास राशि या योजनाओं पर खर्च की जानेवाली राशि उसके हाथ में होती है. नेता उनके आगे-पीछे घूमते हैं, तो बीडीओ अपने हमदर्द-संरक्षक नेताओं की मदद लेकर बयानबाजी करते हैं. पटना में अड्डा लगाते हैं. हकीकत तो यह है कि उपायुक्त या आयुक्त के मुकाबले भ्रष्ट बीडीओ ज्यादा ताकतवर और सत्ता गलियारे में दखल रखता है. डालटनगंज के प्रभावशाली नेताओं-विधायकों ने अपने प्रिय अधिकारियों को अपने-अपने ब्लॉकों में तैनात करा रखा है. यह जाल बड़ा असरदार और मजबूत है. इसे तोड़ने या इसके खिलाफ अभियान चलानेवाला कोई जत्था या समूह नहीं है. राजनीति में सक्रिय लोगों के लिए यह अकाल मानवीय मुद्दा नहीं महज राजनीतिक सवाल है. भाजपा के लिए तो अकाल कोई मुद्दा नहीं है. भाकपा और माकपा की भी कोई विशिष्ट भूमिका नहीं है (क्रमश:)

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