देश में लोकतंत्र का पर्व मन रहा है. 18वीं लोकसभा के लिए तीन चरण का चुनाव संपन्न हो चुका है. चौथे चरण के लिए 13 मई को वोट पड़ेंगे. चुनाव प्रचार के दौरान राजनेता जनता-जनार्दन की अहमियत भलीभांति समझते हुए उन पर अपनी अमिट छाप छोड़ने का हर जतन कर रहे हैं. ऐसे मौके पर झारखंड की राजनीति में जाना-पहचाना एक चेहरा जेहन में आता है, वह माधवलाल सिंह है. माधवलाल गोमिया विधानसभा सीट से चार बार विधायक रहे. एकीकृत बिहार और झारखंड में अपनी बेबाक टिप्पणी, सादगी और गरीब-गुरबों के प्रति सेवाभाव के चलते काफी चर्चित रहे हैं. आज चुनाव में धन-बल के बढ़ते प्रयोग से इतर चुनाव लड़ने के लिए माधवलाल सिंह को जनता पैसे देती थी. यही नहीं, उनके लिए प्रचार भी करती थी. माधवलाल आज भी क्षेत्र की जनता के बीच बने हुए हैं. वह भले ही किसी पद पर नहीं, पर सुबह से ही उनके दरवाजे पर लोग अपनी समस्याओं को लेकर आने लगते हैं. लोकसभा चुनाव को लेकर प्रभात खबर ने उनसे विभिन्न मुद्दों पर बातचीत की. पढ़ें राकेश वर्मा से माधवलाल सिंह की बातचीत के प्रमुख अंश. साल 1985 में बिहार विधानसभा का चुनाव हो रहा था. एक राष्ट्रीय पार्टी ने गोमिया से बाहुबली कैंडिडेट खड़ा किया. इस कैंडिडेट के लोगों ने प्रचार के दौरान हथियारों का जमकर प्रदर्शन किया. गोली-बम भी फोड़े. नतीजा, गोमिया की जनता भड़क गयी. तब माधवलाल सिंह राजनीति में अपना पैर जमाने में जुटे थे. गोमिया क्षेत्र की जनता उनके पास गयी और चुनाव लड़ने की जिद की. माधवलाल ने पैसे का हवाला दिया, तो बड़ी संख्या में लोग साड़ंग गांव के बजरंगबली मंदिर में जुटे और वहां हजारों रुपये रख दिये. माधवलाल सिंह ने निर्दलीय पर्चा भरा. वे पैदल ही प्रचार करते. जिधर से गुजरते, जनता उन्हें पैसे की माला पहनाकर स्वागत करती. परिणाम जीत के रूप में सामने आया. माधवलाल सिंह ने पहली बार निर्दलीय विधायक चुने गये. फिर क्या, वर्ष 1990, 2000 व 2009 में विधानसभा गये. संयुक्त बिहार के समय वह पर्यटन के अलावा श्रम नियोजन मंत्री बने. वर्ष 2000 में अलग झारखंड राज्य बनने पर परिवहन मंत्री व जहाजरानी मंत्री बने. इस दौरान श्री सिंह को झारखंड धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष का भी प्रभार दिया गया.
दाल-भात मिला तो खाए, नहीं तो चल दिये :
दशकों पहले के चुनाव प्रचार और आज के चुनाव प्रचार में काफी बदलाव आया है. माधवलाल सिंह पुराने दिनों को याद कर कहते हैं-‘आज चुनाव का तरीका बदल गया है. पहले पूंजीपति कम होते थे. हर घर से लोग पैदल क्षेत्र में घूमते और प्रत्याशी के लिए वोट मांगते थे. कहीं भात-दाल मिला तो खाए, नहीं तो चल दिये. अब तो पहले खाने की व्यवस्था करनी होती है, तब जनसंपर्क या कोई और अभियान चलता है.’ वह कहते हैं कि पहले निष्पक्ष व निर्भीक चुनाव होते थे.पहली बार जनता के पैसे से किया नाॅमिनेशन
माधवलाल सिंह ने पहली बार जनता के दबाव में चुनाव लड़ा और निर्दलीय जीते. उनके चुनाव प्रचार में जनता ने पैसे खर्च किये. नॉमिनेशन फीस 250 रुपये भी जनता ने दिये थे. माधवलाल जिस गांव से गुजरते, वहां के लोग पांच-दस रुपये कर पैसे देते चले जाते थे. आज धन-बल का चलन है. तब लोग चुनाव लड़ने के लिए पैसे देते थे, अब खुद नेता देते हैं. प्रचार के दौरान आरोप-प्रत्यारोप नहीं चलता था. आज ईमानदारी की बात नहीं होती है. माधवलाल चार बार विधायक बने, लेकिन खुद के पैसे की कभी जरूरत नहीं पड़ी. वह कहते हैं-‘सभी की संपत्ति की जांच होनी चाहिए. झारखंड का और विकास होना चाहिए. इसके लिए ईमानदार कोशिश की जरूरत है.’‘बेटे की कसम’ पर विस में अचंभित रहे गये थे सदस्य
माधवलाल सिंह जनहित और राज्य के विकास के मुद्दों पर हमेशा मुखर रहे हैं. उन्होंने एकबार झारखंड विधानसभा में राज्यहित में कहा था कि सभी लोग अपने-अपने बेटे की कसम खाएं कि झारखंड को स्वर्ग बनायेंगे. कहा था कि राज्यहित में अभी और काम करने की जरूरत है. इसके लिए सभी को आगे आना होगा.पहले पटना, अब रांची में बनाने लगे हैं घर
माधवलाल सिंह कहते हैं कि एकीकृत बिहार में गलत काम करनेवाले अधिकांश अधिकारी पटना में घर बनाते थे, अब रांची में बनाते हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि योजनाओं के काम की समीक्षा क्यों नहीं ग्राउंड स्तर पर होती है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है