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बोकारो के मजदूर दंपती ने मजदूरी के पैसे बचाकर बनाया मंदिर, जानें इसके निर्माण का इतिहास

महेश्वर साह व उनकी पत्नी किरण देवी विगत 20 वर्षों से मंदिर के निर्माण कार्य में लगे हैं. दोनों पेशे से मजदूर हैं. और मजदूरी करके जो पैसा बचता है उससे वे मंदिर के निर्माण में खर्च करते हैं.

By Sameer Oraon | April 11, 2024 2:12 PM

नागेश्वर, ललपनिया बोकारो : बोकारो के एक मजदूर दंपती ने धर्म के प्रति आस्था का शानदार नमूना पेश किया है. दरअसल मामला ये है कि इन्होंने मजदूरी का पैसा बचाकर अपने इलाके में एक शिव मंदिर का निर्माण कराया. मजदूर दंपती का नाम महेश्वर साह और किरण देवी है. वे गोमिया प्रखंड अंतर्गत‌ होसिर पश्चिमी पंचायत के रहने वाले हैं. आज उनके इस कार्य की गांव के लोग तारीफ करते नहीं थक रहे हैं.

जानकारी के अनुसार गांव के महेश्वर साह व उनकी पत्नी किरण देवी विगत 20 वर्षों से मंदिर के निर्माण कार्य में लगे हैं. दोनों पेशे से मजदूर हैं. और मजदूरी करके जो पैसा बचता है उससे वे मंदिर के निर्माण में खर्च करते हैं. इस संबंध में ग्रामीणों ने बताया कि पूर्व मंत्री माधव लाल सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता शेखर प्रजापति, देवनारायण प्रजापति एवं विरेंद्र साव समेत गांव के कुछ लोग आपस में चंदा करके मंदिर निर्माण की शुरूआत की लेकिन खर्च कम पड़ जाने के कारण निर्माण कार्य पूरा न हो सका. इसके बाद दोनों पति पत्नी मजदूरी के पैसे बचाकर फिर से इस काम को शुरू किया. जो आज पूरा हो गया. 22 अप्रैल को इस मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान कार्यक्रम होना है. जो पांच दिन तक चलेगा.

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क्यों हुआ मंदिर का निर्माण

जब प्रभात खबर के प्रतिनिधि ने मजदूर महेश्वर साह से बातचीत की तो पता कि हमारे गांव में पूर्वजों द्वारा बनाया गया एक मंदिर था. मंदिर के पास ही एक डैम था. साल 1970-71 की बात है. बचपन में एक बार मैं डैम में स्नान करने गया था. लेकिन स्नान करने दौरान मैं डूबने लगा. जब ग्रामीणों ने मुझे डूबते देखा तो उन्होंने मुझे पानी से निकाला और मंदिर परिसर में एक स्थान पर रख दिया. इसके बाद लोग मेरे चंगा होने की कामना करने लगे.

कुछ देर बाद मुझे होश आया. इसके बाद वहां पर मौजूद लोगों ने मुझे घटना की जानकारी दी. उसके बाद से हमने गांव में मंदिर बनाने की सोची. जो आज पूरा हो गया. मजदूर महेश्वर साह ने कहा कि आज हम पति पत्नी बेहद खुश हैं. वे कहते हैं कि हमारी कोई संतान नहीं लेकिन हमारे जब नहीं रहेंगे तब गांव की आने वाली पिढ़ी हमें याद रखेगी.

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