धनबाद के वरीय डाक अधीक्षक के खिलाफ वारंट
बोकारो उपभोक्ता फोरम ने आदेश नहीं मानने पर किया वारंट जारी बोकारो : बोकारो जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष प्रभात कुमार उपाध्याय ने धनबाद मुख्य डाकघर में पदस्थापित वरीय डाक अधीक्षक के खिलाफ वारंट जारी किया है. वारंट के तामीला की जिम्मेदारी धनबाद के वरीय पुलिस अधीक्षक व धनबाद थाना के प्रभारी को दी गयी […]
बोकारो उपभोक्ता फोरम ने आदेश नहीं मानने पर किया वारंट जारी
बोकारो : बोकारो जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष प्रभात कुमार उपाध्याय ने धनबाद मुख्य डाकघर में पदस्थापित वरीय डाक अधीक्षक के खिलाफ वारंट जारी किया है. वारंट के तामीला की जिम्मेदारी धनबाद के वरीय पुलिस अधीक्षक व धनबाद थाना के प्रभारी को दी गयी है. उपभोक्ता फोरम ने वरीय डाक अधीक्षक के खिलाफ जारी वारंट की कॉपी शुक्रवार को धनबाद एसएसपी और धनबाद थाना प्रभारी को भेज दी है. उपभोक्ता फोरम ने पूर्व में एक मामले में फैसला सुनाते हुए धनबाद के वरीय डाक अधीक्षक को क्षतिपूर्ति के रूप में पांच हजार रुपया भुगतान करने का आदेश दिया था. निर्धारित समय बीत जाने के काफी दिनों बाद भी फोरम के आदेश पर डाक अधीक्षक ने कोई कार्रवाई नहीं की. अपने आदेश के पालन के लिए उपभोक्ता फोरम ने वरीय डाक अधीक्षक के खिलाफ वारंट जारी किया है.
क्या है मामला : फोरम में यह पेटरवार के कतरी मोहल्ला निवासी विकास चंद्र कपूर ने दर्ज कराया था. मामले में धनबाद मुख्य डाकघर के वरीय डाक अधीक्षक को अभियुक्त बनाया गया था. सूचक के अनुसार उन्होंने एलपीजी गैस का डिस्ट्रिब्यूटरशिप लेने के लिए फॉर्म भरा. उक्त फॉर्म को डाकघर के जरिये स्पीड पोस्ट के माध्यम से जमशेदपुर भेजा गया था. स्पीड पोस्ट द्वारा भी फॉर्म निर्धारित समय के अंदर जमशेदपुर कार्यालय में डिलिवर नहीं हुआ.
देर से फॉर्म मिलने के कारण कंपनी ने फॉर्म रिजेक्ट कर दिया. सूचक ने फॉर्म देर से पहुंचने का कारण जानना चाहा, तो उन्हें जानकारी मिली कि धनबाद मुख्य डाकघर की कोताही के कारण उनका फॉर्म निर्धारित समय पर नहीं पहुंच सका. नियमानुसार, स्पीड पोस्ट से जमशेदपुर चिट्ठी भेजने में अधिकतम समय 72 घंटा का है,
जबकि सूचक का स्पीड पोस्ट पहुंचने में सात दिनों से भी अधिक का समय लग गया. फोरम में मामला दर्ज होने के बाद विपक्ष को नोटिस भेजा गया. नोटिस पाने के बाद भी विपक्ष फोरम में अपना जवाब दाखिल करने उपस्थित नहीं हुआ. फोरम ने इस मामले में वरीय डाक अधीक्षक को उपभोक्ता सेवा में कमी का दोषी पाते हुए क्षतिपूर्ति के रूप में पांच हजार रुपया भुगतान करने का आदेश दिया था.