झारखंड : जिनकी जमीन पर डैम बना वे ही हैं प्यासे, जान जोखिम में डालकर पानी लाने को मजबूर हैं इस गांव की महिलाएं

रेलवे फाटक के निचले हिस्से में बना गरगा डैम से पानी लाने के लिए दर्जनों महिलाएं हर दिन जान जोखिम में डालती हैं. करीब 10-15 फुट नीचे उतरने के लिए पथरीला रास्ता है, जो खतरे से भरा है. इस रास्ते से गुजर कर महिलाएं पानी लाती हैं.

By Nutan kumari | August 11, 2023 1:05 PM

बोकारो, कृपाशंकर पांडेय : बनसिमली का बाउरी टोला और मिर्धा पाडा के लोग आज भी विस्थापित होने का दंश झेल रहे हैं. देश में एक ओर जहां अमृतकाल का दौर चल रहा है. वहीं, दूसरी ओर गरगा डैम के लिए जमीन देनेवाले विस्थापितों की प्यास नहीं बुझ रही है. दोनों टोला की महिलाएं पानी के लिए रोजाना करीब एक किलोमीटर की दूरी सफर करती है. बाउरी टोला में करीब सवा सौ लोग रहते हैं, लेकिन पानी के लिए सरकारी हैंडपंप तक नहीं है. एक सरकारी कुआं है, लेकिन पानी का लेबल कम होने से लोगों को परेशानी होती है. इक्का-दुक्का घर में चापाकल अथवा कुआं है, लेकिन पानी पीने योग्य नहीं है.

जानकारी के मुताबिक रेलवे फाटक के निचले हिस्से में बना गरगा डैम से पानी लाने के लिए दर्जनों महिलाएं हर दिन जान जोखिम में डालती हैं. करीब 10-15 फुट नीचे उतरने के लिए पथरीला रास्ता है, जो खतरे से भरा है. इस रास्ते से गुजर कर महिलाएं पानी लाती हैं. बाउरी टोला के निवासियों ने बताया कि बिहार सरकार के काल में इस मोहल्ले में एक सरकारी हैंडपंप था, जिससे रोजमर्रा की जरूरतें पूरी होती थीं. लेकिन वो भी झारखंड बनने से पहले ही खराब हो गया. उसी बोरिंग में जल मीनार बनाया जा रहा था, जिससे उम्मीद जगी थी, लेकिन बाद में उसे भी अधूरा ही छोड़ दिया गया.

गरगा डैम के लिए हमारे पूर्वजों ने जमीन दी. कुछ वर्ष पूर्व गरगा डैम से हैसाबातू जलापूर्ति योजना के तहत बालीडीह, सिवनडीह से लेकर बारी को-ऑपरेटिव के कुछ क्षेत्र तक पाइप लाइन से पानी आपूर्ति शुरू की गयी, लेकिन हमारे गांव में पाइप लाइन की व्यवस्था नहीं की गयी.

– कपूरा देवी (मिर्धा टोला)

बस्ती में सरकारी हैंडपंप है, जो खराब है. घर के हैंडपंप का पानी पीने लायक नहीं है. टोला की महिलाएं और बच्चियां गरगा डैम से पानी लाने जाती हैं. गांव में स्कूल के पास एक डीप बोरिंग और टंकी है, लेकिन उससे आवश्यकता अनुसार पानी नहीं मिल पाता है.

– गीता देवी (मिर्धा टोला)

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हमारे बस्ती में एक जलमीनार बन रहा था, जो अधूरा है. मजबूरन हमें रेलवे फाटक या गरगा डैम तक जाना पड़ता है. इसके अलावा हमारे पास दूसरा विकल्प नहीं है. दो चार दिन से रेलवे फाटक के नीचे बने चबूतरे से भी पानी नहीं आ रहा है. ऐसे में डैम का पानी ही सहारा है.

– जोबा देवी

हमारे टोला की अधिकांश जमीन रेलवे क्षेत्र में गयी है. टोला में 25-30 घर हैं. हर दिन पानी के लिए जद्दोजहर करनी पड़ती है. बरसात का मौसम है, फिर भी पानी की किल्लत है. जहां से हमलोग पानी लाते हैं, वहां हर कोई जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है.

– सरस्वती देवी (बाउरी टोला)

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