Bokaro News : बिनोद बिहारी महतो ने विस्थापितों की लड़ाई का किया था नेतृत्व

Bokaro News : बिनोद बिहारी महतो ने जिस शोषण मुक्त झारखंड अलग राज्य का सपना देखा था, वह आज भी अधूरा है. उनकी अगुवाई में अलग राज्य का जो आंदोलन छेड़ा गया था,

By Prabhat Khabar News Desk | December 18, 2024 12:29 AM
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राकेश वर्मा, बेरमो : बिनोद बिहारी महतो ने जिस शोषण मुक्त झारखंड अलग राज्य का सपना देखा था, वह आज भी अधूरा है. उनकी अगुवाई में अलग राज्य का जो आंदोलन छेड़ा गया था, उसमें आत्सम्मान, अस्मिता, अस्तित्व व मुक्ति की बातें भी निहित थी. उस लड़ाई में झारखंड के दबे-कुचले अवाम को एहसास करा दिया था कि शोषण की जड़ें कहां हैं और उनके वर्ग दुश्मन कौन हैं. उनके आक्रमक तेवर, कुशल नेतृत्व एवं जुझारूपन के आगे माफियाओं की बोलती बंद हो गयी थी. पढ़ों और लड़ों का नारा देने वाले बिनोद बिहारी महतो झारखंड की जागृत आत्मा के प्रतिक, शोषितों, पीड़ितों व उपेक्षितों के मसीहा व झारखंड आंदोलन के प्रकाश स्तंभ थे. 90 के दशक में बिनोद बाबू ने बेरमो अंतर्गत सीसीएल के कथारा ढोरी और बीएंडके एरिया सहित डीवीसी के बीटीपीएस, सीटीपीएस में विस्थापितों की लड़ाई का नेतृत्व किया. बीएंडके एरिया के कारो परियोजना में अपने पुराने शार्गिद स्व सागर महतो के साथ 84 विस्थापितों को अपने हाथ से नियुक्ति पत्र बांटा था, जिसमें 45 विस्थापित करगली घुटियाटांड़ के थे. सांसद बनने के बाद बिनोद बाबू ने डीवीसी के बाद बोकारो थर्मल पावर स्टेशन में विस्थापितों के आंदोलन का नेतृत्व करते हुए 788 विस्थापितों का पैनल बनवाया. आज भी डीवीसी प्रबंधन के साथ उनका किया गया एग्रीमेंट है. वर्ष 88-89 में बीएंडके एरिया के डीआरएंडआरडी में प्रबंधन ने 19 विस्थापितों को यह कह कर नौकरी से बैठा दिया था कि वह अपनी जमीन का समतलीकरण करा कर प्रबंधन को दे. इसके बाद बिनोद बाबू के आंदोलन का ही परिणाम था कि तत्कालीन जीएम बी अकला को सभी विस्थापितों को पुनः बुलाकर नियुक्ति पत्र देना पड़ा था.

शिवचरण मांझी का डिसमिसल कराया वापस

80 के दशक में पूर्व भंडारीदह स्थित एसआरयू के कर्मी राजाबेड़ा निवासी शिवचरण मांझी को प्रबंधन ने बर्खास्त कर दिया था. सूचना मिलने के बाद एके राय (अब स्वर्गीय) पहुंचे. वह कर्मी उन्हीं की यूनियन में था. बाद में एके राय ने इस मामले को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से एक पत्र लिखवा दिया था. बिनोद बाबू एसआरयू पहुंचे तथा तत्कालीन डीजीएम जेपी सुल्तानिया से कहा कि शिवचरण का डिसमिसल वापस होगा या नहीं ? कहते हैं कि जीएम ने आग्रह करते हुए कहा कि तत्काल डिसमिसिल वापस करते हुए स्थानांतरण हजारीबाग स्थित इकाई में कर देते हैं, लेकिन हाजिरी यहीं बन जायेगी.

बेरमो में माफियाओं के खिलाफ किया था शंखनाद

बिनोद बिहारी महतो ने बेरमो कोयलांचल के लोगों को संगठित व जागृत करने का काम शुरू किया. वह यहां एके राय के साथ आते रहते थे. ढोरी स्थित रामरतन उच्च विद्यालय में शिवाजी समाज की स्थापना को लेकर उन्होंने समर्थकों के साथ बैठक की थी. 25 मई 1970 को नावाडीह स्थित भूषण उच्च विद्यालय में आयोजित बैठक में हिस्सा लिया. 1978 में गोमिया से सेट कोनार व चिलगो में ग्रामीणों के साथ सभा की. 1980 में टुंडी के विधायक रहते करगली में सभा की थी. वर्ष 1991 में गिरिडीह के सांसद बने तो बेरमो के श्रमिक नेता शफीक खान (अब मरहूम) व बटोही सरदार के आग्रह पर बेरमो में माफियाओं के विरुद्ध संघर्ष का शंखनाद किया. ढोरी के कल्याणी में सैकड़ों समर्थकों के साथ बीच सड़क पर दो दिनों तक बगैर कुछ खाये पिये बैठे रह गये. सीसीएल से लेकर कोल इंडिया तक में हड़कंप मच गया.

बेरमो में कई लोगों के साथ बिनोद बाबू का था गहरा जुड़ाव

बिनोद बाबू का बेरमो कोयलांचल के कई लोगों के साथ गहरा जुड़ाव था. इसमें स्व शफीक खान, पूर्व विधायक स्व शिव महतो, पूर्व मंत्री स्व जगन्नाथ महतो, बेनीलाल महतो, काशीनाथ केवट, विनोद महतो, केशव सिंह यादव, संतोष आस, एके बनर्जी, भूली मियां, वरुण शर्मा, बैजनाथ केवट, धनेश्वर महतो, मोहर महतो, काली ठाकुर, छठु महतो, बालदेव महतो, रतनलाल गौड़, बटोही सरदार, अक्षयवर शर्मा, स्व युगल किशोर महतो, हृदयनाथ भारती, रामेश्वर भुइयां, घनश्याम सिंह, खगपत महतो, दशरथ महतो, इंद्रदेव राम आदि शामिल हैं.

1977 में पहली बार गिरिडीह से लोस का चुनाव लड़ा था

बिनोद बिहारी महतो ने 1977 में पहली बार गिरिडीह सीट से झामुमो के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन जनता पार्टी के रामदास सिंह से पराजित हो गये थे. इसके बाद 1980 में कांग्रेस के बिंदेश्वरी दुबे से और 1984 में कांग्रेस के सरफराज अहमद से हार गये. 1989 में पुन: भाजपा के रामदास सिंह से पराजित हो गये. अंतत: 1991 में चुनाव जीत कर सांसद बने. पिछड़े समाज को आगे बढ़ाने का देखा था सपना : बेनीलाल

झामुमो उलगुलान के महासचिव बेनीलाल महतो कहते हैं कि बिनोद बाबू ने शिक्षण संस्थानों के माध्यम से पिछड़े समाज को आगे बढ़ाने का सपना देखा था. उनकी यह सोच थी कि तमाम सामाजिक बुराइयों की जड़ अशिक्षा है. झारखंड अलग राज्य का निर्माण उनकी अगुआई में हुए आंदोलन का परिणाम है. यदि वह जीवित होते तो झारखंड का स्वरूप ही कुछ और होता.

जो ठान लेते थे, उससे कभी पीछे नहीं हटते थे: धनेश्वर महतो

जेएमएस नेता धनेश्वर महतो कहते हैं कि राजनीति के क्षेत्र में बिनोद बाबू का मार्दर्शन मुझे प्राप्त हुआ. उन्होंने सामाजिक व शिक्षा के क्षेत्र में पूरे झारखंड में काफी कुछ किया है. उनमें एक विशेषता थी कि जो ठान लेते थे, उससे पीछे नहीं हटते थे.

उनके विचार आज भी प्रासंगिक : काशीनाथविस्थापित संघर्ष समन्वय समिति के महासचिव काशीनाथ केवट ने कहा कि बिनोद बिहारी महतो ने झारखंड आंदोलन को एक नयी दिशा दी थी. उनके विचारों की प्रासंगिकता हमेशा बनी रहेगी. वह व्यवस्था परिवर्तन के पैरोकार थे.

विस्थापित को हक दिलाया : विनोदविस्थापित संघर्ष समन्वय समिति के कार्यकारी अध्यक्ष विनोद महतो का कहना है कि बिनोद बाबू की सोच शोषणमुक्त समाज निर्माण की रही. इसके लिए उन्होंने लोगों को जागरूक किया. विस्थापित को हक दिलाया.

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