रोहिणी नक्षत्र शुरू होते ही धान की खेती की तैयारी में जुटे किसान

इस नक्षत्र में धान का बीज खेतों में डालना शुभ माना जाता है, पौधों में रोग की संभावना बहुत कम होती है

By Prabhat Khabar News Desk | May 28, 2024 11:09 PM

नागेश्वर महतो, पेटरवार, सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करते ही किसान धान की खेती की तैयारी में जुट गये हैं. बोकारो जिला के पेटरवार प्रखंड के विभिन्न पंचायतों में लोगों की आजीविका आज भी कृषि से चलती है. कृषक खरीफ व रबी फसलों के अतिरिक्त ग्रीष्मकालीन फसलों का उत्पादन भी पर्याप्त मात्रा में करते हैं. ग्रीष्म कालीन फसलों के बाद ज्येष्ठ महीने में रोहिणी नक्षत्र पड़ते ही किसानों द्वारा खेतों में गोबर डालना, गत बरसात में टूटे हुए मेड बनाना, लकड़ी का हल, बैल मेर आदि कृषि यंत्रों की तैयारी करना, बीज डालने के लिए भरपूर जुताई करना आदि कार्य शुरू कर दिया गया है.

इस वर्ष सामान्यत: 25 मई से रोहिणी नक्षत्र शुरू होकर आठ जून तक रहेगा. प्री मॉनसून के इस नक्षत्र में खेतों में धान का बीज डालना शुभ माना जाता है. किसानों का मानना है कि इस समय बोये जाने वाले धान के पौधों का विकास तेजी से होता है. साथ ही उन पौधों में रोग की संभावना बहुत कम होती है. उपज का अनुपात अधिक होता है.

खरीफ फसल :

धान, मकई, ज्वार -बाजरा, कोदवा, मडुआ, गूंदली सहित अरहर, मुंग, मूंगफली, उड़द, घंघरी, शकरकंद का लत, अदरख, सारुकांदा, पूतीकांदा, भिंडी, ग्वार फली, झींगी, परवल, बोदी, कद्दू, कोहड़ा, डिंगला, करेला, खीरा, कुद्रुम आदि फसलों का उत्पादन करने के लिए खेत-बारी की तैयारी करने व लगाने का उपयुक्त समय माना जाता है.

रहइन परब :

रहइन परब कुड़मि समुदाय का एक महत्वपूर्ण परब है. जिसे कुड़मियों द्वारा परंपरागत तरीका व नेग नियम से रहइन परब मनाया जाता है. इस परब में घर के दीवारों पर गोबर का लेप करना, गोबर से लिपाई करने के बाद प्राकृतिक तरीके से पूजा-पाठ करना, रहइन मिट्टी लाना, रहइन फल खाना आदि परंपरागत प्रक्रिया पूरी की जाती है.

आदिकाल से आदिवासी व मूलवासी का मुख्य पेशा कृषि रहा है. इसीलिए आदिवासी -मूलवासी द्वारा धान की खेती करने में रहइन नक्षत्र को महत्वपूर्ण नक्षत्र व अवसर माना जाता है. खरीफ फसलों के उत्पादन के लिए इसी समय कार्य योजना तैयार कर कृषि कार्य शुरू करते हैं. गांवों में खरीफ, रबी व ग्रीष्मकालीन फसलों के उत्पादन में आज भी पर्याप्त मात्रा में गोबर डालने की परंपरा चली आ रही है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Next Article

Exit mobile version