बोकारो: बिहार के रोहतास जिले में पीढ़ियों से चना, भूंजा और सत्तू का व्यापार करने वाले एक परिवार के राज शेखर ने आइआइटी एडवांस की प्रवेश परीक्षा में ऑल इंडिया रैंक (कैटेगरी) 35 प्राप्त किया है. आइआइटी के करने के बाद वह आइएएस बनना चाहता है. उसका फेवरेट विषय भौतिकी व गणित है. राज ने इसी वर्ष डीएवी-4 बोकारो से 12वीं बोर्ड 85.6 फीसदी अंक के साथ पास किया है. पिता इंद्र कुमार गुप्ता शोभागंज, चौक बाजार, सासाराम-बिहार में सत्तू, चना, भूंजा, सेवई बेचते हैं. मां वंदना गुप्ता गृहिणी है.
राज बोकारो में सेक्टर-4डी के हॉस्टल में रह कर पढ़ाई कर रहा था. कुर्मीडीह निवासी मामा राकेश कुमार गुप्ता स्थानीय अभिभावक थे. उसने क्लास एक से लेकर 8वीं तक की शिक्षा डीएवी-सासाराम, 9वीं व 10वीं की पढ़ाई सैनिक स्कूल-भुवनेश्वर से पास की है. 10वीं बोर्ड में 9.2 सीजीपीए प्राप्त हुआ था. राज शेखर भाई-बहनों में सबसे बड़ा है. राज ने बताया : स्कूल के प्राचार्य अरुण कुमार का काफी योगदान रहा. वह हर समय उसे प्रोत्साहित करते थे. गणित के शिक्षक बीके झा, भौतिकी के शिक्षक देवानंद व क्लास टीचर सह अंगरेजी की शिक्षिका पूनम ने काफी सहयोग किया.
ऐसी है परिवार की कहानी : बिहार के रोहतास जिले में पीढ़ियों से चना, भूंजा और सत्तू का व्यापार करने वाले परिवार के तीन भाइयों ने मिल कर सोचा कि आखिर क्यों हम वर्षो से चली आ रही प्रथा को अपने आने वाली पीढ़ियों पर डालें? परिवार एकमत हुआ. परिवार ने कभी न अलग होने की बाट ठानी. संयुक्त परिवार के संकल्प के साथ सपना और रणनीति दोनों पर मुकम्मल काम हुआ. नतीजा, उस घर का एक बच्च आज आइआइटी के प्रवेश परीक्षा में देश भर के अव्वल 35 बच्चों में से एक हैं.
रंग लायी भाइयों की योजना : राज के पिता इंद्र कुमार गुप्ता ने बताया : हम तीन भाई हैं- इंद्र कुमार गुप्ता, अमर लाल गुप्ता व कन्हैया लाल गुप्ता. लगभग पांच वर्ष पहले हम तीनों भाई एक साथ बैठे. सोचा हमारे में से किसी ने कॉलेज का मुंह नहीं देखा है. सभी 10वीं तक हीं पढ़े-लिखे हैं. सत्तू बेचने का पुश्तैनी धंधा कर रहे हैं. लेकिन, अब हम अपने बाल-बच्चों को इस धंधा से नहीं जोड़ेंगे. उन्हें खूब पढ़ा-लिखा कर बड़ा आदमी बनायेंगे. इसके लिए हमने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए पैसा बचाना शुरू किया. बच्चों को पढ़ने के लिए बाहर भेजा. श्री गुप्ता ने कहा : भाइयों ने बहुत सहयोग किया. इस कारण राज को सफलता मिली है. हम अकेले रहते तो इतना नहीं कर सकते थे.