झारखंड : होपन मांझी के घर रुके थे गांधीजी, बापू ने चाव से खाया था महुआ-बाजरे की रोटी और महुआ का लाठा

गोमिया के करमाटांड़ गांव में बापू का पैर पुजाई व लोटा पानी देकर स्वागत किया गया था. वहां उन्होंने होपन मांझी के घर महुआ व बाजरे की रोटी और महुआ का लाठा खाया था. दरअसल, गांधीजी को रामगढ़ में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कांग्रेस के आयोजित अधिवेशन में हिस्सा लेना था. रामगढ़ से पहले वे गोमिया पहुंचे थे.

By Jaya Bharti | October 2, 2023 12:30 PM
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बेरमो (बोकारो), राकेश वर्मा : 1934-35 में जब देश के कोने-कोने में अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे लग रहे थे. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (बापू) को रामगढ़ में किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेने जाना था. तब रामगढ़ से पहले वे बेरमो अनुमंडल के गोमिया पहुंचे थे. यहां करमाटांड़ निवासी व स्वतंत्रता सेनानी होपपन मांझी के नेतृत्व में हजारों लोगों के जत्थे ने गांधीजी को बैलगाड़ी में जुलूस की शक्ल में करमाटांड़ गांव लाया था. बापू करमाटांड़ गांव में होपन मांझी व उनक पुत्र लक्ष्मण मांझी के टूटे-फूटे खपरैल मकान में एक रात रुके थे. संताली बहुल करमाटांड़ गांव में पैर पुजाई व लोटा पानी देकर बापू का स्वागत किया गया था. दोपहर में बापू को होपन मांझी के परिजन ने खाने में महुआ व बाजरे की रोटी और महुआ का लाठा परोसा था, जिसे बाबू ने काफी चाव से खाया था. होपन मांझी व लक्ष्मण मांझी के पुस्तैनी घर के आंगन में तुलसी पीढ़ा की बापू ने पूजा भी की थी. यह तुलसी पीढ़ा आज भी है. रात भर होपन मांझी के घर पर रुकने के बाद दूसरे दिन सुबह बापू रमगढ़ के लिए रवाना हो गए थे.

गोमीटांड में हुई थी सभा

बोकारो के गोमिया प्रखंड के गोमीटांड में बापू की सभा के लिए स्थानीय ग्रामीणों ने लकडी व बांस का मंच बनाया था. इसरी, डुमरी, हजारीबाग, बेरमो, रामगढ़ आदि जगहों से हजारों की संख्या में लोग बापू को देखने व सुनने पहुंचे थे. बापू ने बांस के बने भोपू से सभा को संबोधित करते हुए लोगों से देश की आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने का आह्वान किया था. कहते हैं उस वक्त बापू के भाषण से प्रेरित होकर कई बड़े-बुर्जगों ने मांस-मदिरा का त्याग कर दिया था. लोगों में स्वदेशी अपनाने की मुहिम चल पड़ी थी. लोग खुद चरखा से सूत काटकर वस्त्र बनाने लगे थे.

1950 से 52 तक एमएलसी रहे थे होपन मांझी

होपन मांझी पर अंग्रेजी हुकूमत ने दो हजार रुपये का जुर्माना लगाया था और जुर्माना नहीं देने पर 27 जुलाई 1930 से लेकर 31 मार्च 1931 तक उन्हें हजारीबाग केंद्रीय कारा में रखा गया था. 26 जून 1972 को हजारीबाग केंद्रीय कारा के काराधीक्षक ने उन्हें स्वतंत्रता सेनानी का प्रमाण पत्र दिया था. बिहार विधानसभा गठन के बाद 1950 से लेकर 1952 तक होपन मांझी एमएलसी रहे. उनके पुत्र लक्ष्मण मांझी 1952 से लेकर 1957 तक मनोनित विधायक रहे. वर्ष 2003 में गोमिया के पूर्व विधायक माधव लाल सिंह ने होपन मांझी के नाम पर तोरणद्वार बनाया था.

बापू के सिद्धांतों व अहिंसावादी नीतियों से थे प्रेरित

गोमिया प्रखंड के करमाटांड गांव के होपन मांझी बापू के सिद्धांतों व अहिंसावादी नीतियों से काफी प्रेरित थे. उनके चार पुत्र थे. लक्ष्मण मांझी, जवाहर मांझी, देशबंधु मांझी व चंद्रशेखर मांझी. लक्ष्मण मांझी का निधन वर्ष 1990 में हुआ था. स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मण मांझी के पुत्र भगवान दास मांझी का भी निधन हो चुका है. होपन मांझी दो भाई थे. बड़े भाई का नाम बड़का मांझी था. इनके वंशज आज भी जिंदा हैं. होपन मांझी के पोते का नाम गुना राम मांझी है.

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