इपिल सामद बने आदिवासी हो समाज युवा महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व महासचिव गब्बरसिंह हेंब्रम
चाईबासा हरिगुटू में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी युवा महोत्सव कार्यक्रम के समापन समारोह में रविवार को आदिवासी हो समाज युवा महासभा राष्ट्रीय कमेटी का पुनर्गठन किया गया. नयी कमेटी में राष्ट्रीय अध्यक्ष- इपिल सामद, उपाध्यक्ष- सुरा बिरूली, महासचिव-गब्बरसिंह हेंब्रम, कोषाध्यक्ष- सुरेंद्र पूर्ति को सर्वसम्मति से अगले तीन साल के लिए जिम्मेदारी दी गयी.
जमशेदपुर: चाईबासा हरिगुटू में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी युवा महोत्सव कार्यक्रम के समापन समारोह में रविवार को आदिवासी हो समाज युवा महासभा राष्ट्रीय कमेटी का पुनर्गठन किया गया. नयी कमेटी में राष्ट्रीय अध्यक्ष- इपिल सामद, उपाध्यक्ष- सुरा बिरूली, महासचिव-गब्बरसिंह हेंब्रम, कोषाध्यक्ष- सुरेंद्र पूर्ति को सर्वसम्मति से अगले तीन साल के लिए जिम्मेदारी दी गयी. आदिवासी ‘हो’ समाज महासभा की नियमावली के तहत चार पदों के निर्वाचन के लिए चुनाव संचालन समिति का गठन किया गया था. आदिवासी हो समाज महासभा कला एवं सांस्कृतिक भवन में आयोजित समारोह में मुख्य चुनाव पदाधिकारी देवेंद्र चांपिया, पीठासीन पदाधिकारी सोमा कोड़ा, चुनाव अधिकारी देवेंद्र सिंकू, पर्यवेक्षक छोटेलाल तामसोय व बामिया बारी ने चुनाव से संबंधित सारी प्रक्रिया पूर्ण करायी. प्रतिनिधि सभा में उपस्थित लोगों के सामने चयनित पदाधिकारियों के नामों की घोषणा की गयी. उसके बाद उन्हें प्रमाण पत्र देकर शपथ दिलायी गयी. महोत्सव में सतीश सामड और सोमा जेराई ने महासभा देशाऊली परिसर में पारंपरिक रीति-रिवाज से पूजा अर्चना कर कार्यक्रम संपन्न कराया. महोत्सव में हो समाज की भाषा-संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाज, धर्म एवं प्राचीन संस्कृति का खेलकूद प्रतियोगिता हुई, महोत्सव को सफल बनाने में महासभा के पदाधिकारियों ने योगदान दिया. इस अवसर पर डॉ रीना गोडसोरा, डॉ मनोज कोड़ा, टीएसएएफ अधिकारी, शिव शंकर कांडेयांग, महिला महासभा अध्यक्ष अंजु सामड, युवा महासभा पूर्व अध्यक्ष भूषण पाट पिंगुवा, रमेश जेराई सहित महासभा, युवा महासभा एवं अन्य सामाजिक संगठन के प्रतिनिधि मौजूद थे.
दो दिवसीय आदिवासी युवा महोत्सव: भाषा-संस्कृति और पारंपरिक खेलकूद का संगम
दो दिवसीय आदिवासी युवा महोत्सव का आयोजन बड़े उत्साह और उमंग के साथ किया गया. इस महोत्सव का मुख्य उद्देश्य आदिवासी समुदाय के युवा वर्ग को उनकी भाषा, संस्कृति और धर्म-दस्तूर से अवगत कराना था. महोत्सव में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों और चर्चाओं के माध्यम से समाज के लोगों ने अपनी समृद्ध धरोहर के बारे में गहराई से जाना. कार्यक्रम की शुरुआत आदिवासी परंपराओं और रीति-रिवाजों पर चर्चा से हुई. भाषा विशेषज्ञों ने आदिवासी भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन पर बल दिया. संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर भी चर्चा की गई, जिसमें लोकगीत, लोकनृत्य और पारंपरिक हस्तशिल्प शामिल थे. इस चर्चा का उद्देश्य युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ना और उन्हें अपनी धरोहर के महत्व को समझाना था.
महोत्सव के दूसरे दिन पारंपरिक खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया. इन खेलों ने न केवल प्रतिभागियों को शारीरिक और मानसिक रूप से सक्रिय रखा, बल्कि उन्हें अपनी सांस्कृतिक धरोहर से भी जोड़ा. खेलों के माध्यम से युवाओं ने टीमवर्क, अनुशासन और प्रतिस्पर्धा का महत्व भी सीखा. समाज के लोगों ने महोत्सव का भरपूर लुत्फ उठाया और पारंपरिक खेलकूद का महत्व समझा. खेलों ने न केवल मनोरंजन प्रदान किया, बल्कि सामुदायिक भावना को भी मजबूत किया.