राकेश वर्मा, बेरमो करीब चार-पांच वर्ष पूर्व राज्य सरकार और सीसीएल के बीच एक एमओयू हुआ था. इसके तहत सीसीएल के सभी एरिया प्रबंधन को अपनी बंद खदानों में जमा पानी की सर्वे रिपोर्ट बनानी थी. रिपोर्ट बननी शुरू हुई. इसका उद्देश्य माइंस में जमा लाखों गैलन रॉ वाटर का इस्तेमाल करना था. राज्य सरकार को अपने संसाधनों से आसपास के गांवों में इस पानी की आपूर्ति करनी थी. बीएंडके एरिया प्रबंधन ने 2017-18 में इस पर कार्य आरंभ किया. इसके तहत बंद पड़ी माइंस में जमा रॉ वाटर की सर्वे रिपोर्ट तैयार कर मुख्यालय को दी गयी. ऑन फ्यूचर वाटर डिमांड एंड माइंस वाटर यूटिलाइजेशन के नाम से बनायी गयी इस रिपोर्ट में बीएंडके एरिया ने अपनी सभी माइंस में जमा पानी का आकलन किया था. हालांकि यह योजना ठंडे बस्ते में चली गयी. जानकारी के अनुसार, खदान के पानी का उपयोग राज्य सरकार को करनी थी. सरकार फिल्टर प्लांट बैठा कर खदान के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में इय पानी की आपूर्ति करती. इससे काफी हद तक लोगों को जल संकट से निजात मिलती. बीएंडके एरिया के तत्कालीन महाप्रबंधक, जिनके कार्यकाल में सर्वे रिपोर्ट तैयार की गयी थी, उनका कहना था कि राज्य सरकार व सीसीएल के बीच हुए एमओयू के बाद जमा पानी की सर्वे रिपोर्ट तैयार की गयी थी. जानें किस बंद खदान में कितना है पानी : सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, बीएंडके एरिया के केएसएसपी फेज 2 की बंद यूजी माइंस (एक खदान) में 264978.2 घन मीटर पानी, केएमपी यूजी माइंस (दो खदान) में 1298 39.61 घन मीटर पानी, बोकारो कोलियरी (पांच नंबर खदान) में 926176.96 घन मीटर पानी, कारो खुली खदान तथा भूमिगत खदान (दो खदान) में 230910.11 घन मीटर पानी और करगली कोलियरी खुली खदान व भूमिगत खदान (दो खदान) में 238480.92 घन मीटर पानी रिजर्व का आकलन किया गया था. कहां-कहां हैं बंद खदानें : बोकारो कोलियरी की तीन खदानों में पानी भरा हुआ है. इसमें तीन नंबर क्वायरी, बेरमो रेलवे गेट के समीप पांच नंबर खदान और जरीडीह बाजार के निकट सी पैच खदान है. ढोरी प्रक्षेत्र अंतर्गत ढोरी खास मैदान में भी करोड़ों गैलन पानी का भंडार है. इसके अलावा ढोरी की बेरमो सीम, ढोरी कांटा घर के समीप बंद खदान, ढोरी प्रक्षेत्र के मकोली सात नंबर बंद खदान, एएडीओसीएम परियोजना की ढोरी इस्ट माइंस, बंद पिछरी कोलियरी, पांच नंबर धौड़ा स्थित नाथून धौड़ा पीसीसी खदान और बेरमो सीम खदान में करोड़ों गैलन पानी भरा हुआ है. कथारा कोलियरी में वर्षों से बंद एक नंबर माइंस एवं स्वांग गोविंदपुर फेज टू क्वायरी नंबर 2 में लाखों गैलन पानी भरा हुआ है. संयंत्र स्थापित कर रॉ वाटर को बनाया जा सकता है मीठा जल : हजारों फीट गहरी इन खदानों में पानी की मात्रा का सही आकलन संभव नहीं है. जानकारों की मानें, तो इसका आयतन अरबों गैलन पानी के रूप में है. कोयला खनन के दौरान भू-गर्भ में जहरीली गैस सहित खतरनाक रसायनों से घुला पानी पीने योग्य नहीं है. इसलिए इन सभी खदानों में जमा रॉ वाटर को जल शोधन संयंत्र स्थापित कर मीठे जल में तब्दील किया जा सकता है. जिससे कोयलांचल की एक बड़ी आबादी की प्यास बुझायी जा सकती है. यहां की सिर्फ एक बंद खदान ही 50-60 गांवों को निर्बाध जलापूर्ति कर सकती है. सीसीएल प्रबंधन सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के तहत अरबों रुपये खर्च करता है, पर बंद खदानों में जमा पानी का उपयोग करने में दिलचस्पी नहीं दिखाता. जेसीएसी की बैठक में उठ चुका है जमा पानी का मामला : बीएंडके एरिया की बंद खदानों में जमा लाखों गैलन पानी के उपयोग का मामला 2014-15 में सीसीएल स्तरीय संयुक्त सलाहकार संचालन समिति की बैठक में उठा था. सदस्यों की ओर से तत्कालीन सीसीएल सीएमडी गोपाल सिंह का ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा गया था कि बंद खदानों में जमा पानी का उपयोग ड्रिंकिंग वाटर के लिए किया जाये. मजदूर कॉलोनियों तक पाइप लाइन बिछाकर तथा ओवरहेड टैंक बनाकर जलापूर्ति सुनिश्चित किया जाये. सीएमडी ने इसपर हामी जतायी थी. साथ ही, मछली पालन सहित अन्य तरह के रोजगार सृजन का भी मामला उठा था. इस पर प्रबंधन की ओर से कहा गया था कि इसके लिए राज्य सरकार, डीएफओ व ग्रीन ट्रिब्यूनल से सहमति लेना होगा. इसी बीच तेनुघाट मेघा जलापूर्ति योजना शुरू होने के बाद सीसीएल की बंद खदानों में जमा पानी के यूटिलाइजेशन की योजना खटाई में पड़ गयी. हालांकि आज भी कोयलांचल की एक बड़ी आबादी इन्हीं खदानों के रॉ वाटर से अपनी दिनचर्या पूरी करती है. मेघा जलापूर्ति योजना भी आजतक 100 फीसदी पूर्ण नहीं हो पायी है. लगभग 20-25 फीसदी काम आज भी अधर में लटका हुआ है.
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