बांसुरी की धुन पर पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के साथ झूमा बोकारो

बोकारो: यदि किसी को संशय हो कि कृष्ण की बांसुरी में क्या आकर्षण था, तो उन्हें मेरे साथ होना था, उस सभागार में जहां पंडित हरिप्रसाद चौरिसया अपनी बांसुरी के स्वरों से कृष्ण की आकर्षण-प्रमेय सिद्ध करने में लगे थे. स्थान था सेक्टर-5 स्थित बोकारो क्लब सिनेमा एरिया. आयोजन था बोकारो स्टील प्लांट का स्पीक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 7, 2014 10:13 AM

बोकारो: यदि किसी को संशय हो कि कृष्ण की बांसुरी में क्या आकर्षण था, तो उन्हें मेरे साथ होना था, उस सभागार में जहां पंडित हरिप्रसाद चौरिसया अपनी बांसुरी के स्वरों से कृष्ण की आकर्षण-प्रमेय सिद्ध करने में लगे थे. स्थान था सेक्टर-5 स्थित बोकारो क्लब सिनेमा एरिया.

आयोजन था बोकारो स्टील प्लांट का स्पीक मैके के सहयोग से. उपस्थित थे बोकारोवासी. आलाप प्रारंभ होता है और हृदय की अव्यवस्थित धड़कनों को स्थायित्व मिलने लगता है, आलाप प्रारंभ होता है और मन के बहकते विचारों को दिशा मिलने लगती है. आंखें स्थिर होते-होते बंद हो जाती हैं. शरीर तनाव से निकल कर सहजता की ढलान में बहने लगता है. तानपुरे की आवृत्तियों के आधार में बांसुरी के स्वर कमलदल की तरह धीरे धीरे खिलने लगते है.

मुग्धता ने हर लिया वातावरण : वातावरण मुग्धता द्वारा हर लिया जाता है. न किसी की सुध, न किसी की परवाह, समय का वह क्षण सबका आलम्बन छोड़ बस स्वयं में ही जी लेना चाहता है. बीच में कोई नहीं आता है बस स्वरों का हृदय से सीधा संवाद जुड़ने लगता है. स्वरों का आरोह, अवरोह और साम्य हृदय को अपना तत्व प्रेषित कर निश्चिन्त हो जाता है, संचय का कोई प्रश्न नहीं.

बांसुरी का मर्म और धर्म : कृष्ण का आकर्षण समझने के लिये उनके आकर्षण की भाषा समझनी होगी. पंडित हरिप्रसाद चौरिसया को सुनने से उस भाषा के स्वर और व्यंजन एक-एक कर स्पष्ट होते गये. हृदय की एक-एक परत खोलने की कला तो बांसुरी ही जानती है. बांसुरी का मर्म और धर्म अपने अंदर समेटे पंडित हरिप्रसाद चौरिसया. आंख बंद कर उंगलियों की थिरकन जब बांसुरी पर लहराती है, तब हवा को ध्वनि मिल जाती है.

नृत्यमय व उत्सवमय माहौल : अन्त में जब राग पहाड़ी गूंजने लगा तो सारा सभागार नृत्यमय व उत्सवमय हो गया. बड़ी बांसुरी की गाम्भीर्य सुर लहरी के बाद हाथों में छोटी बांसुरी ने स्थान ले लिया. स्वर चहुं ओर थिरक रहे हैं. प्रारंभ का शान्ति-सम्मोहन अब आनंद-आरोहण में बदल चुका था. तबले पर साथ दे रहे थे उस्ताद रसिद मुस्तफा ‘थ्रिकवा’.

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