लीज पर एचइसी अस्पताल: अपोलो के आने से किन्हें परेशानी है?

-दर्शक- अपोलो देश के बेहतर अस्पतालों में से एक है, हर रोज रांची या बिहार से सैकड़ों की तादाद में लोग अपोलो, बेल्लोर, बंबई, दिल्ली चिकित्सा के लिए जाते हैं, दो कारणों से. (1) बेहतर चिकित्सा सुविधाएं यहां उपलब्धि नहीं हैं. (2) कुछ जगहों को छोड़ कर यहां चिकित्सा कराना विश्वसनीय नहीं रह गया है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 30, 2016 1:29 PM

-दर्शक-

अपोलो देश के बेहतर अस्पतालों में से एक है, हर रोज रांची या बिहार से सैकड़ों की तादाद में लोग अपोलो, बेल्लोर, बंबई, दिल्ली चिकित्सा के लिए जाते हैं, दो कारणों से. (1) बेहतर चिकित्सा सुविधाएं यहां उपलब्धि नहीं हैं. (2) कुछ जगहों को छोड़ कर यहां चिकित्सा कराना विश्वसनीय नहीं रह गया है. कभी पटना मेडिकल कॉलेज पूर्वोत्तर भारत के बेहतर चिकित्सा संस्थानों में माना जाता था. पूर्वोत्तर राज्यों और बंगाल-उड़ीसा से लोग वहां इलाज कराने आते थे. आज बिहार में क्या चिकित्सा-पढ़ाई-इंजीनियरिंग-मैनेजमेंट का कोई संस्थान रह गया है, जिस पर बिहारी गर्व कर सकें, लेकिन यह मत समझिए की सरकारों ने संस्थानों को बेहतर बनाने के लिए पैसे उपलब्ध नहीं कराए.

सरकारें, तो अब आर्थिक संकट से गुजर रही हैं. पिछले चालीस वर्षों में जो अरबों-अरबों रुपये के फंड शिक्षा, चिकित्सा, इंजीनियरिंग संस्थाओं पर बहाये गये, वे राजनेताओं-अधिकारियों और ठेकेदारों की जेब में गये. आज पटना मेडिकल कॉलेज जैसे प्रतिष्ठित संस्था में ‘खतरनाक भवनों’ में कक्षाएं चल रही हैं. बरसात में पानी बहता है. गंदगी-कचड़ा जमा है. स्वस्थ आदमी वहां जा कर अस्वस्थ बन जाये, यह माहौल हैं. इस स्थिति-बदहाली के लिए जिम्मेदार कौन है? अपोलो या ऐसे निजी अस्पतालों ने आ कर ऐसा नहीं किया है. बिहार के किसी सरकारी अस्पताल में आप पांव रखें, गंदगी या दुर्गंध के कारण आप अस्वस्थ हो जाएंगे.

यही हाल एचइसी का है. सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र एचइसी ने इस अस्पताल को आरंभ में हर सुविधाएं मुहैया करायी. एचइसी का आर्थिक संकट तो पिछले कुछ वर्षों में शुरू हुआ है? इसके पहले तो पूरी सरकारी मदद मिलती थी. उस दौरान अगर एचइसी या उसके अस्पताल का देश का बढ़िया चिकित्सा केंद्र लोगों ने बना लिया होता, तो यह स्थिति क्यों आती? किसने इस अस्पताल को ‘अपोलो’ बनने से रोका था? ‘अपोलो’ जैसे चिकित्सा संस्थान भी रातों रात नहीं बन गये. ऐसे किसी भी संस्थान के निर्माण के पीछे असाध्य लगन, तप, त्याग और श्रम का अभाव रहा, इस कारण ऐसी संस्थाएं नहीं बन सकीं. अगर आज भी हम ईमानदारी से अपनी पुरानी गलतियों-चूकों का सही विश्लेषण नहीं करेंगे, तो आगे नहीं बढ़ सकते. जो समाज सृजन की चुनौती नहीं स्वीकारता, वह कूड़े में जाने के लिए अभिशप्त है. उसे कोई बचा नहीं सकता.

आज जो बिहारी चिकित्सा के लिए बाहर जा कर ठोकरें खाते हैं, रिरियाते हैं. ठहरने के लिए गिड़गिड़ाते हैं. बीमार व्यक्ति के साथ-साथ अयाचित मुसीबतें झेलते हैं. ऐसे लोगों के लिए कौन सोचता है? आज दुनिया में जो लहर चल रही है, उसमें अगर एचइसी अपना अस्पताल चलाने में सक्षम नहीं रहा, तो उसे कोई बचा नहीं सकता. यह भी साबित हो चुका है कि जो संस्थाएं सक्षम, बेहतर और गुण के आधार पर बाजार में अपनी हैसियत नहीं बना पाएंगी, वे अब नहीं चलेंगी. अनुशासनहीनता, अक्षमता और खराब काम के बल कोई बाजार में नहीं टिकेगा. सरकारी अनुदान से अक्षम संस्थाओं को टिकाये रखने के दिन लद गये. अगर एचइसी प्रबंधन अच्छे डॉक्टरों को रखने की हैसियत नहीं रखता, तो यहां कौन इलाज कराने आएगा?

अपोलो जैसे अस्पतालों का बिहार आना आवश्यक है. बल्कि शिक्षा, इंजीनियरिंग, प्रबंधन आदि में बेहतर से बेहतर निजी संस्थाओं को आमंत्रित करने की कोशिश होनी चाहिए. ताकि बिहार का भविष्य संवर सके. सरकारों और उनके कारिंदों तो हमें ‘बजबजाता’ ‘ दुर्गंधित वर्तमान’ और अंधकारमय भविष्य सौंप ही दिया है. इससे उबरने के लिए संकल्प लेना आज समय की सबसे बड़ी चुनौती है.

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