धर्मनाथ कुमार, बोकारो, सोशल मीडिया में खोई युवा पीढ़ी का पाला भले ही पोस्टकार्ड से ना पड़ा हो, पर एक दौर में पोस्टकार्ड खत भेजने का प्रमुख जरिया था. शादी-ब्याह, शुभकामनाओं से लेकर निधन की खबरों तक तो इन पोस्टकार्डों ने सहेजा है. तमाम राजनेताओं से लेकर साहित्यकारों व आंदोलनकारियों ने पोस्टकार्ड का बखूबी प्रयोग किया है. ये कहना है पश्चिमी अनुमंडल के सहायक डाक अधीक्षक अभिजीत रंजन का. उन्होंने कहा कि पोस्टकार्ड एक अक्तूबर, 2024 को वैश्विक स्तर पर 155 साल का हो गया. बताया कि दुनिया में पहला पोस्टकार्ड एक अक्तूबर 1869 को ऑस्ट्रिया में जारी किया गया था. पोस्टकार्ड के प्रति अभी भी लोगों का क्रेज बरकरार है. कहा कि आज भी जिले के सभी डाकघरों में पोस्टकार्ड की बिक्री जारी है. हर माह कम से कम 100 से अधिक पोस्टकार्ड की बिक्री हो रही है.
इनके पास है 500 से अधिक पोस्टकार्ड संग्रह
सेक्टर-04 सिटी सेंटर निवासी फिलाटेलिस्ट सतीश कुमार व को-ऑपरेटिव कॉलोनी निवासी ज्योतिमर्य डे राणा ने के पास विभिन्न राज्य के 500 से अधिक पोस्टकार्ड संग्रह है. उनका कहना है कि जिस पोस्ट कार्ड का इस्तेमाल कभी दिल का इजहार करने और एक दूसरे से जानकारी साझा करने के लिए किया जाता था. आज उसकी जगह इमेल व सोशल मीडिया ने ले ली है.
चार तरह के मिलते हैं यह पोस्टकार्ड
डाकघरों में चार तरह के पोस्टकार्ड मिलते रहे हैं, मेघदूत पोस्टकार्ड, सामान्य पोस्टकार्ड, प्रिंटेड पोस्टकार्ड और कंपटीशन पोस्टकार्ड. ये क्रमशः 25 पैसे, 50 पैसे, छह और 10 रुपये में उपलब्ध हैं.पोस्टकार्ड आम आदमी की पहचान
पोस्टकार्ड विक्रेता डाककर्मी देवेंद्र कुमार बताते हैं कि कम लिखे को ज़्यादा समझना की तर्ज पर पोस्टकार्ड न सिर्फ व्यक्तिगत बल्कि तमाम सामाजिक-साहित्यिक-धार्मिक-राजनैतिक आंदोलनों का गवाह रहा है. पोस्टकार्ड का खुलापन पारदर्शिता का परिचायक है तो इसकी सर्वसुलभता लोकतंत्र को मजबूती देती रही है. आज भी तमाम आंदोलनों का आरंभ पोस्टकार्ड अभियान से ही होता है. सोशल मीडिया ने संचार की परिभाषा भले ही बदल दी हो, पर पोस्टकार्ड अभी भी आम आदमी की पहचान है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है