साल-दर-साल बढ़ रही कोयले की मांग, देश को सालाना करीब 1300 मिलियन टन की होगी जरूरत

इंवायरमेंटल क्लीयरेंस, फॉरेस्ट क्लीयरेंस व कंसेंट टू ऑपरेट के चलते खदानों के विस्तार में बाधा आ रही है जिसका नतीजा प्रोडक्शन पर पड़ रहा.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 7, 2024 8:02 PM

बेरमो (बोकारो), राकेश वर्मा : इंवायरमेंटल क्लीयरेंस (इसी), फॉरेस्ट क्लीयरेंस (एफसी) व कंसेंट टू ऑपरेट (सीटीओ) के कारण कोल इंडिया की विभिन्न खदानों का विस्तार बाधित है. नतीजा कोयला उत्पादन पर असर पड़ रहा है. बीते वित्त वर्ष में कोल इडिया का सालाना उत्पादन लक्ष्य 780 मिलियन टन था. इस लक्ष्य तक पहुंचने में कंपनी पीछे रह गयी. कोल इंडिया सूत्रों के अनुसार, आने वाले सालों में कोल इंडिया को सालाना करीब 1200-1300 मिलियन टन कोयला उत्पादन करना होगा.

2030 तक 300 मिलियन टन स्टील बनाने के लिए बड़े पैमाने पर करना होगा कोयला उत्पादन

दरअसल, 2030 तक 300 मिलियन टन स्टील बनाने के लिए बड़े पैमाने पर कोयले की जरूरत पड़ेगी. इतने कोयले के लिए नयी खदानों या पुरानी खदानों का विस्तार जरूरी होगा. खदानों के विस्तार में इसी, एफसी व सीटीओ का क्लीयरेंस बहुत जरूरी होता है. कई तरह के स्टैचुअरी क्लीयरेंस के लिए सरकार का सहयोग भी जरूरी है. बताते चलें कि एक नयी खदान खोलने के लिए करीब 35-40 तरह के क्लीयरेंस की जरूरत पड़ती है. फिलहाल कोयला मंत्रालय ने सभी तरह के क्लीयरेंस के लिए एक अलग सेल का गठन किया है. इसमें स्थायी अधिकारी की प्रतिनियुक्ति की गयी है, ताकि जल्द से जल्द फाइलों का निबटारा हो सके.

पावर प्लांटों और स्टील सेक्टर को जाता है कोयला

बताते चलें कि कोल इंडिया फिलहाल दो तरह का कोयला उत्पादन करता है. एक की खपत पावर प्लांटों में होती है, जबकि दूसरे की खपत देश के स्टील प्लाटों में होती है. अच्छी गुणवत्ता का कोयला स्टील प्लांटों को जाता है. देश में अच्छे कोयले का भंडार भूमिगत खदान में है, जिसके दोहन की दिशा में कोल इंडिया गंभीरता से काम कर रहा है. भूमिगत खदानों में एसडीएल, कंटीन्यूअस माइनर आदि लगाये जा रहे हैं. हाइवाल माइनिंग आ रही है. फिलहाल देश में स्टील सेक्टर को सालाना 110 मिलियन टन स्टील का उत्पादन करना है. वर्ष 2030 तक 300 मिलियन टन स्टील उत्पादन करना होगा. इसके लिए अच्छी गुणवत्ता के कोयले की जरूरत पड़ेगी.

Also Read : धनबाद : सीपीआरएमएस-एनइ सदस्यों का डेटा ऑनलाइन करने व स्मार्ट कार्ड जारी करने पर सहमति

आयात कम करने के लिए बढ़ाना होगा कोयला उत्पादन

फिलहाल कोयला मंत्रालय विदेश से होने वाले कोयले के आयात को कम करना चाहता है. अभी सालाना 200 मिलियन टन से ज्यादा कोकिंग कोल आयात किया जा रहा है. अगर हम बेरमो कोयला क्षेत्र की बात करें, तो यहां सिर्फ डीआरएंडआरडी परियोजना में 1400 मिलियन टन कोकिंग कोल का भंडार है. वहीं बीसीसीएल में भी काफी कोकिंग कोल है. ऐसे में कोल सेक्टर को जब कोकिंग कोल की जरूरत पड़ेगी, तो हो सकता है आने वाले समय में फिर से डीआरएंडआरडी को चालू करने की आवयश्यकता पड़े. हालांकि इसकी गुंजाइंश कम ही दिख रही है, क्योंकि रैनुअल (सोलर) एनर्जी व हाइड्रोजन रिनोवेशन के दौर में कोयला का लाइफ कोयला ही तय करेगा. यह समय विंड पावर, न्यूक्लीयर पावर, सोलर एनर्जी. हाइडल पावर आदि का है. ऐसे में कोयला का भविष्य आने वाले 40-50 साल तक रहने की संभावना जतायी जा रही है. मालूम हो कि दुनिया में भारत तीसरा ऐसा देश है, जहां सबसे अधिक कोल रिजर्व है. वर्तमान में कोल इंडिया हर साल 700-800 मिलियन टन कोयला उत्पादन कर रहा है.

सालाना 135 मिलियन तक पहुंचेगा सीसीएल का उत्पादन

आने वाले 2-3 साल के अंदर सीसीएल सालाना 135 मिलियन टन उत्पादन तक पहुंच जायेगा. सीसीएल की मगध, आम्रपाली, संघमित्रा व चंद्रगुप्त परियोजना को एमडीओ से चलाना फाइनल हो चुका है. टोरी रेलवे लाइन भी बन गयी है. बेरमो का कोनार और कारो मेगा प्रोजेक्ट भी तैयार है.

Also Read : बोकारो के बीएंडके एरिया में डेढ़ दशक में 50 लाख टन से ज्यादा बढ़ा कोयला उत्पादन, पहले थीं नौ खदानें, अब हैं मात्र तीन

Next Article

Exit mobile version