सीपी सिंह, बोकारो, प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्। धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥ शारदीय नवरात्र आज यानी 03 अक्तूबर (गुरुवार) से शुरू हो गया. गुरुवार को कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 5:42 बजे से 8:02 बजे तक है. इसके अलावा घर में कलश स्थापना भी दोपहर 12:23 से 2:40 के बीच कर सकते हैं. नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने का नियम है. मां दुर्गा के नौ रूपों में मां शैलपुत्री को पहला रूप माना गया है. मां शैलपुत्री की पूजा से ही नवरात्रि की शुरुआत होती है. मान्यता है कि मां शैलपुत्री चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करती हैं. मां शैलपुत्री की आराधना से व्यक्ति चंद्रमा के सभी प्रकार के दोषों और दुष्प्रभाव से बच सकता है. नवरात्र का सनातन संस्कृति में विशेष महत्व है.
नवरात्र में मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है. साधना-आराधना के इतर नवरात्र का वैज्ञानिक तौर पर भी महत्व माना गया है. अक्तूबर में शीतकालीन ऋतु की शुरुआत होती है. फसलों के उत्पादन में भी बड़ा परिवर्तन होता है. ग्रीष्मकालीन अवस्थाओं में पैदा होनी वाली फसल शीतकाल में भोजन बनती है. जनरल फिजिशियन डॉ रंधीर सिंह ने बताया कि हर मौसम में शरीर का व्यवहार व मेटाबॉलिज्म अलग हो जाता है. इसमें नौ दिनों का भी अपना महत्व होता है, क्योंकि नौ दिनों में किसी भी शरीर का पर्याप्त रूप से विषहरण हो जाता है. डॉ सिंह ने बताया कि मतलब जब हमारे भोजन में परिवर्तन होता है, तो शरीर को अवसर दिया जाना चाहिए की नये भोजन के लिए तैयार हो. इसके लिए जो पूर्व में लिया गया भोजन हो, उससे जुड़े तमाम तरह के विषैले पदार्थों से मुक्त होने के लिए नौ दिन चाहिए होते हैं.रांची विश्वविद्यालय के भू-गर्भ शास्त्री नीतीश प्रियदर्शी की माने तो नौ दिन का मतलब यह भी है कि हमारी पृथ्वी समेत नौ ग्रह है. जिनका किसी न किसी रूप से हमारे शरीर से सीधा संदर्भ व संपर्क है. पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण पर टिकी हुई है व सभी तरह के ग्रह-उपग्रह इसी शक्ति से अपने-अपने स्थानों से व्यवहार करते हैं. इन नौ ग्रहों का हमारे शरीर पर भी गुरुत्वाकर्षण प्रभाव होता है, इसलिए नौ की संख्या को ज्यादा महत्व मिला है. श्री प्रियदर्शी ने बताया की नौ को एक संपूर्ण संख्या भी माना जाता है, मतलब नौ की संख्या को जब हम किसी भी संख्या से गुणा करेंगे तो योग अंततः नौ ही प्राप्त होता है.
आर्थिक रूप से नवरात्र का महत्व
नवरात्र का आध्यात्म व विज्ञान रूप में महत्व के साथ-साथ आर्थिक रूप से भी विशेष महत्व होता है. दरअसल, सनातन संस्कृति में पूजा-पाठ का विविध अर्थ छिपा है. नवरात्र आर्थिक रूप से समाज को सबल बनाने की पूजा है. मूर्तिकारों से मूर्ति, कुम्हार से दीप व कलश, पंडाल, ब्राह्मण से पूजा, पूजन सामग्री की खरीदारी, लाइट, साउंड, आरती के समय ढोल-ताशा, जौ विधि के समय बीज की पहचान, अन्य खरीदारी… ऐसे कई गतिविधि हैं, जो आर्थिक रूप से सनातन संस्कृति को मजबूत करती है. बोकारो चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के संरक्षक संजय वैध की माने तो नवरात्र बाजार को बूस्ट करता है. बारिश के कारण थमी आर्थिक गतिविधि को इससे गति मिलती है. एक अनुमान के मुताबिक बोकारो जिला में पूजा को लेकर 50 करोड़ से अधिक का ट्रांजेक्शन होता है.
कैसे करें कलश स्थापना, यह है विधि
ब्रह्म मुहूर्त या शुभ मुहूर्त (शुभ समय): स्नान के बाद अनुष्ठान शुरू करें, स्वच्छता और पवित्रता सुनिश्चित करें.
मिट्टी तैयार करना : एक बर्तन लें और उसमें मिट्टी डालें, उसे पानी से गीला करें. यह मिट्टी उर्वरता और विकास का प्रतीक है.जौ बोना :
मिट्टी में जौ के बीज बोएँ, जो घर में समृद्धि और विकास का प्रतिनिधित्व करता है. कलश स्थापना : जौ के साथ मिट्टी के ऊपर एक मिट्टी का कलश (बर्तन) रखें. कलश प्रचुरता और दिव्यता का प्रतीक माना जाता है.कलश भरना :
कलश को गंगा जल से भरें, जो पवित्रता का प्रतीक है. यदि यह उपलब्ध नहीं है तो आप गंगा जल के स्थान पर स्वच्छ जल का उपयोग कर सकते हैं.कलश में चढ़ावा :
कलश के जल में सुपारी, एक सिक्का और फूल डाले. ये वस्तुएं भक्ति, धन व पवित्रता का प्रतीक हैं.अक्षत कटोरा :
कलश के ऊपर अक्षत से भरा मिट्टी का कटोरा रखें.देवी की प्रतिमा : कलश के सामने देवी की प्रतिमा या छवि रखें, जो दिव्य मां की उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करती है.वैदिक पूजा :
पूरे वैदिक अनुष्ठानों के साथ पूजा करें, जिसमें मंत्रों का जाप, फूल, फल व धूप चढ़ाना शामिल हो सकता है.दैनिक पूजा :
नवरात्रि के सभी नौ दिनों तक पूजा का यह क्रम जारी रखना चाहिए, जिसमें हर दिन प्रसाद और प्रार्थना की जाती है.विसर्जन :
10वें दिन कलश को पानी में विसर्जित किया जाता है, जो त्योहार के समापन और देवी के अपने दिव्य निवास पर लौटने का प्रतीक है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है