Jharkhand News (उमेश सिंह, झरिया, धनबाद) : जिस कोयले ने धनबाद को आबाद किया, बाद में वही कोयला उसकी वीरानी का भी कारण बना. कोई 30 साल हो गये. स्थिति उलट होती गयी. झरिया अब भी है. लोग अब भी हैं. लेकिन, अब वो बात नहीं. झरिया अपनी चमक खोती जा रही है.
झरिया का लाल बाजार. कभी यह पॉश इलाका हुआ करता था, पर आज उदास है. जैसे कतरास मोड़ की कोयला मंडी आज भी पूरे देश में मानी जाती है. उसी तरह किसी जमाने में लाल बाजार मुहल्ला व्यवसायियों के केंद्र के रूप में जाना जाता था. आज यह मुहल्ला पूरी तरह से सिमट कर रह गया है.
लोग कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के पहले के दिनों की याद करते हैं. जब झरिया के लाल बाजार में कोलियरी मालिकों के दफ्तर एवं खाद्यान्न मंडी हुआ करती थी. कोलियरी मालिक अर्जुन अग्रवाल, बनवारी लाल अग्रवाल, प्रभु दयाल अग्रवाल, मदनलाल अग्रवाल के ऑफिस यहीं हुआ करते थे. कोलियरी मालिकों की गाड़ियां इस मुहल्ले में लाइन से लगी रहती थी.
वहीं, दूसरी ओर खाद्यान्न के लिए लाल बाजार पूरे जिले में प्रसिद्ध था. लाल बाजार मुहल्ला से सटे दालपट्टी, राज हॉस्पिटल रोड मुहल्ले में भी व्यापक पैमाने पर खाद्यान्न, खाद्य तेल आदि का व्यवसाय होता रहा है. करीब 35 वर्षों तक लाल बाजार एवं इससे सटे इलाके व्यापार के लिए धनबाद जिले के अलावा चास, बोकारो, गिरिडीह, हजारीबाग व कोडरमा तक के केंद्र हुआ करते थे. उन दिनों खाद्यान्न, खाद्य तेल आदि के लिए जितने भी पुराने व्यवसायिक फार्म व्यापार में संलिप्त थे. सभी आज प्राय: खत्म हो चुके हैं.
बताया जाता है कि लाल बाजार उस जमाने में धन्ना सेठों के मुहल्ले के रूप में जाना जाता था. कोलियरी मालिकों के कार्यालय, खाद्यान्न व गल्ला मंडी होने के कारण मुहल्ला रात करीब एक बजे तक गुलजार रहता था. अब स्थिति यह है कि पूरा क्षेत्र सुनसान पड़ा हुआ है. कई व्यवसायियों के मकान खाली पड़े हुए हैं. वहीं, कई मकानों में अब उनके रिश्तेदार रहते हैं.
पहले झरिया का लाल बाजार क्षेत्र थोक विक्रेता खाद्य तेल एवं किराना के सामानों के लिए प्रसिद्ध थे, जो अब करीब बंद हो चुके हैं. इसके संचालकों की नयी अलग-अलग व्यावसायिक फॉर्मो के नाम से बरवाअड्डा कृषि बाजार प्रांगण में आज व्यवसाय कर रही है. कई रायपुर, दिल्ली सहित कई शहरों में अलग-अलग व्यवसाय-धंधे में आज अच्छा-खासा नाम कमा रहे हैं.
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इस मामले में वर्ष 1971-72 में कोलियरियों का राष्ट्रीयकरण होने के बाद कोलियरी मालिकों का ऑफिस पूरी तरह से बंद हो गया. लाल बाजार तथा आसपास के मुहल्ले आज इस दौर में सिर्फ नाम के रह गये हैं. वर्ष 1992 में जब यहां का थोक व्यवसाय बरवाअड्डा स्थित कृषि बाजार में ट्रांसफर हो गया, तो पूरे बाजार की रौनक ही खत्म हो गयी. व्यवसायियों की युवा पीढ़ी भी बाहर जाकर ही व्यवसाय करने में रुचि रखती है.
Posted By: Samir Ranjan.