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संघर्ष व आंदोलन का दूसरा नाम था लालचंद महतो

संघर्ष व आंदोलन का दूसरा नाम था लालचंद महतो

राकेश वर्मा, बेरमो : बेरमो कोयलांचल में राजनीति के शिखर तक पहुंचने वालों में एक नाम लालचंद महतो का नाम भी है. 70 के दशक में बेरमो कोयला क्षेत्र में जुझारू व कड़े तेवर के कारण वह लोकप्रिय नेताओं में शामिल थे. वह कॉलेज की पढ़ाई के दौरान मात्र 26 साल की उम्र में डुमरी से विधायक बन गये थे. फुसरो के रामरतन उवि से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद केबी कॉलेज बेरमो में इंटर की पढ़ाई कर रहे थे. इस दौरान इनका संपर्क उस वक्त भाजपा व आरएसएस के सक्रिय नेता व कोडरमा के पूर्व सांसद रितलाल प्रसाद वर्मा, शत्रुघ्न वर्णवाल, गुणेश्वर प्रसाद वर्णवाल, मुक्तिनाथ तिवारी से हुआ. गिरिडीह से बेरमो आने के दौरान बस में ही रितलाल वर्मा व शत्रुघ्न वर्णवाल से हुई थी. इनके सिद्धांत व विचारों से प्रभावित होकर लालचंद महतो 70 के दशक में जनसंघ में सक्रिय हो गये. उस वक्त कोयला खदानों में खानगी मालिक व ठेकेदारों द्वारा मजदूरों के साथ किये जा रहे शोषण के खिलाफ उन्होंने संघर्ष का शंखनाद किया. कोलियरियों में घूम-घूम कर मजदूरों को संगठित करने लगे. चलकरी कोलियरी के भूमिगत खदान से उन्होंने आंदोलन शुरू किया था. इनके साथ उस वक्त चलकरी के कमला मंडल व रामछबिला भी घूमा करते थे. बाद में लालचंद महतो ने बीएमएस से संबद्ध कोलियरी कर्मचारी संघ का गठन किया तथा कोयलांचल के विभिन्न कोलियरियों में संगठन का विस्तार शुरू किया. ट्रक चालकों व लोडरों का ठेकेदारों द्वारा किये जा रहे शोषण के खिलाफ आंदोलन किया. बेरमो में उस वक्त कुछ विशेष लोगों का वर्चस्व था, लेकिन लालचंद अन्याय व शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद करते रहे. इसी समय उन्होंने विस्थापित आंदोलन का नेतृत्व किया. वर्ष 1974 के इमरजेंसी में वह 17 माह तक हजारीबाग जेल में रहे. 1977 के लोकसभा चुनाव के कुछ दिन पहले जेल से रिहा हुए. कहते हैं आपातकाल में जब पुलिस उन्हें खोज रही थी तो हव चलकरी भूमिगत खदान के अंदर जाकर छिप गये थे. पुलिस के जाने के बाद मैगजीन होते हुए बाहर निकले थे. उन्होंने 1977 के लोस चुनाव में गिरिडीह सीट से जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे बेरमो के मजदूर नेता रामदास सिंह को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभायी थी. इसके बाद 1977 के विस चुनाव में डुमरी सीट से लालचंद महतो जनता पार्टी के प्रत्याशी बनाये गये तथा मात्र 26 साल की उम्र में विधायक बन कर बिहार विधानसभा पहुंचे. इस चुनाव में कार्यकर्ताओं ने चंदा कर उनकी मदद की थी. इसमें से सात हजार रुपये इनके पास बच गये थे. अलग राज्य के मुद्दे पर बीएमडीसी के चेयरमैन का पद छोड़ा झारखंड अलग राज्य के मुद्दे पर 90 के दशक में लालचंद महतो ने बीएमडीसी का अध्यक्ष पद त्याग दिया था. कहते हैं उस वक्त अलग राज्य की मांग को लेकर झामुमो का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिलने दिल्ली जा रहा था. लालचंद महतो भी प्रतिनिधमंडल में शामिल हो गये. कहते है पटना व आरा जंक्शन में लालू यादव के निर्देश पर पुलिस बल ने श्री महतो को दिल्ली जाने से रोकने का काफी प्रयास किया था लेकिन वे सफल नहीं हुए. विधायक बनने के बाद कर्पूरी ठाकुर के संपर्क में आये 1977 में चुनाव जीतने के बाद वह पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के संपर्क में आये. वह उस वक्त बिहार में मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर पिछड़ों को आरक्षण देने की लड़ाई लड़ रहे थे. लालचंद महतो कर्पूरी ठाकुर के विचारधारा से प्रभावित होकर जनसंघ से नाता तोड़ कर उनके साथ हो गये. बाद में चौधरी चरण सिंह की अगुवाई में लोकदल व दमकिपा (दलित मजदूर किसान पार्टी) में शामिल हो गये. दमकिपा ही बाद में लोकदल बना था .इसके बाद जनता दल बना. दो बार गिरिडीह लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा लालचंद महतो ने दो बार गिरिडीह लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ा था. एक बाद लोकदल से तथा दूसरी बार झामुमो के टिकट पर. लालंचद महतो के बैदकारो स्थित आवास पर कई दफा कर्पूरी ठाकुर का आना हुआ. इसके अलावा समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडीस तथा मगनी लाल मंडल भी इनके आवास पर आते थे. रेल लाइन होकर पैदल जाते थे करगली 70-80 के दशक में लालचंद महतो अपने बैदकारो गांव से सटे रेलवे लाइन होते हुए पैदल करगली चले जाते थे. करगली कोलियरी व करगली वाशरी में मजदूरों से मिलने के बाद पुन: करगली से ढोरी तक पैदल आते थे. कभी कभार बोकारो कोलियरी के डंपिंग से ट्रक में लटक कर भी करगली जाया करते थे. बाद में चंदा कर उन्होंने एक सेकेंड हैंड मोटरसाइकिल खरीदी थी. 1977 में विधायक बनने के बाद जीप खरीदी. 90 के दशक में उन्होंने एक एंबेस्डर कार खरीदी थी. एक बार प्रभात खबर से बातचीत में लालचंद महतो ने कहा था कि हर दिन सुबह रेलवे लाइन होते हुए करगली इंकलाइन पहुंचने के बाद वे यही एक होटल में पकौड़ी व घुघनी खाते थे. उस वक्त पॉकेट में दो-तीन रुपया रहता था और साथ में हमेशा चार-पांच लोग रहते थे. कोलियरी में घूमने के क्रम में कई जगह कोई व्यवस्था नहीं रहने के कारण ठेला पर चढ़ कर ही मजदूरों व विस्थापितों को संबोधित करते थे. कहते हैं 1972-73 में राष्ट्रीयकरण के समय लालचंद महतो फुसरो से पैदल अपने घर आ रहे थे. इसी बीच करगली गेस्ट हाउस के निकट गोलीकांड में तीन लोग मारे गये थे. उस वक्त बीएस दुबे कस्टोडियन थे, जिन्हें लोगों ने करगली गेस्ट हाउस में घेर कर रखा था. साथ ही पथराव की भी घटना हुई थी. इस घटना में एक साजिश के तहत लालचंद महतो का नाम लोगों ने प्राथमिकी में डलवा दिया था.

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