बोकारो की विधवा नहीं दे पायी पूरा पैसा तो अस्पताल ने भगाया, 11 माह से झेल रही यंत्रणा
बाबू… एक साल हो गये. कोई देखनेवाला नहीं है. बेसहारा हूं. पैसा नहीं है तो इलाज भी नहीं करा पा रही. 20 साल पहले पति मर गये. जैसे-तैसे मजदूरी करके बेटा और पोती का पेट भर रही थी. अब तो वो भी नहीं कर पा रही. यह कहानी है रोड एक्सिडेंट में घायल बोकारो की महिला की. जानिए क्या है पूरा घटनाक्रम...
कृष्णकांत सिंह, बोकारो
Bokaro News: बाबू… एक साल हो गये. कोई देखनेवाला नहीं है. बेसहारा हूं. पैसा नहीं है. इलाज करा दो. 20 साल पहले पति मर गये. जैसे-तैसे मजदूरी करके बेटा और पोती का पेट भर रही थी. अब तो वो भी नहीं कर पा रही. कोई कुछ दे देता है तो खा लेती हूं. कभी नमक रोटी को कभी माड़ भात. अब तो लगता है कि अपने पैर पर कभी खड़ा भी हो सकूंगी या नहीं. पता नहीं.
ये कहानी एक विधवा महिला की है, जो दुर्घटना का शिकार होने के बाद इलाज का पूरा पैसा नहीं चुका सकी तो अस्ताल प्रबंधन से न केवल इलाज करने से मना कर दिया, बल्कि उसे अस्पताल से भगा दिया. दूसरी ओर घटना के बाद जब महिला का बेटा प्राथमिकी दर्ज कराने थाना गया, तो समझौता करने की बात कही गयी. जब उसने मना किया तो अभद्र व्यवहार करते हुए टालमटोल किया जाने लगा. जब स्थानीय मुखिया ने दबाव डाला तब जाकर घटना के सात महीने बाद प्राथमिकी दर्ज की गयी.
क्या है मामला
जरीडीह प्रखंड की बहादुरपुर निवासी बसंती देवी (54 वर्ष) पति स्व धरम सिंह 16 अक्तूबर 2021 को मजदूरी कर शाम के वक्त अपने घर लौट रही थी. घर पहुंचने ही वाली थी कि करीब सात बजे एनएच-23 पर बहादुरपुर बाजार के पास तेज रफ्तार में आ रही बाइक (जेएच09एवी 2372) ने टक्कर मार दी. इस घटना में बसंती देवी का दाहिना पैर टूट गया. स्थानीय लोग 108 एंबुलेंस की मदद से महिला को बीजीएच ले गये. वहां पहुंचने पर एंबुलेंस के चालक ने कहा कि यहां ठीक तरह से इलाज नहीं होगा. इसलिए प्राइवेट हॉस्पिटल ले चलिए. उसके कहने पर लोग जैनामोड़ स्थित लाइफ केयर हॉस्पिटल ले गये. यहां तक ले जाने के एवज में एंबुलेंस के चालक ने 500 रुपये भी लिया.
अस्पताल प्रबंधन को रहम नहीं आया
लाइफ केयर अस्पताल में महिला को आनन-फानन में भर्ती कर दिया गया. पहले तो इलाज के नाम पर देरी की गयी. बाद में जब इलाज शुरू हुआ तो बताया गया कि लगभग 80-85 हजार खर्च आयेगा. बसंती देवी ने पोती की शादी के लिए 50 हजार रुपये बचाकर रखे थे उसे अस्पताल में जमा करवा दिया. करीब दस दिन बीतने के बाद अस्पताल संचालक ने बाकी के पैसे जल्द जमा करने को कहा. इस पर महिला ने कहा कि उसके पास इतने पैसे नहीं हैं, कुछ कम कर दीजिये. इतना सुनते ही चिकित्सक ने 27 अक्तूबर 21 को इलाज करने से मना करते हुए अस्पताल से भगा दिया. इतना ही नहीं बिल तक नहीं दिया. इस बात की जानकारी बाराडीह की मुखिया पुष्पा देवी को मिली तो वह अस्पताल पहुंची और बिल देने की मांग की. काफी देर तक टालमटोल करने के बाद बिल तो दे दिया, लेकिन इलाज नहीं किया गया. तब से बसंती की जिंदगी दर्द में गुजर रही है.
दारोगा ने दिखाया वर्दी का रौब
घटना के बाद जब बसंती देवी का बेटा अरुण केस दर्ज कराने जरीडीह थाना गया तो पुलिस ने समझौता करने के लिए दबाव डाला. केस के आइओ ने कहा कि बुढ़िया जानबूझ कर गाड़ी के सामने आयी है मरने के लिए. इसलिए आठ हजार रुपये ले लो और समझौता कर लो. गाड़ी वाले की गलती नहीं है. सब तुम्हारी मां की गलती है. इस तरह करीब छह महीने बीत गये लेकिन पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज नहीं की. आखिरकार अरुण बहादुरपुर की मुखिया पुष्पा देवी के पास फरियाद लेकर गया. मुखिया ने थाना पहुंचकर केस दर्ज करने की मांग की, तब जाकर 25/4/2022 को केस (संख्या 91/2022, धारा – 279/337/338) दर्ज किया गया.
अस्पताल प्रबंधन ने कहा
डॉ सिराज ने ऑपरेशन किया था. जब मरीज पूरा पैसा नहीं देगा तो कैसे इलाज होगा. फ्री में तो सब नहीं होगा. उसके घर जाकर इलाज तो नहीं करेंगे. और फिर मरीज के परिजनों को पहले ही खर्च के बारे में बता दिया गया था. उन लोगों के कहने पर ही डिस्चार्ज किया गया था.
बीएन महतो, संचालक, लाइफ केयर हॉस्पिटल
क्या कहती है पुलिस
घटना घटने के 24 घंटे के अंदर केस दर्ज होना चाहिए था. जिस वक्त ये घटना हुई थी, उस समय मैं यहां पोस्टेड नहीं था. अभी मैं रिव्यू मीटिंग मं हूं. इसलिए मामले को देखने के बाद ही कुछ कह सकूंगा.
ललन रविदास, थाना प्रभारी, जरीडीह