Bokaro News: बोकारो स्टील सिटी (BSL) के मध्य भाग में घूमने पर एक सुंदर आवासीय कॉलोनी दिखती है, जो 1970 के दशक में रूसी नागरिकों के लिए बसायी गयी थी. सेक्टर चार में दोनों ओर कतारबद्ध हरे-भरे पेड़-पौधों से युक्त चौड़ी सड़कों के मध्य स्थित ”रसियन कॉलोनी” व ”सोवियत क्लब” अब भी मजबूती से अपनी मौजूदगी दर्शाता है, जो भारत और रूस के बीच के बंधन का प्रतीक है. हालांकि, वहां अब कोई रूसी नहीं रहता है.
बोकारो शहर के बीचो-बीच स्थित ”रसियन कॉलोनी” का इतिहास बीएसएल से जुड़ा है. भारत और रूस के बीच राजनायिक संबंधों के 75 साल पूरे होने के बीच दोनों देशों के सहयोग की मिसाल आज भी बुलंदी से खड़ी है. यहां जिक्र बोकारो इस्पात संयंत्र (बीएसएल) का हो रहा है, जो रूसी तकनीक की मदद से स्थापित किया गया था. बीएसएल सोवियत संघ के सहयोग से तीसरी पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत स्थापित हुआ.
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बोकाराे इस्पात संयंत्र भारत व रूस के बीच आपसी संबंधों, आर्थिक व औद्योगिक सहयोग की एक मिसाल माना जाता है. भारत और सोवियत संघ (अब रूस) संबंधों की छांव में शुरू हुआ बीएसएल आज सेल की एक महत्वपूर्ण इकाई बन चुका है. रसियन कॉलोनी…सोवियत क्लब… हम रूस के किसी कॉलोनी या किसी क्लब की बात नहीं कर रहे हैं. बात हो रही है बोकारो की. जी हां, यहां रसियन कॉलोनी व सोवियत क्लब है.
बोकारो स्टील प्लांट के निर्माण के समय दर्जनों रूसी विशेषज्ञ बोकारो आये थे. सेक्टर 4 डी में रसियनों का आशियाना बना ‘रसियन कॉलोनी’. उनके मनोरंजन के लिए क्लब बना ‘सोवियत क्लब’. आज भले ही रूसी विशेषज्ञ यहां नहीं रहते है. लेकिन, रसियन कॉलोनी व सोवियत क्लब आज भी सेक्टर 4 डी में रसियनों की याद को ताजा करता रहता है. आज भी बोकारो में इस कॉलोनी को देखने के लिये लोग यहां आते हैं.
यहां उल्लेखनीय है कि बोकारो स्टील प्लांट की स्थापना के लिये 25 जनवरी 1965 को भारत व तत्कालीन सोवियत सरकार के बीच नयी दिल्ली में सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये गये थे. सोवियत सरकार के सहयोग से बोकारो स्टील प्लांट में इस्तेमाल के लिए अधिकतर उपकरणों व संरचनाओं का निर्माण भारत में ही किया गया. बोकारो इस्पात कारखाने की स्थापना 29 जनवरी 1969 को एक लिमिटेड कंपनी के तौर पर हुआ था.
24 जनवरी 1973 को स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) बनने पर बीएसएल सेल के पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी बन गयी. अंतत: 01 मई 1978 को सार्वजनिक क्षेत्र लौह एवं इस्पात कंपनियां (पुनर्गठन व विविध प्रावधान) अधिनियम 1978 के अंतर्गत इसका सेल में विलय हो गया. बीएसएल को देश का पहला स्वदेशी इस्पात कारखाना कहा जाता है. आज सेल की इकाईयों में बीएसएल का एक विशेष स्थान है.
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र में चौथे एकीकृत कारखाने की कल्पना 1959 में की गयी. बोकारो इस्पात कारखाने से संबंधित प्रस्ताव सोवियत संघ के सहयोग से 1965 में सामने आया. कारखाने की स्थापना संबंधी समझौते पर 25 जनवरी 1965 को हस्ताक्षर हुआ. डिजाइन के अनुसार कारखाने के प्रथम चरण में उत्पादन क्षमता 17 लाख टन और दूसरे चरण में 40 लाख टन निश्चित की गयी. निर्माण कार्य 06 अप्रैल 1968 को शुरू हुआ.
उपस्करो, साज-सामान व तकनीकी जानकारी को देखते हुए यह देश का पहला स्वदेशी इस्पात कारखाना कहा जाता है. 17 लाख टन पिंड इस्पात का प्रथम चरण दो अक्टूबर 1972 को पहली धमन भट्टी के साथ शुरू हुआ. 26 फरवरी 1978 को तीसरी धमन भट्टी चालू होने पर पूरा हुआ. यहां सपाट उत्पाद, जैसे हॉट रोल्ड कॉयल, हॉट रोल्ड प्लेट, हॉट रोल्ड शीट, कोल्ड रोल्ड कॉयल, कोल्ड रोल्ड शीट का उत्पादन होता है.
बड़ी संख्या में बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, पंजाब, आंध्र प्रदेश सहित अन्य राज्यों से लोग बोकारो स्टील प्लांट में नौकरी के लिए आकर्षित हुए. इसके कारण एक महानगरीय संस्कृति के साथ ही कई अन्य सुविधाओं से लैस ‘बोकारो क्षेत्र आवासीय परिसर’ का उदय हुआ. फिलहाल, यहां दस सेक्टर है. सेक्टर एक से लेकर बाहर तक का निर्माण हुआ है, जिसमें सेक्टर सात व सेक्टर दस का निर्माण नहीं हुआ है.
बीएसएल प्लांट के निर्माण में रूसी प्रौद्योगिकी की मदद ली गयी थी. ऐसे में उस देश के तकनीशियन व विशेषज्ञ भी यहां चार दशकों से अधिक समय तक रहे और संयंत्र में काम किया. भारत और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच संयंत्र के लिए समझौते पर हस्ताक्षर के बाद से यहां रूसी नागरिकों का आगमन शुरू हुआ. इनके लिये सेक्टर चार में ”रसियन कॉलोनी” बना. यहां कुल 32 क्वार्टर का निर्माण किया गया.
रूसियों के ”रसियन कॉलोनी” में नहीं रहने के बावजूद इसका नाम कभी नहीं बदला गया. यह अब भी भारत और रूस के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों का प्रतीक है. यहां के क्वार्टर इस बात का अहसास कराते हैं कि यह कॉलोनी कभी रूसी नागरिकों से गुलजार रहा करती थी. कॉलोनी स्थित ”सोवियत क्लब” उस समय के मनोरंजन की याद को ताजा करता है. यहां से गुजरने वालों को ध्यान बरबस इस ओर खींचा चला आता है.