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शृंगार नहीं करती जोरिया, गर्ग नहीं देते आशीर्वाद

सिंगारीजोरिया : चास प्रखंड के कमलडीह मौजा से निकल कर पूरे चास शहर में इसकी आकृति हार की तरह है. चास का शृंगार करने के कारण ही इसका नाम सिंगारी जोरिया पड़ा. गरगा नदी : जिला के कसमार प्रखंड के कौलेंदी बांध से निकल कर तीन प्रखंड को सींचती है. चास-बोकारो में इसका वृहत रूप […]

सिंगारीजोरिया : चास प्रखंड के कमलडीह मौजा से निकल कर पूरे चास शहर में इसकी आकृति हार की तरह है. चास का शृंगार करने के कारण ही इसका नाम सिंगारी जोरिया पड़ा. गरगा नदी : जिला के कसमार प्रखंड के कौलेंदी बांध से निकल कर तीन प्रखंड को सींचती है. चास-बोकारो में इसका वृहत रूप देखने को मिलता है. चास प्रखंड में ही यह दामोदर नद में मिल जाती है. मतलब बोकारो विधानसभा की यह दो प्रमुख जल स्त्रोत हैं.

चुनाव का बिगुल फूंक चुका है. तमाम राजनीतिक दल अपने-अपने क्षेत्र में जी-जान से लग गये हैं. हर कोई विकास की नयी इबारत गढ़ने का वादा के साथ क्षेत्र में उतर रहा है. चास से बोकारो आने के क्रम में हर दल के कार्यकर्ता का गरगा नदी व सिंगारीजोरिया से गुजरता होगा. बावजूद इसके दोनों जल धारा की स्थिति पर किसी ने ध्यान नहीं दिया है. आलम यह है कि गरगा नदी व सिंगारजोरिया का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है.
50 फीट से 10 फीट में सिमटी सिंगारीजोरिया
सिंगारी जोरिया चास के कमलडीह मौजा से निकलती है. चास मुख्य क्षेत्र में पांच किलोमीटर का सफर तय कर गरगा में प्रवेश करती है. स्थानीय लोगों का मानना है कि जोरिया की चौड़ाई कभी 50 फुट का हुआ करती थी.
जमीन के सौदागरों की कपटी नजर जोरिया पर ऐसी पड़ी कि चौड़ाई 10 फुट ही शेष रह गयी. तट पर अतिक्रमण कर निर्माण कार्य वर्तमान में भी बदस्तुर जारी है. इतना ही नहीं सिंगारीजोरिया में नगर क्षेत्र का कचरा इस कदर डाला जाता है कि पानी देखना भी नसीब नहीं होता है.
कैसे गरगा पार करेगी वैतरणी
कसमार के कौलेंदी बांध से निकल कर गरगा चास को सींचने का काम करती है. माना जाता है कि कंस को मारने के लिए गर्ग ऋषि की तपस्या से नदी अवतरित हुई थी. 35 किलोमीटर सफर के बाद पुपुनकी में दामोदर नद में मिल जाती है. वर्तमान में नदी की स्थिति ऐसी है कि संपूर्ण बहाव शायद ही कहीं दिखे. बदबू ऐसी की पानी के करीब जाना भी मुश्किल. नाला-नाली का नदी में समागम ऐसा कि पानी का रंग काला हो गया है.
लाइफ लाइन पर नहीं है पार्टी की कोई लाइन
सिंगारीजोरिया मृतशैय्या पर लेटी है. गरगा नदी भी मुक्ति का इंतजार कर रही है. बावजूद इसके नदी को लेकर किसी राजनीतिक दल के घोषणा पत्र में इन जल स्त्रोतों के लिए जगह नहीं मिलती. दोनों जलस्त्रोत को चास की लाइफ लाइन माना जाता है, लेकिन किसी पार्टी की लाइन इसके इर्द-गिर्द भी नहीं है. चुनाव दर चुनाव गुजरते रहे लेकिन, चुनाव के इतिहास में इस दिशा में पहल नहीं की गयी.

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