जब फागुन रंग झमकते हों तो देख बहारें होली की

आज भी याद है कपड़ा फाड़-कीचड़ व हॉस्टल होली होली आते ही चारो ओर रंग-अबीर की खुशबू माहौल को खुशनुमा बना देती है. ढोल व झाल की थाप लोगों के मन को झंकृत कर देता है. लोग पुरानी यादों में खो जाते हैं. प्रभात खबर ने चिकित्सकों से होली में क्या मिस करते हैं और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 22, 2016 5:00 AM

आज भी याद है कपड़ा फाड़-कीचड़ व हॉस्टल होली

होली आते ही चारो ओर रंग-अबीर की खुशबू माहौल को खुशनुमा बना देती है. ढोल व झाल की थाप लोगों के मन को झंकृत कर देता है. लोग पुरानी यादों में खो जाते हैं. प्रभात खबर ने चिकित्सकों से होली में क्या मिस करते हैं और होली मनाने का क्या अंदाज होता था. इस विषय पर बातचीत की.
हॉस्टल की होली को मिस करता हूं. हॉस्टल में जम कर होली खेलता था. आज तक वैसा मौका नहीं मिला.
बोकारो : गांव की कीचड़ वाली होली आज भी मिस करता हूं. सुबह को कीचड़ वाली होली बाद में रंग-अबीर चलता था.
डॉ मिथिलेश कुमार, पूर्व सीएस, बोकारो
हर होली में बचपन के दोस्तों को मिस करता हूं. उस मौके पर हम कीचड़ के साथ कपड़ा फाड़ होली खेलते थे.
डॉ संगीत कुमार, कोषाध्यक्ष, आइएमए चास
होली में दिन भर घर से बाहर रहना मिस करता हूं. आज होली में घर से चाह कर भी बाहर नहीं निकल पाता हूं.
डॉ विकास पांडेय, चेयरमैन, केएम मेमोरियल
मैं हर होली में स्कूल व कॉलेज के दोस्तों को मिस करता हूं. नये दोस्तों के साथ भी जम कर होली खेलता हूं.
डॉ अवनीश श्रीवास्तव, सचिव, आइएमए चास
पहले की तरह होली में फ्री नहीं रह पाता हूं. यही हर बार मिस करता हूं. फिर भी समय निकाल कर मजा करता हूं.
डॉ विकास कुमार, अनुमंडल अस्पताल, चास
बचपन में होली का मतलब मस्ती व धूम-धड़ाका. आज सब मिस करता हूं. आज फाॅरमिलीटी की होली होती है.
डॉ राकेश कुमार, सिटी सेंटर, सेक्टर चार
मैं हर होली में अपने परिवार को बहुत मिस करता हूं. परिवार के साथ होली मनाने का आनंद ही कुछ और है.
डॉ रवि शेखर, अनुमंडल अस्पताल, चास

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