बोकारो : बोकारो जिला 29 साल का हो गया है. एक अप्रैल 1991 को बोकारो जिला बना था. धनबाद जिला के चास और गिरिडीह जिला के बेरमो अनुमंडल को मिला कर बोकारो जिला बनाया गया था. संयुक्त बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने तत्कालीन स्थानीय विधायक समरेश सिंह, सांसद बिनोद बिहारी महतो, राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं और गण्यमान्य नागरिकों की उपस्थिति में बोकारो जिला की स्थापना की थी. लेकिन, 29 सालों में बोकारो का उतना विकास नहीं हुआ, जितना होना चाहिए था. हालांकि जिले को कई तोहफे और उपलब्धियां इस दौरान मिले. लेकिन, कई टीस भी है. आज भी झुमरा पहाड़, हिसिम केदला, ऊपरघाट, चंदनकियारी, कसमार, नावाडीह, गोमिया क्षेत्र के कई गांव पिछड़े हैं. जहां कहीं कोई दवा के अभाव में मर जाता है, तो कहीं पीने का पानी तक मयस्सर नहीं है.पर्यटन स्थलों को विकसित करने से बदलेगी तस्वीरजिले में कई ऐसे स्थान हैं, जिसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है. इसमें लुगुबुरु, लखन टुंगरी, दलाही बुलबुला, तेनुघाट डैम आदि शामिल हैं. लुगुबुरु में रोप-वे शुरू करने की योजना पर काम चल रहा है. रोप वे शुरू होने से धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित लुगुबुरु की पर्यटन के क्षेत्र में भी मजबूत पहचान स्थापित हो जायेगी.
इससे रोजगार के अवसर सृजित होंगे और क्षेत्र का विकास परवान चढ़ेगा. जिंदा है औद्योगिक विकास की उम्मीद जिले में सार्वजनिक क्षेत्र के कई उपक्रम हैं, लेकिन गरीबी व बेरोजगारी दूर नहीं हो सकी है. उम्मीद है कि अगले कुछ वर्षों में लगने वाले प्लांट और फैक्ट्रियों से बेरोजगारों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से लाभ मिलेगा. एसटीपीआइ की स्थापना से भी रोजगार के नये अवसर मिलेंगे. लेकिन बीमार बियाडा के उद्योगों के लिए कुछ खास नहीं हो सका. उम्मीद है कि सरकार इस पर ध्यान देगी और दिन बहुरेंगे. हाल में ही भारत सरकार के केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा था बोकारो को पूर्वोत्तर भारत का स्टील हब के रूप में विकसित करने की योजना है. इस दिशा में अभी तक कागजी कार्रवाई ही चल रही है. वहीं, देश के प्रमुख गैस पाइपलाइन का प्वाइंट बोकारो में बनने से लाभ होगा.बीएसएल से मिली अलग पहचान औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के दौर में लघु भारत के नाम से अपनी पहचान बना चुका बोकारो 60 के दशक के पहले माराफारी के नाम से जाना जाता था. बीएसएल प्लांट का निर्माण कार्य 1968 से प्रारंभ किया गया तथा 1973 में सेल की स्थापना के साथ ही यह सेल की इकाई बन गया. बीएसएल प्लांट की स्थिति अच्छी नहीं होने से इसका सीधा प्रभाव बोकारो-चास के बाजार पर पड़ रहा है. व्यवसायियों को समय व परिस्थितियों में बदलाव होने की आशा है. बीएसएल प्लांट की स्थापना के कई दशक बाद भी आज विस्थापितों की समस्याएं बरकरार हैं. दर्जनों विस्थापित संगठन समय-समय पर हक के लिए आंदोलन कर रहे हैं. कई बार कमेटी का गठन भी किया गया. कई बार आंदोलन हुए, लेकिन नतीजा आज तक कुछ नहीं निकला है. विस्थापित गांवों की स्थिति भी बदतर है.
पेयजल संकट से लेकर अन्य कई समस्याओं से विस्थापित जूझ रहे हैं.बियाडा की भूमि खत्म, औद्योगिक विकास पर लगा ब्रेकबोकारो स्थित बियाडा अब जियाडा हो गया है. इसके पास नये उद्योगों के लिए अब भूमि नहीं बची है. पूर्व में आवंटित भूमि का उपयोग नहीं होने पर अब आवंटन रद्द कर नया आवंटन करने की कवायद शुरू की गयी है. उद्योग विभाग सिंदरी में एफसीआइ की भूमि लेने की कार्रवाई कर रहा है. चास नगर निगम वर्ष 2015 के फरवरी माह में चास को नगर निगम का दर्जा मिला. इससे जनता को विकास की गति तेज हाेने की अपेक्षा है. सड़क पानी, बिजली, सौंदर्यीकरण आदि के लिए कार्य शुरू हुए. आने वाले समय में चास नगर निगम में विकास की काफी संभावनाएं हैं . फोर लेन से मिली है गति रामगढ़-बोकारो एनएच 23 और चास-गोविंदपुर एनएच 32 के फोरलेन बनने से विकास की गति तेज हुई है. एनएच 32 का कार्य तेजी से चल रहा है. इसके बाद कोयला की राजधानी के अलावे कोलकाता की राह आसान हो जायेगी. चार विधानसभा और दो संसदीय क्षेत्र बोकारो जिले में चंदनकियारी, बोकारो, गोमिया और बेरमो चार विधानसभा क्षेत्र हैं. गिरिडीह के डुमरी विधानसभा क्षेत्र का नावाडीह प्रखंड भी बोकारो जिले में आता है. वहीं अनुमंडल क्षेत्र धनबाद लोकसभा और गोमिया, बेरमो विधानसभा क्षेत्र समेत नावाडीह प्रखंड गिरिडीह लोस क्षेत्र में आता है.