Bokaro News: चंदनकियारी में 200 वर्षों से हो रही दुर्गा पूजा
Bokaro News: भव्य आरती में उमड़ते हैं श्रद्धालु, राजसिक परंपरा से की जाती है मां की पूजा
डीएन ठाकुर, चंदनकियारी, चंदनकियारी मुख्यालय में लगभग 200 वर्षों पूर्व दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई थी. देश में ब्रिटिश शासन के दौरान सन 1800 इ की शुरुआत में चंदनकियारी के तत्कालीन जमींदार स्व रामजीवन ओझा, स्व भुवन मोहन ओझा , स्व मधुसूदन ओझा व स्व पंडित सुधाकर ओझा सहोदर भाइयों द्वारा पूजा की शुरुआत अपने ओझा टोला स्थित हवेली में ही की गयी थी. तब पूजा के लिए तत्कालीन ब्रिटिश प्रशासन की अनुमति आवश्यक होती थी. साथ ही इसके लिए पूजा विधि में राजसिक परंपरा का निर्वहन करना भी जरूरी था. जहां दुर्गोत्सव में उमड़ती श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए उक्त पूजा को कुछ वर्षों के बाद चंदनकियारी मध्य बाजार में भव्य मंदिर का निर्माण कर किया जाने लगा. कालांतर में उक्त पूजन व्यवस्था को चंदनकियारी गांव के सोलह आना कमेटी को सौंप दिया गया. तब से समस्त ग्रामीणों के सहयोग से पूजन व्यवस्था के परंपरा का निर्वहन होने लगा. जो आज भी जारी है. इसके लिए समाज के सभी वर्गों की भूमिका भी तय की गयी है. ताकि पूजन व्यवस्था में सार्वजनिक सहभागिता बनी रहे.
भव्य महाआरती व कलश विसर्जन की महत्ता
यहां राजसिक दुर्गापूजा के दौरान महासप्तमी, महाष्टमी व महानवमी की संध्या में माता की भव्य आरती में दूर-दराज सहित आसपास के हजारों श्रद्धालु शामिल होकर पुण्य का भागी बनते हैं. साथ ही दशमी के दिन कलश विसर्जन के दौरान मंदिर से विसर्जन स्थल स्थित तालाब तक डेढ़ किमी की दूरी में हजारों ग्रामीण महिला-पुरुष लेटकर अपने शरीर के ऊपर से होकर माता के कलश को पार करवाकर उनके प्रति श्रद्धा अर्पित करते हैं. जो अपने आप में अनूठी परंपरा है. इसके अलावा यहां विजया दशमी के दिन लगी मेले में दर्जनों आदिवासी समूहों द्वारा झारखंडी संस्कृति का संथाली नृत्य की चर्चा दूर-दराज तक है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है