झारखंड: भगता पर्व की तैयारी शुरू, आज शाम पूजा की हो जाएगी शुरुआत, जानें कैसे मनाया जाता है यह

धूमल पड़ने के बाद प्रत्येक शाम को शिवालय के समक्ष ढाक, नगाड़ा व शहनाई जैसे तीन प्रकार के वाद्य यंत्रों के जरिये 11 प्रकार के अलग-अलग सुरों में बाजा बजाए जाते हैं. उसकी धुन पर श्रद्धालु नृत्य भी करते हैं.

By Sameer Oraon | April 5, 2024 1:32 PM

बोकारो : बोकारो में मनाया जाने वाला भगता पर्व की तैयारी शुरू हो गयी है. यह कसमार प्रखंड के सिंहपुर स्थित प्राचीन शिवालय में हर साल चैत माह में मनाया जाता है. इस बार यह पर्व 12 अप्रैल से शुरू होगा. लेकिन आज शाम सात बजे धूमल पड़ने के साथ ही इस पूजा की शुरुआत हो जाएगी. धूमल एक तरह से पूजा प्रारंभ होने का संकेत है. धूमल के चौथे दिन (आठ अप्रैल) से पाट (काष्ठ की मूर्ति) का भ्रमण शुरू होगा.

सिंहपुर के अलावा खैराचातर, गोरियाकुदर, हरनाद, भवानीपुर, डुमरकुदर आदि गांवों में पाट भ्रमण होता है. इसके तहत मां पार्वती के तौर पर एक विशेष आकार-प्रकार का काष्ठ सिर पर लेकर भ्रमण किया जाता है. भ्रमण से पहले उसे सिंहपुर के एक करमाली परिवार में ले जाकर उसे पर एक कील ठोंकी जाती है. इस ‘पाट झलाई’ कहा जाता है. इसके बाद भगतिया उसे शिवगंगा (शायर बांध) और फिर शिवालय लेकर जाते हैं.

वहां से भ्रमण प्रारंभ होता है. बाउरी परिवार के लोग पाट को अपने कंधों पर उठाकर चलते हैं. इन्हें पाट भगतिया कहा जाता है. इस पाट को लेकर कुछ लोगों में एक दूसरा मत भी है. उसके अनुसार इसे शिव के परम भक्त बाणासुर का प्रतीक भी माना जाता है.

Also Read: बोकारो में हाथियों के झुंड ने मचाया उत्पात, कई घरों को किया क्षतिग्रस्त, खेतों में लगी फसलों को रौंदा

पुजारियों का मानना है कि चूंकि पार्वती की प्रतिमा अथवा उनके किसी प्रतीक में कील नहीं ठोकी जा सकती और बाणासुर को भगवान शिव ने यह वरदान दिया था कि जब भी इस प्रकार की पूजा होगी उन्हें भी बगल में रखकर पूजा जाएगा. इसलिए उनके प्रतीक को रखने की परंपरा रही है. हालांकि प्राचीन काल से आम मान्यता के तौर पर इसे मां पार्वती के प्रतीक के तौर पर ही पूजा जाता है. फूल सुसारी मनोज कुमार सिंह ने बताया कि धूमल निकलने की तैयारी पूरी हो गयी है.

क्या है धूमल

धूमल पड़ने के बाद प्रत्येक शाम को शिवालय के समक्ष ढाक, नगाड़ा व शहनाई जैसे तीन प्रकार के वाद्य यंत्रों के जरिये 11 प्रकार के अलग-अलग सुरों में बाजा बजाए जाते हैं. उसकी धुन पर श्रद्धालु नृत्य भी करते हैं. इसे ‘टेंगटे- नाकुर’ कहा जाता है. इसमें गांव के बच्चों से लेकर बूढ़े तक शामिल होते हैं. धूमल के प्रथम दिन से लेकर पूजा के अंत तक, यानि 11 दिनों तक ढाक-बाजा बजाने की पूरी जिम्मेदारी गांव के डोम परिवार की होती है. इस कार्य की जागीरदारी छत्रु डोम को मिली थी. वर्तमान में उनके वंशज यानि सिंहपुर के संपूर्ण डोम परिवार के लोग इस कार्य को मिल-जुलकर करते हैं.

धूमल में मुख्यतः शिवालय में धूप-अगरबत्ती जलायी जाती है. धूमल के साथ ही सिंहपुर समेत आसपास के गांवों में पूजा संपन्न होने तक मांस-मंदिरा एवं लहसून-प्याज का सेवन स्वतः और पूर्णतः बंद हो जाता है. इस दौरान प्रत्येक घरों में विशुद्ध शाकाहारी भोजन बनता है. केवल इन गांवों में ही नहीं, दूर-दराज में रहने वाले भक्तिया श्रद्धालु भी धूमल पड़ने के बाद मांसाहारी भोजन का सेवन बंद कर देते हैं. साथ ही, गांव में साफ-सफाई और पवित्रता का भी पूरा खयाल रखा जाता है.

12 अप्रैल से मनेगा पर्व

सिंहपुर में भगता पर्व इस बार 12 अप्रैल से शुरू होगा. 12 मार्च को संजत मनाया जाता है. इसी दिन स्थानीय शायर बांध से लोटन सेवा की परंपरा निभाई जाती है. 13 को कठोर उपासना के साथ भगतिया और श्रद्धालु पूजा अर्चना करेंगे. 14 को भगता झूलन तथा 15 को बकरा बलि होगी.

Next Article

Exit mobile version