महाशिवरात्रि महानतम पर्व

II प्रजापिता ब्रह्मा II संस्थापक बह्माकुमारीज कालचक्र घूम जाता है, केवल स्मृति रह जाती है. उसी स्मृति को पुन: ताजा करने के लिए यादगारें बनाई जाती हैं, कथाएं लिखी जाती हैं, जन्म दिवस मनाए जाते हैं, जिनमें श्रद्धा, प्रेम, स्नेह, सद्भावना का पुट होता है. परंतु एक वह दिन भी आता है, जबकि श्रद्धा और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 13, 2018 9:37 AM
II प्रजापिता ब्रह्मा II
संस्थापक बह्माकुमारीज
कालचक्र घूम जाता है, केवल स्मृति रह जाती है. उसी स्मृति को पुन: ताजा करने के लिए यादगारें बनाई जाती हैं, कथाएं लिखी जाती हैं, जन्म दिवस मनाए जाते हैं, जिनमें श्रद्धा, प्रेम, स्नेह, सद्भावना का पुट होता है. परंतु एक वह दिन भी आता है, जबकि श्रद्धा और स्नेह का लोप हो जाता है और रह जाती है केवल परम्परा. यह कहना अनुचित नहीं होगा कि आज पर्व भी उसी परम्परा को निभाने मात्र के लिए मनाये जा रहे हैं. शिव कौन है?
उसने क्या किया और कब किया? यदि यह जानते होते तो महाशिवरात्रि सिर्फ पूजा-पाठ तक सीमित नहीं रह जाती. एक ओर वर्षों से महाशिवरात्रि मनाई जा रही है, तो दूसरी ओर परिवार व समाज में उच्चछृंखलता, अराजकता, अनुशासनहीनता, कलह-क्लेश, वर्ग-संघर्ष, दुख-अशांति बढ़ती गयी है. पिछले 82 वर्षों से निराकार परमपिता परमात्मा शिव इस धरती पर आकर हमें ज्ञान दे रहे हैं, जिसे नहीं ले पाने के कारण परिवार व समाज में विकृतियां बढ़ती गयी हैं. इतिहास का सिंहावलोकन करने से हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि परमपिता परमात्मा शिव ही विश्व के इतिहास की धुरी अथवा केंद्र बिंदू हैं.
यदि हम भारत के प्राचीन कथा साहित्य जैसे कि पुराण उठाकर देखें तो उसका प्रारंभ ही इसी कथन से होता है कि “जब संसार का महाविनाश हुआ और विश्व का एक बहुत बड़ा भाग जलमग्न था, तब एक अंडाकार प्रकाश (भगवान शिव) प्रकट हुआ, जिसका पार पाने के लिए ब्रह्माजी की होड़ लग गयी. अंत में उस ज्योति स्वरूप शिव ने अपना परिचय स्वयं ही दिया और ब्रह्माजी को कहा कि वे सृष्टि के नवनिर्माण के कार्य के निमित बनें.” कथाकारों ने इस वृतांत को कौतुहल का विषय बनाने के लिए रोचकता, कल्पना, किंवदन्ती, अतिश्योक्ति, अतिरंजना इत्यादि का पुट देकर कहा. परन्तु इसका यह भाव तो है कि जब पुरानी सृष्टि का विनाश हो रहा था और नयी सृष्टि का अभ्युदय होने जा रहा था तब परमपिता परमात्मा शिव ने जनमानस को अपने रूप का दिव्य साक्षात्कार कराया था.
गोया इतिहास का प्रारम्भ शिव परमात्मा के ही आदेश-निर्देश-उपदेश से हुआ है.
शिव की बारात का भी विशेष महत्व है. परमपिता परमात्मा शिव समस्त आत्माओं को पवित्र बनाकर उनके पथ प्रदर्शक बनकर परमधाम वापस ले जाते हैं, इसलिए उन्हें आशुतोष व भोलानाथ भी कहते हैं क्योंकि वह शीघ्र ही वरदान देने वाले व प्रसन्न होने वाले हैं. जिस व्रत से परमपिता परमात्मा प्रसन्न होते हैं वह है ब्रह्मचर्य व्रत. यही सच्चा उपवास है क्योंकि इसके पालन से मनुष्यात्मा को परमात्मा का सामीप्य प्राप्त होता है. इसी प्रकार एक रात जागरण करने से अविनाशी प्राप्ति नहीं होती बल्कि अब जो कलियुग रूपी महारात्रि चल रही है उसमें आत्मा को ज्ञान द्वारा जागृत करना ही जागरण है. इस जागरण द्वारा ही मुक्ति जीवनमुक्ति प्राप्त होती है.
रचयिता और रचना में भेद समझना सबसे निर्णायक होगा. शिव और शंकर में जो महान अंतर है, उसे जनमानस आत्मसात करे, तभी सतयुग का अनावरण होगा और खोया हुआ राज-भाग्य पुन: प्राप्त होगा. शिव निराकार भगवान हैं, जिन्हें सर्व धर्म ज्योति स्वरूप में मानते हैं. शंकर परमात्मा शिव की रचना हैं.
अनु दीदी
निराकार परमपिता परमात्मा शिव का निरंतर ध्यान करनेवाले शंकर बहुत बड़े शिक्षक हैं. वैसे शिक्षक, जो स्वयं प्रैक्टिकल करके दिखाते हैं. शंकर की शिक्षा और मुद्रा सिर्फ पार्वती हीं नहीं बल्कि हम सबको को अमर बनाने वाली है. शिव का निरंतर ध्यान ही तो अमर बनाने वाली कथा है. शंकर श्रेष्ठ मार्गदर्शक हैं.
कमला दीदी
गीता का भगवान अपना वादा निभाने 82 वर्ष पूर्व इस धरा पर पधार चुके हैं. पिछले 82 वर्षों से परमात्मा अपना कर्तव्य निभा रहे हैं. कलियुग अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है. वर्तमान युग ‘संगम’ का युग है. यानी कलियुग समाप्त और सतयुग आरंभ होनेवाला है.
सृष्टि चक्र की अवधि मात्र 5000 वर्ष होती है. यानी सृष्टि का प्रथम चरण सतयुग 1250 वर्षों का, दूसरा चरण त्रेतायुग 1250 वर्षों का, तीसरा चरण द्वापर युग 1250 वर्षों का और अंत में कलियुग 1250 वर्षों का. कलियुग के अंतिम चरण में 100 वर्षों का ‘संगम युग’ होता है. वर्तमान समय ‘संगम युग’ ही है.
आज तक हमें यही बताया गया है कि मनुष्यात्मा 84 लाख योनियां धारण करती हैं. यह गलत है. सच तो यह है कि 5000 वर्षों के सृष्टि चक्र में मनुष्यात्माओं का मात्र 84 जन्म होता है. मनुष्यात्माओं का सतयुग में कुल 8 जन्म, त्रेतायुग में कुल 12 जन्म, द्वापर में कुल 21 जन्म और फिर कलियुग में 42 जन्म होता है. अंत में एक जन्म ‘संगम युग’ में होता, परमात्मा का परिचय मिलने के बाद.
जैसे आम की गुठली से मिर्च पैदा नहीं हो सकता, उसी तरह मनुष्यात्माओं के “आत्मा रूपी बीज” से कोई पशु-पक्षी पैदा नहीं हो सकता. “जैसा बीज वैसा ही वृक्ष होता है.” इसलिए मनुष्यात्माएं पशु-पक्षी आदि 84 लाख योनियों में जन्म नहीं लेतीं. मनुष्यात्माएं सारे कल्प में मनुष्य-योनि में ही अधिक-से अधिक 84 जन्म और पुनर्जन्म लेकर अपने-अपने कर्मों के अनुरूप सुख-दुःख भोगती हैं.
परमात्मा धरा पर आकर तीनों देवताओं ब्रह्मा, बिष्णु और शंकर की रचना करते हैं. फिर इन तीनों देवताओं के माध्यम से सृष्टि का नवीनीकरण करते हैं. इस िलए िशव को देवों का देव महादेव भी कहा गया है.
॥ शिव और शंकर में अंतर ॥
परमात्मा शिव
शिव चेतन ज्योति-बिंदू हैं. इनका अपना कोई स्थूल या सूक्ष्म शरीर नहीं है. वे परमात्मा है. वे ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर के लोक अर्थात सूक्ष्म देव लोक से भी परे ‘ब्रह्मलोक’ (मुक्तिधाम) में वास करते हैं. वे ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर के भी रचयिता अर्थात ‘त्रिमूर्ति’ हैं. वे ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा विश्व का पालन और तथा शंकर द्वारा महाविनाश कराके विश्व का कल्याण करते हैं.
सदियों से हम एक भारी भूल करते आये हैं. वह भूल है-निराकार परमपिता परमात्मा शिव और देवता शंकर को एक मानने की. वास्तव में इन दोनों में भिन्नता है. आप देखते है कि दोनों की प्रतिमाएं भी अलग-अलग आकार वाली होती है. शिव की प्रतिमा अण्डाकार अथवा अंगुष्ठाकार होती है, जबकि देवता शंकर की प्रतिमा शारीरिक आकार वाली होती है. यहां उन दोनों का अलग-अलग परिचय, जो कि परमपिता परमात्मा शिव ने अब स्वयं हमें समझाया है तथा अनुभव कराया है स्पष्ट किया जा रह है :-
देवता शंकर
हम देवता शंकर को भगवान मानते हैं, जबकि ब्रह्मा और विष्णु की तरह शंकर भी सूक्ष्म शरीरधारी हैं. इन्हें ‘देवता’ कहा जाता है, परन्तु इन्हें ‘परमात्मा’ नहीं कहा जा सकता. ये ब्रह्मा देवता तथा विष्णु देवता की तरह सूक्ष्म लोक में, शंकरपुरी में वास करते हैं. ब्रह्मा देवता तथा विष्णु देवता की तरह यह भी परमात्मा शिव की रचना हैं. यह केवल महाविनाश का कार्य करते हैं, स्थापना और पालना के कर्तव्य इनके कर्तव्य नहीं हैं.
जानिए, सतयुग में आपके लिए क्या है खास
खुशियों की शहनाई
सदा खुशियों की शहनाई ऑटोमेटिकली बजती रहेंगी. बजाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. रचना वनस्पति के पत्तों के हिलने से विभिन्न प्रकार के नैचुरल साज बजायेगी. वृक्ष के पत्तों का झूलना, हिलना भिन्न-भिन्न प्रकार के नैचुरल साज होंगे. आजकल अनेक प्रकार के साज आर्टिफिशियल बनाते हैं वैसे पंछियों की बोली वैराइटी साज होगी.
चैतन्य खिलौने होंगे
पंछी चैतन्य खिलौने के समान अनेक प्रकार के खेल आपको दिखायेंगे. जैसे आजकल यहां मनुष्य भिन्न-भिन्न प्रकार की बोलियां सीखते हैं मनोरंजन के लिए, वैसे वहां के पंछी भिन्न-भिन्न सुन्दर आवाजों से आपके इशारों पर मनोरंजन करेंगे.
फल वैराइटी रसना वाले होंगे
विभिन्न तरह के फल होंगे. सारे फल बेजोड़ स्वाद व मिठास से भरे होंगे. आज जैसे हम अलग-अलग नमक, मीठा अथवा मसाला आदि डालकर जिस तरह का स्वाद तैयार करते हैं, वैसा स्वाद सतयुग की सृष्टि में फलों में नैचुरल होगा. जैसा स्वाद चाहिए, वैसा नैचुरल फल तैयार कर सकते हैं. पत्तों की सब्जियां नहीं होंगी. फल और फूल की सब्जियां होंगी.
आप पियेंगे क्या?
दूध की तो नदियां होंगी. नैचुरल रस के फल अलग होंगे, खाने के अलग, पीने के अलग होंगे. मेहनत करके रस निकालना नहीं पड़ेगा. हरेक फल इतना भरपूर होगा जैसे अभी नारियल का पानी पीते हैं. फल उठाया, जरा सा दबाया और रस पी लिया.
नहाने की व्यवस्था
नहाने का पानी बिल्कुल गंगाजल की तरह होगा. पहाड़ों की जड़ी-बूटियों के कारण विशेष महत्व होगा. पहाड़ों पर खुशबू की जड़ी-बूटियों के समान बूटियां होंगी, तो वहां से जल आने के कारण नैचुरल खुशबू वाला जल होगा. इत्र डालेंगे नहीं लेकिन नैचुरल पहाड़ों से क्रास करते हुए ऐसी खुशबू की बूटियां होंगी जो सुन्दर खुशबू वाला जल होगा.
काम क्या करेंगे
जागेंगे सुबह ही, लेकिन जैसे सदा जागती ज्योति हैं. वहां थके हुए लोग नहीं होंगे. कोई हार्ड वर्क है नहीं. न हार्ड वर्क है, न बुद्धि का वर्क है, न कोई बोझ है. इसलिए जागना और सोना समान है. जैसे अभी सोचते हैं न कि सुबह उठना पड़ेगा, सतयुग में यह संकल्प ही नहीं.
रुपये की जगह अशर्फियां होंगी
सतयुगी सृष्टि में रुपये की रूप-रेखा परिवर्तित होगी. रुपये की जगह अशर्फियां होंगी. शानदार डिजाइन और अच्छी-अच्छी होंगी. निमित मात्र ही लेन-देन होगा. दुकानदार और ग्राहक का भाव नहीं होगा. मालिकपन का भाव होगा और सिर्फ आपस में एक्सचेंज करेंगे. कुछ देंगे, कुछ लेंगे, कमी तो किसी को भी नहीं होगी. इसलिए मैं ग्राहक हूं, यह मालिक है-यह भाव नहीं रहेगा.
शिक्षा व्यवस्था क्या होगी?
वहां पढ़ाई भी एक खेल है. खेल-खेल में पढ़ेंगे, अपनी राजधानी का नॉलेज तो रखेंगे ना. लेकिन मुख्य सबजेक्ट वहां की ड्राइंग होगी. छोटा बड़ा सब आर्टिस्ट होंगे, चित्रकार होंगे. साज अर्थात् गायन विद्या, संगीत गायेंगे, खेलेंगे, इसी में पढ़ाई पढ़ेंगे. वहां की हिस्ट्री भी संगीत और कविताओं में होगी, ऐसी सीधी-सीधी बोर करने वाली नहीं होगी. रास भी एक खेल है ना. नाटक भी करेंगे बाकि सिनेमा नहीं होगा. नाटकशालाएं काफी होंगी और नाटक हंसी व मनोरंजन के होंगे.
यातायात व्यवस्था
वहां महलों के अंदर भी विमानों की लाइन होगी और विमान चलाने में बहुत सहज होंगे. विमान शुरू किया और आवाज से भी पहले पहुच जायेंगे. इतना जल्दी विमान से पहुंच जायेंगे, इसलिए फोन करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
बिजली
एटॉमिक एनर्जी के आधार पर सब काम चलेगा. इसलिए बिजली के इनोवेशन की जरूरत सतयुग में नहीं होगी. सूर्य की किरणों से हीरे और सोना ऐसे चमकेंगे जैसे हजारों लाईट्स जल रही है. इतनी तार या वायर्स की जरूरत नहीं पड़ेगी. वहां रीयल हीरों के होने के कारण एक दीपक अनेक दीपकों का कार्य करेगा.
भाषा व वेशभूषा
भाषा तो बहुत शुद्ध हिंदी होगी. हर शब्द वस्तु को सिद्ध करेगा, ऐसी भाशा होगी. वेशभूषा बहुत अच्छी होगी. जैसा कार्य होगा, वैसी वेशभूषा होगी. जैसा स्थान होगा, वैसी वेशभूषा होगी. भिन्न-भिन्न वेशभूषा में रहेंगे. श्रृंगार भी बहुत प्रकार के होंगे. भिन्न-भिन्न प्रकार के ताज होंगे, गहने होंगे, लेकिन बोझ वाले नहीं होंगे. रूई से भी हल्के होंगे. रीयल गोल्ड होगा और उसमें हीरे ऐसे होंगे जो भिन्न-भिन्न रंग की लाइट्स हर हीरे से नजर आयेगी. एक हीरे से सात रंग दिखाई देंगे.
भाषा व वेशभूषा
भाषा तो शुद्ध हिंदी होगी. हर शब्द वस्तु को सिद्ध करेगा, ऐसी भाषा होगी. वेशभूषा बहुत अच्छी होगी. जैसा कार्य होगा, वैसी वेशभूषा होगी. शृंगार असली सोना का होगा. एक हीरे से सात रंग दिखाई देंगे.

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