वेतन समझौता मामले में मजदूरों को बरगला रहा है इंटक : रवींद्र मिश्रा

बेरमो: भामसं से संबद्ध सीसीएल कोलियरी कर्मचारी संघ के संयुक्त महामंत्री व सीसीएल कल्याण समिति के सदस्य रवींद्र कुमार मिश्रा ने वेतन समझौता मामले में मजदूरों को बरगलाने का आरोप लगाया है. श्री मिश्रा प्रेस वार्ता में बोल रहे थे. कहा कि कोर्ट व कोल इंडिया से मिले वनवास के कारण इंटक के लोग बौखला […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 27, 2017 12:33 PM
बेरमो: भामसं से संबद्ध सीसीएल कोलियरी कर्मचारी संघ के संयुक्त महामंत्री व सीसीएल कल्याण समिति के सदस्य रवींद्र कुमार मिश्रा ने वेतन समझौता मामले में मजदूरों को बरगलाने का आरोप लगाया है. श्री मिश्रा प्रेस वार्ता में बोल रहे थे. कहा कि कोर्ट व कोल इंडिया से मिले वनवास के कारण इंटक के लोग बौखला गये हैं. कहा कि वर्ष 2014 में पहली बार भामसं ने एक ही बैठक में बोनस पर फैसला करा लिया था.
इंटक पर भ्रमित करने का आरोप : श्री मिश्रा ने कहा कि 1990 में पीवी नरसिंह राव की सरकार ने देश में उदारीकरण लागू कर संगठित व असंगठित मजदूरों का हक छीनने वाला कानून लाया. उस समय मजदूर का मसीहा कहलाने वाले लोग कहां थे. सिर्फ मजदूरों की मौत पर ही नियोजन मिलेगा, यह करार राजेंद्र प्रसाद सिंह के समय में ही हुआ था. उन्होंने कहा कि इंटक मजदूरों को भ्रमित कर रहा है कि 10 वां वेतन समझौता में देर हो रही है. तथ्य है कि कांग्रेस के कार्यकाल में 5 वां तथा 8 वां वेतन समझौता चार वर्ष सात माह देर से हुआ था. कोल इंडिया का शेयर बेचने का प्रस्ताव कांग्रेस के कार्यकाल में ही आया था. कहा कि भामसं ने पहले भी मजदूरों की ताकत पर पीएफ के सवाल पर तत्कालीन वाजपेयी सरकार के समय संघर्ष करके फैसला वापस कराया.

कोल इंडिया में भामसं के महासंघ ने एनसीडब्ल्यू ए 10 की बैठक से पूर्व प्रबंधन से कहा है कि एनसीडब्ल्यूए 4 के जिन मुद्दों पर प्रबंधन सहमत है पहले उसे लागू करे. इसके बाद ही 10 वां वेतन समझौता पर चर्चा होगी.
वेतन समझौता में हुआ विलंब : श्री मिश्रा ने कहा कि दूसरा वेतन समझौता आठ माह 11 दिन देर से, तीसरा वेतन समझौता 10 माह 10 दिन देर से, चौथा समझौता दो वर्ष 7 माह देर से, पांचवां समझौता 4 वर्ष 7 माह देर से, छठा समझौता 4 वर्ष 6 माह देर से, सातवां 4 वर्ष देर से, आठवां 4 वर्ष 7 माह देर से तथा नौवां वेतन समझौता 7 माह देर से हुआ था. इस कारण अभी से हाय-तौबा मचाना कहीं से न्यायोचित नहीं है.

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