कबाड़ हो गयी गाड़ियां, न सफाई न मरम्मत
रांचीः शहर की साफ-सफाई एक जनवरी,2014 से रांची नगर निगम के जिम्मे है. पर, निगम की साफ-सफाई जमीन पर उतरती नहीं दिख रही है. कारण, निगम के पास संसाधनों की कमी है. तीन साल पहले नगर निगम ने एटूजेड प्रबंधन को सफाई के लिए कई संसाधन मुहैया कराये थे, पर अब ये कबाड़ में तब्दील […]
रांचीः शहर की साफ-सफाई एक जनवरी,2014 से रांची नगर निगम के जिम्मे है. पर, निगम की साफ-सफाई जमीन पर उतरती नहीं दिख रही है. कारण, निगम के पास संसाधनों की कमी है. तीन साल पहले नगर निगम ने एटूजेड प्रबंधन को सफाई के लिए कई संसाधन मुहैया कराये थे, पर अब ये कबाड़ में तब्दील हो चुके हैं. इन संसाधनों में 60 लाख के स्वीपिंग मशीन से लेकर 28 लाख के कंपैक्टर तक शामिल हैं.
14 में 10 खराब
निगम द्वारा शहर की प्रमुख सड़कों के डस्टबीन से कचरे के उठाव के लिए 14 कंपैक्टर की खरीदारी की गयी थी. पिछले साल भर से इन 14 कंपैक्टरों में से 10 खराब हैं. इन वाहनों की मरम्मत के लिए न तो एटूजेड प्रबंधन ने जहमत उठायी, न ही निगम अधिकारियों ने इनके मरम्मत के लिए कोई दिशा-निर्देश जारी किया. नतीजा, आज 10 कंपैक्टर नागा बाबा खटाल स्थित जगह में जंग खा रहे हैं. एटूजेड के ही एक वरीय पदाधिकारी की मानें तो कंपनी की रुचि वाहनों की मरम्मत में बिल्कुल नहीं थी. मामूली खराबी को लेकर लाखों के वाहनों को कई कई माह तक गोदाम में छोड़ दिया जाता था.
करोड़ों के वाहन बेकार पड़े हैं
वर्तमान में नागाबाबा खटाल के इस यार्ड में 10 टाटा एस एक साल से(प्रति टाटा एस कीमत तीन लाख), चार ट्रैक्टर आठ माह से(प्रत्येक ट्रैक्टर की कीमत), 10 कंपैक्टर एक साल से(प्रत्येक कंपैक्टर कीमत 25 लाख), तीन डंपर एक साल से(प्रत्येक की कीमत 22 लाख) व एक स्वीपिंग मशीन (कीमत 60 लाख)पिछले एक साल से इस यार्ड में पड़े हुए हैं. इसके अलावा 200 से अधिक रिक्शा भी यहां खराब हैं. इन सभी वाहनों की खरीदारी वर्ष 2010 में हुई थी. इस प्रकार ये नये वाहन देखरेख के अभाव में तीन साल में ही कबाड़ में तब्दील होने को हैं.