Jharkhand News: एमए पास पत्नी के साथ बीए पास वासुदेव स्कूल में पढ़ाना छोड़ आखिर क्यों बेच रहे हैं सब्जी
Jharkhand News: सरकारी नौकरी के लिए पति-पत्नी ने काफी प्रयास किया, पर नौकरी नहीं मिल पायी. अब अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए वे सब्जी बेच रहे हैं.
Jharkhand News: झारखंड के बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड अंतर्गत कुंदा पंचायत के स्व.लाटो महतो के इकलौते पुत्र वासुदेव महतो (35 वर्ष) व पुत्रवधू नुनीबाला कुमारी गोमिया चौक पर सब्जी बेचने पर विवश हैं. नुनीबाला कुमारी रूरल डेवलपमेंट में पोस्ट ग्रेजुएट हैं, वहीं उनके पति वासुदेव महतो पॉलिटिकल साइंस में स्नातक हैं. सरकारी नौकरी के लिए दोनों ने काफी प्रयास किया, पर नौकरी नहीं मिल पायी. अब अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देने व परिवार चलाने के लिए वे सब्जी बेच रहे हैं.
वासुदेव महतो ने कहा कि जब जीवन है तो हर परिस्थिति को समझना होगा. पत्नी नुनीबाला कुमारी कहती हैं कि ये जीवन संघर्ष है. वासुदेव महतो एक किसान के पुत्र हैं. वो ट्यूशन पढ़ाकर स्नातक पास हुए. 2014 में एमए में नामांकन लिया. तभी उनके पिता का निधन हो गया. इस कारण वे आगे की पढ़ाई नहीं कर सके. घर-परिवार चलाने के लिए तिरला में प्राइवेट स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्य करने लगे. पत्नी भी इंग्लिश मिडियम स्कूल में पढ़ाने लगी, लेकिन कोराना काल में स्कूल बंद हो गया, तो नौकरी भी चली गयी.
दिन-प्रतिदिन हालात काफी बद से बदतर होने पर वे आईईएल गोमिया गेट के पास फल बेचने लगे फिर भी संभल नहीं पाये. पूंजी नहीं रहने के कारण आखिराकर सब्जी बेचने लगे और घर-परिवार चला रहे हैं. वे बताते हैं कि दो बच्चे हैं. एक बच्चे को डीएवी स्वांग स्कूल में पढ़ाई करा रहे हैं, जबकि दूसरा अगले वर्ष स्कूल जायेगा. नुनीबाला कुमारी ने 2018 में बोकारो में बीपीओ का साक्षात्कार दिया था, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. फिर भी उन्होंने हार नहीं माना. नुनीबाला ने कहा कि हमारी सोच है दोनों पुत्रों को बड़ा ऑफिसर बनाना. ये दिन बच्चों को नहीं देखना पड़े. इसलिए वे सब्जी बेचकर भी उन्हें अच्छी शिक्षा देने की कोशिश कर रहे हैं.
वासुदेव महतो को 2016 में सर्किल इंस्पेक्टर की परीक्षा में सफलता तो मिली, लेकिन वैकेंसी को खारिज कर दिया गया. इस तरह नौकरी नहीं मिल सकी. 2019 में रेलवे की परीक्षा में पीटी तो निकला, लेकिन यहां भी सफलता हाथ नहीं लगी. तिरला हाईस्कूल में बच्चों को वे गणित पढ़ाया करते थे. कम पैसे मिलने और समय पर पैसा नहीं मिलने के चलते उन्हें ये कार्य छोड़ना पड़ा. वे बताते हैं कि पति-पत्नी व बच्चों को रहने के लिये गांव में घर तक नहीं है. राशन में सिर्फ चावल का लाभ मिलता है. पूंजी मिलता तो अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाते.
रिपोर्ट : नागेश्वर