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अब पलायन कर रहे भेंडरा के नौजवान

कभी थे शेरशाह सूरी की पसंद व द्वितीय विश्वयुद्ध का हिस्सा जब पूरी दुनिया में लौह उद्योग मंदी के कगार पर है, ऐसे में बोकारो का एक गांव रोज लगभग चार टन लोहे के सामान का उत्पादन करता है. अपने कौशल के बल पहचान बनानेवाले ये लोग न सिर्फ परिश्रमी हैं, बल्कि राह दिखानेवाले भी. […]

कभी थे शेरशाह सूरी की पसंद व द्वितीय विश्वयुद्ध का हिस्सा
जब पूरी दुनिया में लौह उद्योग मंदी के कगार पर है, ऐसे में बोकारो का एक गांव रोज लगभग चार टन लोहे के सामान का उत्पादन करता है. अपने कौशल के बल पहचान बनानेवाले ये लोग न सिर्फ परिश्रमी हैं, बल्कि राह दिखानेवाले भी.
भेंडरा से लौट कर जीवेश
jivesh.singh@prabhatkhabar.in
द्वितीय विश्वयुद्ध व 1962 में चीन के साथ युद्ध के लिए भेंडरा के लोगों ने लोहे का सामान बनाया था. पुराने दस्तावेज व बुजुर्गों की मानें, तो शेरशाह सूरी के लिए भी गांव में हथियार बने. अमेरिका के फोर्ड फाउंडेशन संस्थान ने भी इस गांव का दौरा किया अौर इसे शेफील्ड अॉफ बिहार की संज्ञा दी.
जॉर्ज फर्नांडिस भी प्रभावित थे अौर गांव जा सबका उत्साह बढ़ाया था. आज भी गांव के लोग सेना, रेलवे, डाक विभाग सहित अन्य सेक्टरों के लिए लौह सामान बना रहे. लगभग नौ हजार की आबादीवाले इस गांव से प्रतिवर्ष लगभग 20 करोड़ का कारोबार होता है.
तीन तरफ से जमुनिया नदी व एक तरफ से नाला से घिरे इस गांव में बैंक अॉफ इंडिया की शाखा व एक एटीएम भी है, पर बोकारो के नावाडीह प्रखंड स्थित इस भेंडरा गांव के नौजवान अब पलायन कर रहे हैं. यहां के लोगों ने मेहनत के बल पर गांव की तकदीर बदल दी थी, लेकिन गांव की नयी पौध बेचैन है.
वो गांव छोड़ बाहर जा रहे. कारण तरह-तरह की अड़चन बताते हैं. गांव के बड़े-बुजुर्ग चिंतित हैं. उनका कहना है कि यही हाल रहा, तो जिस हुनर से लौह उद्योग के क्षेत्र में देश-दुनिया में नाम कमाया (देखें हजारीबाग जिला गजेटियर पेज 150), उसका गांव से सफाया हो जायेगा. आज भी गांव में लगभग 150 भट्ठियां काम कर रहीं, पर इनमें काम करनेवाले कच्चा माल, कोयला व लोन की कमी और सरकारी उपेक्षा से परेशान हैं. मुख्यत: लोहे का सामान और हथियार बनानेवाले कारोबारियों को लोहा अौर कोयला की समस्या झेलनी पड़ रही है. दुनिया के साथ कदम मिला कर चलने के लिए यहां के कारीगरों को ट्रेनिंग की जरूरत है.
इसके लिए शेड बनने की बात हुई. ग्रामीण आगे आये अौर फ्री में अपनी जमीन दी. वर्ष 2000 में स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना के तहत वहां शेड बना, पर कभी कुछ नहीं हुआ. अब शेड भी जर्जर हो गया है. परेशान लोग कहते हैं कि अपने यहां हैं हजार दिक्कतें, ऐसे में कैसे करें देश-दुनिया की प्रतिस्पर्द्धा से मुकाबला.
प्रभावित हुई थी अमेरिकी टीम
पुस्तैनी धंधा संभाल रहे 70 वर्षीय गणेश प्रसाद चौरसिया कहते हैं कि अमेरिका के फोर्ड फाउंडेशन संस्थान की टीम 1952 में गांव आयी थी. उनके साथ बिहार के उद्योग विभाग के तत्कालीन अधिकारी उपेंद्र महारथी भी थे. उन लोगों ने भेंडरा के कुटीर उद्योग को देख कर इस जगह को शेफिल्ड अॉफ बिहार कहा था. (शेफिल्ड इंग्लैंड का एक शहर है, जहां लोहे के हर तरह के सामान बनते हैं.
भेंडरा में भी हर तरह का सामान बनता है.) श्री चौरसिया के अनुसार, उन लोगों ने तत्कालीन बिहार सरकार को भेंडरा के उद्योग को अौर विकसित करने का सुझाव दिया था, पर हुआ कुछ नहीं. श्री चौरसिया के अनुसार ,1962 में उनके फॉर्म भेंडरा कॉटेज इंडस्ट्रीज का रजिस्ट्रेशन हुआ. कोलकाता में भी उन्होंने अपना एक्सटेंशन काउंटर खोल रखा है. वह भी मानते हैं कि सुविधाएं नहीं बढ़ीं और सरकारी व्यवस्था ऐसे ही रही, तो व्यवसाय का आगे बढ़ना मुश्किल होगा.
बॉलपेन हैमर की थी चर्चा
सेना व आमजन के बीच इस्तेमाल किया जानेवाला बॉलपेन हैमर (एक प्रकार की हथौड़ी) पहले सिर्फ इंग्लैंड से बन कर आता था, बाद में भेंडरा में बनने लगा अौर यहीं से पूरे देश में भेजा जाता था. सस्ता अौर अच्छा होने के कारण इसकी मांग थी अौर इंग्लैंड के माल पर यह हावी होने लगा.
जो बनता है यहां
पारंपरिक हथियार, कृषि कार्य में काम आनेवाले सामान, घरेलू सामान, रेलवे के लिए रॉक ब्लास्टर, क्रोबार सब्बल, केइंग हम्मर, बॉलपेन हम्मर, बीटर आदि. सेना के लिए ड्रेंज पीन डिजींग, फायर मैन एक्स, कुल्हाड़ी, कैंची, स्क्रू. चाय बगान के लिए कूलिंग नाइफ व अन्य सामान.
गांव के मेले में करोड़ों का कारोबार
मकर संक्रांति पर गांव के जलेश्वरी देवी स्थान पर जलेश्वरी मेला लगता है. गांव के कारोबारियों के अनुसार सात दिन तक चलनेवाले इस मेले में करोड़ों का कारोबार होता है. मेले में झारखंड, बिहार के अलावा बनारस, कानपुर, पुरुलिया, झालदा व कोलकाता के भी व्यवसायी आते हैं.
गांव में एटीएम
गांव में बैंक अॉफ इंडिया की शाखा है. इसके 20 हजार उपभोक्ता हैं. आसपास के गांवों के लोगों का भी यहां खाता है. जानकारों के अनुसार यहां लगभग 30 करोड़ रुपये जमा हैं. बैंक ने लगभग साढ़े छह करोड़ का लोन भी दिया है. जानकारों के अनुसार अधिकतर पैसे भेंडरा गांव के ही हैं. गांव से हो रहे व्यवसाय को देखते हुए बैंक ने गांव में एक एटीएम भी लगायी है.
क्यों लोहे में कमाया नाम
यहां पर सभी जाति के लोग रहते हैं, पर सबसे ज्यादा विश्वकर्मा समाज के लोग हैं. बुजुर्गों के अनुसार, शुरू से जंगल-पहाड़ के बीच होने के कारण यहां कोई अौर साधन नहीं था. खेती भी नहीं होती थी. ऐसे में लोगों ने पुस्तैनी धंधे को अपनाया. लोहे का सामान बनाना शुरू किया अौर धीरे-धीरे इसकी ख्याति फैल गयी.
गोमो रेलवे स्टेशन ने भी इनके धंधे को बढ़ाने में योगदान दिया. गांव से इस स्टेशन की दूरी लगभग पांच किलोमीटर है. लोग बैलगाड़ी से सामान ले जाते थे अौर फिर रेल से बाहर जाता था. अब तो गांव तक सड़क बन जाने से काफी आसानी है.
लोग जो चाहते हैं
कोयले पर यहां का व्यवसाय निर्भर है, पर पास में कोयले का कोई काउंटर या डीपो नहीं. दूर से लाने पर ज्यादा पैसे खर्च होते हैं अौर आसपास के लोगों से लेने पर पुलिस उसे चोरी का कोयला करार देती है अौर तंग करती है.
इस कारण कोयले का काउंटर चाहते हैं गांववाले. सरकारी लोहे की कीमत अधिक व निजी कंपनी की कम है, पर उसे खरीदने में होनेवाली दिक्कतों का समाधान हो. लगातार बिजली नहीं होने से लागत बढ़ जाती है, इस कारण कम से कम आठ घंटे बिजली की सुविधा मिले. कृषि से संबंधित सामान पर सेल्स टैक्स में छूट मिले.
बैंक से लोन मिलने में होनेवाली दिक्कतें कम की जायें. सबसे बड़ी दिक्कत सरकारी बाबुअों से है. नियमों के जंजाल में सब परेशान हैं, इसे आसान बनाया जाये. व्यवसाय से संबंधित प्रशिक्षण मिले. बच्चों के लिए शिक्षा अौर स्वास्थ की भी सुविधा बढ़े.
कहते हैं नौजवान
उत्तम विश्वकर्मा इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं. इनके पिता पारंपरिक हथियार बनाने का धंधा करते हैं. इनके दोनों बड़े भाई बाहर नौकरी करते हैं. उत्तम भी बाहर चले जायेंगे. कहते हैं, क्या फायदा यहां रह कर. सुविधा नहीं. इस कारण लगभग लागत मूल्य पर सामान बेचना पड़ रहा. इतनी मेहनत के बाद भी लाभ नहीं, फिर क्यों ऐसा धंधा. लोन लेने में भी दिक्कत. कैसे अपने धंधे को अपग्रेड करें.
आदित्य हैं आदर्श
पिछले वर्ष गांव के आदित्य रंजन ने सिविल सेवा की परीक्षा में अच्छा स्थान लाया. आदित्य के पिता अर्जुन वर्णवाल पहले लोहे का व्यवसाय करते थे. अब वो चास में रह कर दूसरा व्यवसाय करते हैं. आदित्य के चाचा अभी भी गांव में रह कर लोहे का व्यवसाय करते हैं. कई तरह की दिक्कतों से लड़ रहे गांव के लड़कों के आदर्श हैं आदित्य. गांव के नौजवानों का कहना है कि दिक्कत के बीच जीने से बेहतर है बाहर निकल कुछ अौर करना.
(साथ में दीपक सवाल, मधुकर, उदय व राजकुमार)

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