दो नंबर चानक का गाइड रस्सा टूटने पर बंद हो गयी थी अमलाबाद कोलियरी
आसपास के गांव के ग्रामीण हो गये थे बेरोजगार
डीएन ठाकुर, चंदनकियारी, 16 वर्षों से बंद अमलाबाद कोलियरी चालू होने का उम्मीद लोगों में जगी है. कोलियरी खुलने से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से लोगों को रोजगार मिलेगा. इससे स्थानीय लोगों में हर्ष है. बता दें कि अमलाबाद परियोजना के दो नंबर चानक का गाइड रस्सा टूटने के कारण 16 वर्ष पूर्व कोलियरी को बंद कर दिया गया था. कामगारों को अन्य परियोजना में तो समायोजित कर दिया गया, मगर सबसे अधिक आसपास के सैकड़ों गांव के ग्रामीणों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ा. हजारों करोड़ की संपत्ति सड़ रही है. रखरखाव में करोड़ों खर्च किए जा रहे है, बदले में राजस्व शून्य है. प्रबंधन द्वारा एक छोटी सी घटना के बाद पूरे परियोजना को ही बंद कर देने का फैसला से लोगों में नाराजगी थी.
1916 में अंग्रेजों की ओर से स्थापित चंदनकियारी प्रखंड स्थित बीसीसीएल के एक मात्र अमलाबाद परियोजना 2008 से बंद है. अमलाबाद परियोजना का ऐसा हश्र होगा, किसी ने नहीं सोचा था. अमलाबाद का भूमिगत खदान में कोकिंग कोल का भंडार है. कोकिंग कोल की कीमत साधारण कोयले से काफी अधिक है. स्टील कारखानों एवं वाशरी में कोकिंग कोल की मुख्य रूप से खपत है. अमलाबाद भूमिगत खदान में 50 मिलियन टन से भी अधिक रिजर्व उच्च कोटि का कोकिंग कोल का भंडार है. जो 100 वर्षों तक चल सकता है. 2005 से घाटे में चल रही अमलाबाद परियोजना की तकदीर 2008 में फूट गयी. 29 फरवरी 2008 में जब दा नंबर चानक का गाइड रस्सा टूटा, तो प्रबंधन ने सुरक्षा का हवाला देते हुए खदान को बंद कर दिया. परियोजना के बंद होने से हजारों गांव के लोग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए थे. बंदी के कुछ वर्षों तक परियोजना को चालू कराने को लेकर आंदोलन चला, मगर नतीजा सिफर रहा.1916 में अमलाबाद परियोजना की हुई थी स्थापना
अंग्रेज शासन काल में मेकमेल बेरी नामक कंपनी ने 1916 में अमलाबाद परियोजना की स्थापना की थी. परियोजना में कोयला उत्खन्न का कार्य मेलमेल मेकंजी ने शुरू किया. अंग्रेजों के बाद अमलाबाद परियोजना 1966 में निजी कंपनी करम चंद थापड़ के हाथों संचालित होने लगा. 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कामगारों और खदानों को सुरक्षित और संरक्षित करने के उद्देश्य से पहला राष्ट्रीयकरण किया. पहले 214 कोकिंग कोल खदान को और 1973 को दूसरी किस्त में 464 नन कोकिंग कोल खदानों का राष्ट्रीयकरण किया. राष्ट्रीयकरण तक अमलाबाद में तीन हजार कामगार कार्यरत थे. भारत सरकार द्वारा माइनिंग एक्ट 1952 लागू होने तक महिलाएं भी भूमिगत खदान में काम करती थी. कालांतर में 2008 तक कामगारों की संख्या एक हजार हो गयी. परियोजना बंद होने के बाद वर्तमान में मेंटेनेंस के लिए मात्र 47 कामगार कार्यरत है. 470 मीटर गहरी अमलाबाद परियोजना अमलाबाद, महाल, भौंरा, सितानाला, पाडुआ व पर्वतपुर मौजा के 916 एकड़ माइनिंग लीज होल्ड एरिया तक है.
राेजगार की तलाश में लोगों काे करना पड़ा पलायन
कोलियरी बंद होने से हजारों लोग बेरोजगार हो गए. कोलियरी क्षेत्र के आसपास के सैकड़ों गांव प्रभावित हो गये. व्यापार कृषि समेत अन्य रोजगार के साधन बंद समाप्त हो गया है. कुछ लोग रोजगार की तलाश में क्षेत्र से पलायन कर चुके हैं. वर्तमान में कोलियरी में सन्नाटा है. वहीं कामगारों को अन्यत्र समायोजित कर दिया गया है. बीसीसीएल के आवासों में पानी-बिजली आपूर्ति की जाती है. पानी, बिजली व खदान की मेंटेनेंस के लिए करोड़ों खर्च होता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है