जिस कंपनी को जवानी दी, बुढ़ापे में उसने ही भुखमरी के कगार पर पहुंचा दिया
एचएससीएल. स्वैच्छिक सेवा-सेवानिवृत्त कर्मचारी संघ 2015 से लड़ रहा अधिकार की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी एचएससीएल प्रबंधन नहीं कर रहा है भुगतान केंद्र सरकार ने प्रबंधन को भुगतान के लिए दिया है 110 करोड़ का बजट बोकारो : क्या बतायें सर, संघर्ष तो हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गया है. जब […]
एचएससीएल. स्वैच्छिक सेवा-सेवानिवृत्त कर्मचारी संघ 2015 से लड़ रहा अधिकार की लड़ाई
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी एचएससीएल प्रबंधन नहीं कर रहा है भुगतान
केंद्र सरकार ने प्रबंधन को भुगतान के लिए दिया है 110 करोड़ का बजट
बोकारो : क्या बतायें सर, संघर्ष तो हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गया है. जब नौकरी में थे, तो कंपनी की बेहतरी के लिए संघर्ष करते रहे. अब सेवानिवृत्त हो गये हैं, तो अधिकार (बकाया राशि) के लिए संघर्ष कर रहे हैं. कभी सोचा नहीं था कि जिस कंपनी को जवानी दे दी, वही कंपनी बुढ़ापा में भुखमरी के कगार पर लाकर खड़ा कर देगी. यह कहते हुए सत्यनारायण प्रसाद की आंख डबडबा जाती है. फौरन खुद को संभालते हुए आगे की बात करने लगते हैं. बताते हैं : बेचारगी का आलम यह है कि कहीं प्रबंधन की बेरूखी के आगे आंसू की जमापूंजी भी खत्म नहीं हो जाये. यह सिर्फ सत्यनारायण प्रसाद की कहानी नहीं है, बल्कि एचएससीएल से सेवानिवृत्त हुए लगभग 6000 अधिकारी व कर्मियों की दास्तां है. एचएससीएल के पूर्व (रिटायर्ड व वीआरएस) अधिकारी व कर्मी तीन फरवरी 2015 से अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं.
पे रिविजन, एरियर, डीए, छुट्टी, एक्स ग्रेशिया व ग्रेच्युटी भुगतान के लिए लगातार तीन साल से संघर्ष जारी है. संघर्ष को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी साथ मिला. सुप्रीम कोर्ट ने प्रबंधन को बकाया भुगतान करने का आदेश दिया. इसके बाद 25 मई 2016 को केंद्र सरकार ने बकाया भुगतान के लिए प्रबंधन को 110 करोड़ रुपया स्पेशल पैकेज के रूप में दिया. बावजूद इसके पूर्व अधिकारी व कर्मी को लाभ नहीं मिला. सरकार ने जारी मिनट्स में यह भी कहा कि यदि जरूरत होगी, तो प्रबंधन को और पैसा दिया जायेगा.
संघर्ष की कहानी बता रहा एक आंदोलन
आंदोलन जारी है, जिंदगी
हार गयी…
तीन साल पहले शुरू हुआ आंदोलन आज भी जारी है. लेकिन, आंदोलन के कई साथी जीवन की जंग में हार गये. आंदोलन में शामिल 450 से अधिक लोगों की मौत हो गयी. अब इनकी लड़ाई इनके आश्रित लड़ रहे हैं. इसपर भी प्रबंधन का कलेजा नहीं पसीजा. प्रबंधन आश्रितों को भुगतान के बजाय कोर्ट सक्सेशन लेटर की मांग कर रहा है. ताकि प्रबंधन को पता चल सके कि आंदोलन में शामिल लोग ही सही मायने में आश्रित हैं. जबकि प्रबंधन के पास पहले से ही आश्रितों की पहचान मौजूद है.
क्या है मामला
1996-97 में एचएससीएल का पांचवां वेज रिविजन किया गया. वेज रिविजन के बाद दर्जनों कर्मी को एरियर का भुगतान करना था. इसे देने के बजाय कंपनी ने एक जनवरी 1999 को 22 प्रतिशत के रूप में देय महंगाई भत्ता को फ्रीज कर दिया. छुट्टी का पैसा, मेडिकल लीव का पैसा समेत अन्य अधिकारों पर भी अतिक्रमण किया गया. इसे लेकर मजदूर यूनियन (भिलाई) ने बिलासपुर उच्च न्यायालय में एचएससीएल मुख्य प्रबंधन कोलकाता व एचएससीएल भिलाई के स्थानीय यूनिट के खिलाफ आवाज उठायी. फैसला कर्मियों के पक्ष में आया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में गया. सुप्रीम कोर्ट ने बिलासपुर उच्च न्यायालय के फैसले पर मोहर लगा दी. मई 2016 में केंद्र सरकार ने 110 करोड़ का विशेष पैकेज जारी कर दिया.
पहले दैनिक, अब साप्ताहिक हो गया है आंदोलन
आंदोलन शुरुआती दिन में दैनिक रूप से होता था. हर दिन पूर्व अधिकारी व कर्मी बोकारो स्थित एचएससीएल एडीएम भवन के मुख्य द्वार पर जमा होकर आवाज मुखर करते थे. लेकिन, आर्थिक समस्या के कारण आंदोलन साप्ताहिक हो गया. अब हर गुरुवार को पूर्व कर्मी व अधिकारी का जमावड़ा मुख्य द्वार पर होता है. सुबह 10 बजे से 03 बजे तक कर्मी प्रबंधन के खिलाफ आवाज बुलंद करते हैं.
मई 2017 से शुरू हुआ भुगतान
केंद्र सरकार ने मई 2016 को विशेष पैकेज पूर्व कर्मी व अधिकारी को बकाया भुगतान करने के लिए दिया. लेकिन, प्रबंधन ने मई 2017 से पार्ट वाइज भुगतान शुरू किया. 6000 से अधिक अधिकारी व कर्मी की जगह 1800 को भुगतान किया गया. लेकिन, इसमें भी एक्सग्रेसिया व ग्रेच्युटी के अंतर का भुगतान नहीं किया जा रहा है. वहीं मृत कर्मचारी के आश्रित को बकाया भुगतान नहीं किया जा रहा है.
पे रीविजन, एरियर, डीए, छुट्टी, एक्सग्रेशिया व ग्रेच्युटी भुगतान की लड़ाई
जनवरी 2010 में रिटायर्ड हुआ. चार लाख रुपये से अधिक का बकाया है. प्रबंधन हठधर्मिता के कारण भुगतान नहीं कर रहा है.
विजय कुमार, सेक्टर 04
सरकार से विशेष पैकेज जारी होने के बाद भी भुगतान नहीं हो रहा है. यह समझ के बाहर है. दिसंबर 2009 में रिटायर हुआ हूं.
केके उपाध्याय, कैंप 02
2000 में स्वेच्छा सेवानिवृत्त हुए. पेंशन का लाभ नहीं मिल रहा है. अब बच्चों के सहारे जीवन कट रहा है. दो लाख रुपया बकाया है.
बीडी राम, सेक्टर 01/सी
2002 में वीआरएस लिया. एक हजार रुपया पेंशन मिल रही है. जबकि दवाई का खर्च ही दो हजार रुपया है. 03 लाख बकाया है.
एसएन प्रसाद, सेक्टर 01/बी
पेंशन नहीं मिल रही है. 2000 में वीआरएस लिया. लाखों रुपये का बकाया है. एक-एक रुपये खर्च करने के पहले सोचना पड़ता है.
बीएम मिस्त्री, लकड़ाखंदा
जिस कंपनी को जीवन दिया, वहीं अंतिम समय में दगा दे रही है. वीआरएस लेने के बाद कंपनी पर दो लाख रुपया का बकाया है.
लालबाबू मिस्त्री, सेक्टर 03/सी
ससुर जी कंपनी में काम करते थे. 2004 में उनका निधन हो गया. रिटायरमेंट के समय उनका कंपनी पर एक लाख रुपये बकाया है.
गीता देवी, बांसगोड़ा
2017 में पति की मौत हो गयी. इसके बाद पेंशन लाभ से वंचित कर दिया गया. पेंशन दोबारा प्राप्त करने के लिए आंदोलन कर रही हूं.
बाधु देवी, राधागांव
2005 में पति की मौत हो गयी. लेकिन, बकाया भुगतान नहीं किया गया. अब कई प्रकार के कागज की मांग की जाती है.
सोना मुनि, बारी को-ऑपरेटिव
10 साल पहले पति की मौत हो गयी. तीन लाख रुपया बकाया है. इसी के लिए लड़ाई जारी है. अब कंपनी पर से विश्वास उठ रहा है.
उर्मिला देवी, रितुडीह