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BOKARO NEWS : ढोरी माता पर भक्तों को है अटूट विश्वास

BOKARO NEWS : ढोरी माता का वार्षिकोत्सव समारोह 18 अक्टूबर को झंडोत्तोलन के साथ शुरू हुआ. शनिवार की शाम चार बजे भव्य शोभा यात्रा निकाली जायेगी.

बेरमो . जारंगडीह स्थित ढोरी माता तीर्थालय आस्था का प्रमुख केंद्र है. यहां देश के विभिन्न भागों से विभिन्न धर्म के लोग आते हैं. कोयलांचल के श्रमिकों का माता पर अटूट विश्वास है. उनका मानना है कि ढोरी माता उन्हें सुरक्षा प्रदान करती हैं. प्रत्येक वर्ष अक्टूबर माह के अंतिम शनिवार तथा रविवार को ढोरी माता तीर्थालय में वार्षिकोत्सव मनाया जाता है. इसमें भाग लेने के लिए झारखंड, बिहार, प बंगाल, ओडि़सा, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, चैन्नई, बंगलोर, केरल, उत्तरप्रदेश सहित कई राज्यों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. विदेश से भी ईसाई धर्मावलंबी आते हैं. राज्य के विभिन्न जिलों से कई श्रद्धालु पैदल यात्रा कर यहां आते हैं ओर माता मरियम के चरणों में मत्था टेकते हैं. ढोरी तीन नंबर खदान में मिली थी प्रतिमा जानकारी के अनुसार बेरमो कोयलांचल में ढोरी कोलियरी (कोयला खदान) पहले पदमा राजा के पुत्र कामख्या नारायण सिंह के अधीन थी. ढोरी तीन नंबर खदान में रूपा सतनामी नामक एक मजदूर को ढोरी माता की प्रतिमा मिली थी. 12 जून 1956 की सुबह मजदूरों के साथ वह कोयला काट रहा था. वह लगातार गैंता चला रहा था. तभी गैंता धीरे चलाओ, मैं यहां उपस्थित हूं की आवाज तीन बार सुनायी दी. भ्रम मान कर वह पुन: गैंता चलाने लगा तो एक प्रतिमा दिखायी दी. इसका एक हाथ गैंता के प्रहार से टूट गया था. रूपा ने इसकी जानकारी अन्य मजदूरों को दी. यह प्रतिमा मां काली की तरह दिखी. उन्होंने प्रतिमा को ढोरी स्थित मजदूरों के कार्यालय में लाकर स्थापित कर दिया. धीरे-धीरे प्रतिमा मिलने की खबर फैल गयी और उच्चाधिकारियों को भी इसकी जानकारी दी गयी. जिस जगह प्रतिमा मिली थी, उसे मंदिर का रूप दे दिया गया. ढोरी के तत्कालीन खान प्रबंधक, जो ईसाई थे, उन्हें भी इसका पता चला. प्रतिमा देखने के बाद उन्होंने पाया कि यह प्रतिमा माता मरियम की है. प्रबंधन ने इसकी सूचना बोकारो थर्मल के खिस्तीय पुरोहित को दी. पुरोहित अल्बर्ट भरभराकन ने इस प्रतिमा को देखा और अन्य ख्रिस्तीय विश्वासियों को दी. एक दिन उक्त प्रतिमा को जारंगडीह लाया गया. प्रतिमा के साथ काफी संख्या में भक्त पैदल वहां पहुंचे. जारंगडीह में लाने के बाद फादर अल्बर्ट ने ख्रिस्त भोग चढ़ाया और माता मरियम को ढोरी की माता व श्रमिकों की माता तथा संरक्षक माना. इस छोटे से समारोह के बाद प्रतिमा को जारंगडीह में स्थापित कर दिया गया. इसे बाद में गिरिजाघर का रूप दे दिया गया. वर्ष 1965-67 के बीच इस प्रतिमा को परीक्षण व शोध के लिए पुणे एवं मुंबई ले जाया गया. जहां शोधकर्ताओं ने पाया कि कटहल की लकड़ी से बनी यह प्रतिमा सैकड़ों वर्ष पुरानी है. मामले की जानकारी रांची महाधर्म प्रांत के तत्कालीन आर्च विशप पीयूष करकेट्टा को मिली तो उन्होंने प्रतिमा को अपने पास विशप हाउस मंगवाया. वर्ष 1964 में संत पॉल (छठा) के भारत आगमन पर जारंगडीह के ख्रिस्त सदस्य प्रतिमा को मुंबई ले गये. जहां संत पॉल ने प्रतिमा का दर्शन किया. 1970 में डाल्टेनगंज धर्मप्रांत के प्रथम विशप जार्ज सोपेन ने ढोरी माता की उपस्थिति तथा सभी तत्थों से अवगत होकर ढोरी माता को पूरे डाल्टेनगंज धर्मप्रांत की संरक्षिका घोषित किया. इस परंपरा को द्वितीय विशप चार्ल्स सोरेन ने भी बनाये रखा. 18 अक्टूबर से चल रहा है समारोह ढोरी माता का वार्षिकोत्सव समारोह 18 अक्टूबर को झंडोत्तोलन के साथ शुरू हुआ. रोजाना मिस्सा पूजा, नोविनो प्रार्थना, प्रतिमा दर्शन, पाप स्वीकार आदि कार्यक्रम हो रहा है. शनिवार की शाम चार बजे भव्य शोभा यात्रा निकाली जायेगी. इसी दिन माता मरियम के आदर मेंमिस्सा पूजा व प्रतिमा दर्शन होगा. रविवार को दिन 10 बजे से समारोही मिस्सा पूजा के साथ वार्षिकोत्सव समारोह का समापन होगा. वार्षिकोत्सव समारोह के समारोही मिस्सा पूजा में मुख्य अतिथि (मुख्य याजक) विंसेंट आइन्द रांची महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष तथा विशिष्ट अतिथि आनंद जोजो डीडी हजारीबाग धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष होंगे. समारोही मिस्सा पूजा को लेकर ढोरी माता तीर्थालय से सटे मैदान में भव्य पंडाल बनाया गया है. श्रद्धालुओं का जुटान शुरू वार्षिकोत्सव समारोह को लेकर श्रद्धालुओं का जुटान शुरू हो गया है. तीर्थालय प्रबंध समिति उनके ठहरने की व्यवस्था में लगी है. तीर्थालय को सजाया गया है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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