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लड़ाई यहां खत्म हुई क्या?

बोकारो: इलेक्ट्रोस्टील के लिए लाख टके का सवाल है. क्या कंपनी की लड़ाई यहां खत्म हो जाती है? क्या अब सब कुछ पटरी पर है? क्या जिस भी शर्त पर आंदोलन खत्म हुआ है, वह पूरा होगा? अगर हां, तो पहले के आंदोलन के बाद करार पूरे क्यों नहीं हुए? क्या मासस के बाद कोई […]

बोकारो: इलेक्ट्रोस्टील के लिए लाख टके का सवाल है. क्या कंपनी की लड़ाई यहां खत्म हो जाती है? क्या अब सब कुछ पटरी पर है? क्या जिस भी शर्त पर आंदोलन खत्म हुआ है, वह पूरा होगा? अगर हां, तो पहले के आंदोलन के बाद करार पूरे क्यों नहीं हुए? क्या मासस के बाद कोई दूसरी पार्टी कंपनी पर चढ़ाई नहीं करेगी? ऐसे ही कई सवालों को छोड़ते हुए लाल सलाम का राग अलापने वाली भीड़ ने नाकाबंदी खत्म कर दी.

जाते-जाते अरुप चटर्जी कह गये कि वह खुश है, पर संतुष्ट नहीं. शायद टीस अभी भी कुछ बाकी हो. एक ऐसे इलाके में जहां मुफलिसी, बेरोजगारी, भूख और लाचारी के सिवा कुछ नहीं था. वहां के लोगों ने इस आंदोलन के बाद हथियार भी उठाना सीख लिया. कैसे सियालजोरी को दुनिया से अलग किया जाये, यह अरूप ने वहां के लोगों को बताया. एक बड़े आंदोलन को हैंडल करने के तरीके से बोकारो के युवा डीसी उमाशंकर सिंह पारंगत हुए.

सरकार के स्तर से किसी ऐसे आंदोलन जिसमें 800 लोग कहीं पांच दिन से फंसे हैं, क्या होता है जनता समझ गयी. जनता को पता चला कि उनकी सरकार कितनी मजबूत है. समझ में आया कि सरकार ऐसी मुसीबतों को ज्यादा तरजीह देती है या फिर राजनीति की लड़ाई को. धारा 144 की खिल्ली पुलिस के सामने कैसे उड़ती है लोगों ने देख लिया. चास-चंदनकि यारी समेत पूरे राज्य ने देखा कि कोई कॉरपोरेट हाउस कैसे अपने हक के लिए सड़क पर उतर जाता है.

आंदोलन करता है. जाम करता है. पुलिस से धक्का-मुक्की का सामना कैसे करना पड़ता है नौकरी पेशा इलेक्ट्रोस्टील कर्मियों ने सीख लिया. बंद कमरे में बनी रणनीति को कैसे वार जोन वाले इलाके में लागू किया जाये अनुमंडल पदाधिकारी डॉ संजय सिंह ने बताया. कमर में रिवाल्वर, हाथों में डंडे और दूसरे हथियार से लैस पुलिसकर्मी हाथ में हथियार लिये आंदोलनकारियों को कैसे बरदाश्त करें यह तालीम उन्हें मिली. इतनी सारी चीजें वहां होती है. पर, बात फिर भी वहीं की वहीं है. जैसे बीएसएल के विस्थापितों की समस्या हो. हर रोज आंदोलन है. हर गली एक आंदोलन को नेतृत्व करने वाला नेता है. कुछ बड़े नाम भी हैं. पर, पता नहीं यह कैसा जख्म है जिस पर कोई मरहम काम ही नहीं करता. सवाल है कि, क्या इस बार इलेक्ट्रोस्टील पर आंदोलन के बाद कुछ ऐसा करार हुआ है, कि अब दोबारा से ऐसा न हो. अगर, ऐसा नहीं होता है तो एक बात तो तय है कि आंदोलन कैसे करते हैं यहां की अवाम को इसकी तालीम मिल चुकी है. जरूरत पड़ेगी तो बस एक अगुआई की. और इसके लिए कतार में कई खड़े हैं.

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