आधी आबादी: आसान नहीं था नीतू से डॉ. नीतू का मुकाम पाना

इस बार आधी आबादी के अंक में पढ़िए बोकारो की ऐसी ही चंद महिलाओं की कहानी उनकी जुबानी, जिन्होंने बताया कि एक महिला जब कुछ ठान लेती है तो उसे कोई भी ताकत मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकती. पेश है चीफ सब एडिटर कृष्णाकांत सिंह की रिपोर्ट...

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 23, 2022 9:24 AM

आधी आबादी: नीतू एक नाम नहीं ज़िद और संकल्प है. 24 साल खुद को तपाया तब जाकर डॉ. नीतू बनीं. हम बात कर रहे हैं बोकारो स्टील सिटी कॉलेज में बीएड की विभागाध्यक्ष डॉ. नीतू की. बचपन में अन्य लड़कियों की तरह गुड़ियों से खेलने की जगह किताब के प्रति जुनून ही था कि वे दूसरों से अलग थी. शायद यहीं से जीवन की नींव पड़ चुकी थी. जो आगे चलकर दिशा बदल गयी. पिता की राह पर चलते हुए शिक्षा को समाज की सेवा का माध्यम बनाया. वे मूल रूप से पतरातू के रहनेवाले डॉ. सी साहू और राजेश्वरी देवी की पुत्री हैं. डॉ साहू बिनोवा भावे विश्वविद्यालय के एंथ्रोपोलॉजी के विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए हैं.

2022 में नीतू बनी डॉक्टर

बकौल डॉ. नीतू ने गिरिडीह से 1998 में मैट्रिक, 2000 में इंटर, संत कोलंबस कॉलेज हजारीबाग से 2003 में स्नातक, 2007 में स्नातकोत्तर और उसी कॉलेज से 2008 में बीएड की पढ़ाई पूरी की. आइआइटी-आइएसएम धनबाद से 2009 में एमफिल करने के बाद बीआईटी मेसरा से जूनियर रिसर्च फेलोशिप पूरा किया. इतना कुछ करने के बाद भी रुकी नहीं. पढ़ाई का दौर जारी रखा. इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी से एमएड किया. इसके बाद 2014 में नेट क्वालीफाई किया और अंतत: 2022 में पीएचडी कर नीतू से डॉक्टर नीतू बन गयीं. उनके पति पंकज कुमार चंद्रपुरा डीवीसी में बतौर मैनेजर कार्यरत हैं. पुत्री भूमि प्रिया डीपीएस बोकारो में कक्षा चार की छात्रा है. वे बताती हैं कि शिक्षा समाज में रहनेवाले हर व्यक्ति का अधिकार है. जिसके पास शिक्षा नहीं है उसे अधिकार पाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है.

डिग्रियां हासिल करने के बाद भी शिक्षा के प्रति भूख

डॉ. नीतू कहती हैं कि होश संभालने के बाद अपने आसपास शिक्षा का ऐसा एक मजबूत आवरण देखा, जिससे तय कर लिया कि शिक्षा ही वो कुंजी है. जिससे हर समस्या का समाधान संभव है. प्रथम गुरु के रूप में अपने पिता को पाया, जिन्होंन मुझे हमेशा बताया कि शिक्षा ही वह सीढ़ी है जिस पर चढ़ कर अपना मुकद्दर संवार सकती हो. इतनी डिग्रियां हासिल करने के बाद भी मेरी भूख शिक्षा के प्रति बनी हुई है. भौतिकी के क्षेत्र में लगातार रिसर्च कर रही हूं. मेरा रिसर्च केवल किताबों में सिमट जाना है नहीं होगा.

समाज को कैसे मिलेगा रिसर्च का लाभ पर केंद्रित

उसे रिसर्च का लाभ समाज को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कैसे मिलेगा, इस पर केंद्रित होगा. आज की बात करें तो 100 विद्यार्थियों में से 40 विद्यार्थी ही गुणवत्ता युक्त शिक्षक बन पाने में सक्षम होते हैं. हमें शिक्षकों की संख्या बढ़ाने के लिए अपने संकल्प व जिद को मजबूत करने की जरूरत है, ताकि बेहतर भविष्य व समाज का निर्माण किया जा सके. यह पूछे जाने पर कि पहले और आज की शिक्षा व्यवस्था में क्या बदलाव देखती हैं? इस पर कहा कि आज की युवा पीढ़ी तकनीक के मामले में काफी आगे है. आज डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कई सारी चीजें उपलब्ध है़ं उनका सहारा लेकर भी आप काफी कुछ सीख सकते हैं़ इन सबके बावजूद मेहनत से ही सफलता मिलेगी. शॉर्टकर्ट से कुछ नहीं हो सकता है .

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