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आने वाला 40-50 साल तक कोयला व कोल सेक्टर का महत्व खत्म नहीं होगाः बी अकला

आने वाला 40-50 साल तक कोयला व कोल सेक्टर का महत्व खत्म नहीं होगाः बी अकला

बेरमो. बालास्वामी अकला बेरमो कोयलांचल अंतर्गत सीसीएल की बोकारो कोलियरी में अंडर मैनेजर, मैनेजर के बाद 90 के दशक में बीएंडके एरिया के जीएम बने. इसके बाद सीसीएल के सीएमडी हुए. करीब 22 साल पूर्व कोल इंडिया से सेवानिवृत हुए माइनिंग इंजीनियर व बेहतर टेकनोक्रेट रहे श्री अकला से कोल सेक्टर के वर्तमान परिदृश्य व भविष्य में होने वाले बदलावों को लेकर प्रभात खबर ने विशेष बातचीत की. श्री अकला ने कहा कि यह सही है कि वर्तमान में रिन्युअल एनर्जी पर तेज गति से काम हो रहा है. विंड पावर, न्यूकिलर पावर, सोलर एनर्जी, हाइडल पावर आदि आ रहे हैं. इसके बावजूद 40-50 साल तक कोयला व कोल सेक्टर का महत्व खत्म नहीं होगा. दुनिया में भारत तीसरा देश है, जहां अभी सबसे ज्यादा कोल रिजर्व है. देश के थर्मल पावर को अपना कार्बन मोनो ऑक्साइड की क्षमता को कम करना होगा. इसको कम करने के लिए भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया कोशिश कर रही है. पहले देश में 80 फीसदी थर्मल पावर थे, अब 60 फीसदी हो गये है. वर्तमान में कोल इंडिया 700-800 मिलियन टन कोल प्रोडक्शन कर रही है, यह अभी और आगे जायेगी. 2027 तक लक्ष्य एक बिलियन टन उत्पादन करने का है. इतना जल्दी कोल सेक्टर व कोयला के अस्तित्व को समाप्त नहीं किया जा सकता.

श्री अकला ने कहा कि समय के साथ बदलाव होना ही चाहिए. 1971 व 73 में कोयला उद्योग की सभी माइंसों का राष्ट्रीयकरण हुआ. 1993 में कैपिटल माइंस पर प्रयोग शुरू हुआ. 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने देश में प्राइवेट मालिकों को आवंटित सैकड़ों कोल ब्लॉक के आवंटन को रद्द कर दिया. वर्तमान में कोयला की डिमांड बढ़ रही है, इसे पूरा करना अकेले कोल इंडिया से संभव नहीं है. इसलिए कॉमर्शियल माइनिंग, एमडीओ के अलावा प्राइवेट मालिकों को कोल ब्लॉक दिये जा रहे हैं. ऐसे भी पूरी दुनिया में अब बिजनेस व इंडस्ट्री ओपेन हो रहा है. यहां बहुत पहले ही यह हो जाना चाहिए था. कॉमर्शियल माइनिंग आने वाले वक्त के साथ जरुरी है. एमडीओ भी ठीक है, लेकिन इस पर कोल सेक्टर को भी नजर रखना होगा. जैसे कोई जमींदार अपनी जमीन को खेती करने के लिए दूसरे को देता है, लेकिन उस पर निगरानी रखता है. माइंस को सही सलामत रखना जरूरी है.

पूर्व सीएमडी का कहना है कि हमलोगों के समय में भी माइंस चालू करने के लिए इनवायरमेंट व फोरेस्ट क्लीयरेंस लेना जरूरी होता था. लेकिन अब पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है. पूरी दुनिया में क्लाइमेंट चेंज हो रहा है. ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ा है. 1986 के फोरेस्ट एक्ट के अनुसार कोल इंडिया में नियम है कि एक एकड़ वन विभाग की जमीन लेने के बदले दो एकड़ जमीन देना है तथा जितना पेड़ कटेंगे, उतने पेड़ लगाना है. लेकिन इसका सही ढंग से पालन नहीं होता. अब तक कितना पौधारोपण हुआ, यह देखने वाली बात है.

यूजी माइंस में नये वैज्ञानिक तरीके से हो रहा खनन

श्री अकला ने कहा कि यह सच है कि पहले जो वेल्यूवल माइंस हैं, उसका खनन व दोहन करते हैं. टिपिकल माइंस में उत्पादन करने में कठिनाई आती है. यूजी माइंस में अब नये वैज्ञानिक तरीके से खनन किया जा रहा है. इसकी दक्षता बढ़ायी जा रही है.

प्राइवेट सेक्टर की दक्षता व पब्लिक सेक्टर की पारदर्शिता जरूरी

कहा कि पब्लिक सेक्टर रहना चाहिए. यूके में पहले प्राइवेट था, फिर ब्रिटिश कोल आया. भारत में भी पहले कोयला खदानें प्राइवेट थीं, बाद में एनसीडीसी आया. इसके बाद कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण हुआ. वर्तमान समय में पब्लिक व प्राइवेट दोनों को रखना चाहिए. प्राइवेट में काम होता है, लेकिन पब्लिक सेक्टर में लोग काम के प्रति थोड़ा गंभीर नहीं रहते. कोयला में प्राइवेट सेक्टर की दक्षता व पब्लिक सेक्टर की पारदर्शिता जरूरी है.

बीएंडके एरिया यहां की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी

पूर्व सीएमडी ने कहा कि बतौर माइनिंग इंजीनियर मेरी कैरियर की शुरुआत बेरमो से हुई. खासकर पूरे सीसीएल में बीएंडके एरिया ना सिर्फ कोल माइनिंग बल्कि गर्वनेंस, एडमिनिस्ट्रेशन व पॉलिटिकल मामले में यहां की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी है. यहां प्रैक्टिकली हर चीज का ट्रेनिंग मिलती है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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