एक हिंदू मन की व्यथा

-अजय- रजरप्पा सिद्ध पीठ है. देवी का दर्शन करने दूर-दूर से लोग आते हैं. पर मंदिर में कीचड़, गंदगी खा कर जूठन गिराने के दृश्य सामान्य हैं. विभिन्न धर्मों में भी पूजा घर, पवित्र और शांत के पीठ माने जाते हैं. गिरजाघर, मंदिर, मसजिद या गुरुद्वारे में पहुंचकर मनुष्य जीवन के मर्म ढूंढ़ता है. तनाव, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 25, 2016 11:38 AM

-अजय-

रजरप्पा सिद्ध पीठ है. देवी का दर्शन करने दूर-दूर से लोग आते हैं. पर मंदिर में कीचड़, गंदगी खा कर जूठन गिराने के दृश्य सामान्य हैं. विभिन्न धर्मों में भी पूजा घर, पवित्र और शांत के पीठ माने जाते हैं. गिरजाघर, मंदिर, मसजिद या गुरुद्वारे में पहुंचकर मनुष्य जीवन के मर्म ढूंढ़ता है. तनाव, बेचैनी द्वेष, घृणा से मुक्ति की याचना करता है, निश्चित रूप से रजरप्पा देवी मंदिर में भी श्रद्धालु इसी मुक्ति के लिए जाते होंगे. पर गंदगी-शोर-चीख पुकार के बीच कौन-सी शांति मिल सकती है?

क्या मंदिर के परिसर की सफाई या उसे पवित्र रखने की जिम्मेदारी श्रद्धालुओं की नहीं है? मूंगफली खा कर दोने फेंकना, औरतों-लड़कियों को देखकर व्यंग्य करना, पुजारियों द्वारा दर्शन कराने में तिजारत, क्या हिंदू मंदिरों की कल्पना इन्हीं बुनियादों पर टिकी है? जो लोग हिंदू देश बनाने का पताका उठाये घूम रहे हैं, क्या उनमें कभी हिंदू धर्म के आंतरिक सुधारों के प्रति आग्रह पैदा नहीं होगा? किसी गिरजाघर में आप चले जाइए वहां की सफाई, पवित्रता और मौन, आपके अंदर एक अजीब सात्विक अनुभूति पैदा करते हैं.

दक्षिण के मंदिरों में जाइए, पुजारी आपको तबाह नहीं करेंगे. सफाई मिलेगी. उच्छंखलता की हवा उत्तर भारत से अभी तक दक्षिण नहीं पहुंची है. उत्तर भारत में हजारों ऐसे पुराने मंदिर हैं, जहां आज पूजा-अर्चना तक नहीं होती. वर्ष में एकाध बार द्वीप जल गये. पूजा हो गयी, तो बहुत. आरा-बक्सर सासाराम अंचल से पिछले एक दशक में कई विशिष्ट पुरानी मूर्तियां चुरा ली गयीं. अधितकर तस्करों के सौजन्य से वे विदेश पहुंच चुकी होंगी. इस काम में एकाध लोग पकड़े गये तो वे हिंदू ही हैं. ‘हिंदूत्व खतरे में’ नारे लगा कर गद्दी पानेवाले क्या कभी हिंदुओं में समाज सुधार की बात सोचेंगे?

विश्व हिंदू परिषद और भाजपा को आज दलित याद आ रहे हैं, पर क्या दलितों-हरिजनों-पिछड़ों के मंदिर में ससम्मान प्रवेश का अभियान कभी इन लोगों ने चलाया? रजरप्पा में जहां देवी का मंदिर है, वह अद्भुत रमणीक स्थल है. पर पिकनिक मनाने वाले देवी से महज यश-धन की याचना करनेवाले, और ढोंग करनेवाले श्रद्धालु क्या उस मंदिर को साफ सुंदर नहीं रख सकते? यह दायित्व एक-एक व्यक्ति पर है. सरकार, प्रशासन, पुलिस पर भरोसा करते-करते या उनके भरोसे रहते-रहते लोग अपनी ताकत भूल चुके हैं. लोकताकत से ही सृजन होता है.

तोड़-फोड़ या विघ्न-बाधा के काम आसान है. आलोचक होना, गाली-गलौज करना सबसे आसान चीज. पर सृजन की चुनौती स्वीकारने वाले, कुछ नया करने का संकल्प पैदा करने वाले और अपनी ताकत से बड़े काम करनेवाले ही इतिहास में अपना स्थान बनाते हैं. क्या हिंदू धर्म में व्यापक आंतरिक सुधार के लिए चेतना पैदा करने का कोई आंदोलन नहीं हो सकता.

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