युवा दिवस पर प्रभात खबर.कॉम की विशेष प्रस्तुति:डीएसपी निशा को सिंघम से मिली प्रेरणा
भारत में युवाओं की जनसंख्या विश्व में सर्वाधिक है. आज पूरा विश्व भारत की युवाशक्ति को उम्मीद भरी निगाहों से देख रहा है. भारत की युवाशक्ति न सिर्फ ऊर्जावान है, बल्कि नयी संभानाओं से परिपूर्ण भी है. जरूरत है, तो मात्र सही मार्गदर्शन और प्रेरणा की. कल युवा दिवस है इस मौके पर हम न […]
भारत में युवाओं की जनसंख्या विश्व में सर्वाधिक है. आज पूरा विश्व भारत की युवाशक्ति को उम्मीद भरी निगाहों से देख रहा है. भारत की युवाशक्ति न सिर्फ ऊर्जावान है, बल्कि नयी संभानाओं से परिपूर्ण भी है. जरूरत है, तो मात्र सही मार्गदर्शन और प्रेरणा की. कल युवा दिवस है इस मौके पर हम न सिर्फ स्वामी विवेकानंद को श्रद्धांजलि दे रहें हैं, बल्कि, कुछ ऐसे युवाओं की चर्चा कर रहे हैं, जिन्होंने अपने कार्यों से न सिर्फ समाज में अपनी जगह बनायी है, बल्कि दूसरों के लिए भी मिसाल बने हैं.
सिलिकॉन विलेज बनाना चाहते हैं सौम्य दीप चटर्जी
सौम्य दीप जब स्कूली पढ़ाई कर रहे थे, तभी से उन्हें कंप्यूटर से खास लगाव था. वे बताते हैं कि उस वक्त कंप्यूटर और इंटरनेट लोगों के बीच अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहा था. सौम्य गरीब युवाओं को निशुल्क कंप्यूटर का प्रशिक्षण देते हैं. साथ ही वे समाज कल्याण के कार्यों से भी जुडे हैं. झारखंड की राजधानी रांची के डीएवी, हेहल से दसवीं की पढ़ाई करने के बाद सौम्य ने कोलकाता के केंद्रीय विद्यालय से बारहवीं की शिक्षा ली. कोलकाता यूनिर्विसटी से बीएससी और एमएससी की डिग्री लेने के बाद वे जन स्वाभिमान वेलफेयर सोसाइटी नामक एक संस्थान से जुड़ गये. यह संस्थान आईआईटी और आईआईएम के छात्रों द्वारा ही संगठित किया गया है.
सौम्य ने बताया कि यह संस्थान गरीब युवाओं को नि:शुल्क कंप्यूटर प्रशिक्षण देता है. वेब डिजाइनिंग, कंप्यूटर बेसिक, एचटीएएल, जावा स्क्रप्टि इत्यादि की ट्रेनिंग यह संस्थान देता है. सौम्य इस संस्थान में बतौर प्रजेक्ट हेड काम करते हैं.
सौम्य ने बताया कि पढ़ाई के आगे पैसे की बाधा न आये इसलिए वे उन युवाओं को ट्रेनिंग देते हैं जिनके अभिभावक रिक्शा चलाकर और होटल में काम करके अपने परिवार का पेट पालते हैं. सौम्य युवाओं को इस शर्त पर ट्रेनिंग देते हैं कि वे और चार अन्य लोगों को भी कंप्यूटर प्रशिक्षित करेंगे. सौम्य लोगों को पुराने लैपटॉप, पर्सनल कंप्यूटर और दूसरे एक्सेसरीज अपनी संस्था को दान करने के लिए प्रेरित करते हैं.
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका स्थित सिलिकॉन वैली के तर्ज पर सौम्य भारत में सिलिकॉन विलेज बनाना चाहते हैं. वे समाज कल्याण के अन्य कार्यों से जुड़े हैं. हाल ही में उन्होंने अपनी संस्थान की ओर से गरीब लोगों के बीच कंबल वितरण किया. वे रक्तदान शिविर आयोजित करवाते हैं साथ ही पेयजल की समस्या को दूर करने के लिए चापानल भी लगवाते हैं.सौम्य भविष्य में एक वैज्ञानिक बनकर देश सेवा करना चाहते हैं. वे फिलहाल पीएचडी की पढ़ाई कर रहे हैं.
राजमिस्री बन रीबी ने उठायी परिवार की जिम्मेदारी
रीबी उरांव एक ऐसा नाम, जो आज लोगों के लिए मिसाल बन गयी हैं. परिवार की जिम्मेदारी उठाने के लिए रीबी ने धारा के विपरीत जाकर राजमिस्त्री का काम चुना. आमतौर पर महिलाएं राजमिस्री का काम नहीं करती हैं, आज भी पूरे प्रदेश में गिनती की ही महिलाएं यह काम करती दिखती हैं. रीबी जब अपने हाथों में लोहे की करनी थाम लेती हैं, तो उसे देखना अद्भुत प्रतीत होता है. रांची जिले के बेडो प्रखंड, रानी टोली गांव की रहने वाली रीबी पेशे से राजमिस्त्री हैं. हालांकि अभी वे खुद को इस काम में पारंगत नहीं बताती हैं.
चार साल पहले रीबी के पति की मौत एक हादसे में हो गयी थी. उस समय अपने तीन बच्चों को पालने की जिम्मेदारी उनपर आ गयी. रीबी चूंकि अनपढ हैं, इसलिए उन्हें सहजता से कोई काम नहीं मिला. चूंकि उन्होंने पहले दिहाडी मजदूरी की थी, इसलिए राजमिस्री का काम उन्होंने सिखना शुरू किया और आज उनकी इस रूप में पहचान स्थापित हो गयी है. रीबी ने बताया, आरंभ में जब वह काम की शुरुआत कर रही थीं, तो उन्हें गांव से दिन-दिन भर बाहर रहना पड़ता था. लेकिन उन्होंने परेशानियों के आगे घुटने नहीं टेके.
रीबी का कहना है, मैं खुद पढ़ नहीं पायी, लेकिन अपने बच्चों को पढ़ाने में कोई भी कसर नहीं छोडूंगी. चाहे इसके लिए कुछ भी क्यों न करना पड़े. रीबी ने राजमिस्री का काम मजबूरी में शुरू किया था, लेकिन अब यह उनके लिए जुनून बन गया है.
गरीबों को निशुल्क न्याय दिलाते हैं अनूप
रांची उच्च न्यायालय में वकालत कर रहे 27 साल के युवा वकील अनूप कुमार अग्रवाल गरीबों को निशुल्क न्याय दिलाने के मिशन में शामिल हैं. साथ ही वे जनहित के मुद्दों को उठाकर भी मुकदमे दायर करते हैं और सामाजिक दायित्वों को निभा रहे हैं. भारतीय विद्यापीठ न्यू लॉ कालेज पुणे से इन्होंने कानून की शिक्षा प्राप्त की है और रांची उच्च न्यायालय में 2011 से वकालत कर रहे हैं. इससे पहले उन्होंने दिल्ली में भीे वकालत की है. अनूप ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क से भी जुड़े है. इन्होंने जनहित के कई मुद्दों पर याचिका दायर की है.
अनूप अब तक असंगठित मजदूरों को न्याय दिलाने, दामोदर नदी की बदहाली और नक्सली हिंसा में मारे गये लोगों के आश्रितों को मुआवजा दिलाने के लिए जनहित याचिका दायर कर चुके हैं और पीडितों को न्याय दिलाने के लिए प्रयासरत हैं. अनूप बताते हैं कि समाज के हित के लिए काम करने का जुनून उनके मन में बचपन से ही है.कॉलेज में इन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर प्रतिज्ञा नाम का एक ट्रस्ट बनाया था जिसके माध्यम से वे गरीब बच्चों को शिक्षित करने का काम करते थे. आज भी यह काम सफलता पूर्वक चल रहा है. अनूप संपन्न लोगों से यह आग्रह करते हैं कि वे कम से कम एक गरीब बच्चे की शिक्षा का खर्च उठायें. वे कहते हैं कि हमारी सरकार एक बच्चे की शिक्षा के पीछे 1400 से 1500 रुपये खर्च करती है.
अगर अभिभावकों की इच्छा के अनुसार इन पैसों को खर्च किया जाये, तो बच्चों को इसका ज्यादा फायदा मिलेगा. अनूप ने शिक्षा के अधिकार पर शोध किया है. अगस्त 2010 में इन्होंने बाल अपराध के केस पर काम करना शुरू किया. जहां यह देखने को मिला कि बच्चों को वयस्क बताकर उनपर कई आरोप लगाये जाते हैं, जिससे उनका पूरा जीवन नष्ट हो जाता है. अनूप कहते है अभी कई ऐसे जनहित के मुद्दे हैं जिस पर याचिका दायर करने की योजना है. जैसे महिला अपराधियों के साथ रहने वाले बच्चों के भविष्य निर्माण के लिए अबतक कोई व्यवस्था नहीं है.बच्चों को निर्दोष होते हुए भी जेल में रहना पड़ता है. गिरिडीह के स्पंज आयरन फैक्ट्री में प्रदूषण का स्तर इतना ज्यादा है कि वहां के बच्चे अंधे हो रहे हैं. ऐसे कई मुद्दों पर किसी की नजर नहीं है.मैं इनके खिलाफ जंग लडना चाहता हूं.
सिंघम और दबंग जैसी फिल्मों से मिली प्रेरणा : निशा मुरमू
युवाओं को अपने जीवन का लक्ष्य कैरियर निर्माण के शुरुआती दिनों से ही निश्चित कर लेना चाहिए. ऐसा करने से लक्ष्य पाना आसान हो जाता है. ये कहना है हटिया डीएसपी निशा मुरमू का . इन्हें बचपन से ही पुलिस सेवा में जाने की इच्छा थी. उस वक्त उन्हें खाकी वर्दी काफी आर्किषत करती थी. इन्होंने मन में ठान लिया था कि बड़े होकर पुलिस अधिकारी बनना है. साहिबगंज की रहनेवाली निशा मुरमू ने अपनी स्कूली शिक्षा रांची के डीएवी स्कूल से प्राप्त की है. संतजेवियर्स कॉलेज से इन्होंने स्नातक की डिग्री ली है. निशा का मानना है कि आपने जीवन में कोई फैसला ले लिया, तो उसपर आपको कायम रहना होगा.
अगर आपमें लचीलापन है तो यह आपकी कमजोरी है. निशा कहती हैं कि खाकी वर्दी तो उन्हें शुरू से आर्किषत करती रही है, लेकिन सिंघम और दबंग जैसी फिल्मों ने उन्हें बेझिझक काम करने की प्रेरणा दी है.निशा मानती हैं कि हमारे समाज में युवा खासकर महिलाएं अपने आप को कमजोर समझतीं हैं, यही कारण है कि वे आज भी अपनी सही जगह को प्राप्त नहीं कर पायीं हैं. हमारे समाज में महिलाएं पुरुषों से ज्यादा काम करतीं हैं.
लेकिन वे कभी नहीं कहतीं हैं कि मैं थक गयी हूं. निशा कहती हैं कि युवा खुद को मानसिक तौर पर तैयार करें क्योंकि वे जैसा सोचते हैं वैसा ही जीवन खुद के लिए चुनते हैं. निशा के अनुसार देश की जनसंख्या का सबसे बड़ा हिस्सा युवाओं का है. यदि युवा चाहें तो देश की तसवीर बदल सकती है.
(प्रस्तुति : अरविंद मिश्र, अमिताभ कुमार, शौर्य पुंज श्रीवास्तव एवं पंकज पाठक)