Bokaro News: बात शहर के लोगों की हो या गांव के लोगों की, जीवनचर्या में बदलाव लगभग जगहों में हो चुका है. अब तो स्थिति ऐसी होती जा रही है कि कम उम्र में ही लोग गंभीर और असाध्य बीमारियों से ग्रसित होते जा रहे हैं. पर ऐसी स्थिति के बीच बोकारो जिले का ऐसा गांव हैं, जहां के लोगों को न तो किसी तरह की गंभीर बीमारी है और न ही असाध्य. ऐसा दावा खुद ग्रामीण करते हैं.
बोकारो जिला के जरीडीह प्रखंड का एक गांव है तीरोटोला बांधटांड़. यह गांव 500 लोगों का है. यहां का ज्यादातर परिवार प्रजापति समाज से है. यही वह गांव है जो अब भी शराब से दूर है. गांव के लोगों की माने तो इस गांव में किसी ने आज तक शराब को हाथ नहीं लगाया है. ग्रामीणों के मुताबिक गांव के लोग शुरू से ही शराब से दूर रहे हैं. गांव का माहौल ही ऐसा है कि कभी किसी ने नशा करने की नहीं सोची. बाहर जाकर काम करनेवाले भी इस बात को जानते और मानते हैं.
शराब का सेवन नहीं करने का सबसे अच्छा परिणाम स्वास्थ्य के क्षेत्र में हुआ है. गांव में कोई भी बीमार नहीं है. 75 वर्षीय एक महिला लकवाग्रस्त है. कुछ बुजुर्गों में उम्र संबंधित समस्या जैसे कम सुनायी व दिखाई देनेवाली समस्या है, लेकिन कोई गंभीर बीमारी से पीड़ित नहीं है. यहां तक कि कोई रक्तचाप व मधुमेह की समस्या से भी ग्रसित नहीं हैं. ग्रामीणों के दावे के मुताबिक जब कोरोना काल में दुनिया ठहर सी गयी थी. लोग लगातार कोरोना से ग्रसित हो रहे थे उस समय कोई भी ग्रामीण कोरोना से संक्रमित नहीं हुआ था.
पीडीएस दुकानदार छोटू महतो बताते हैं कि जीविकोपार्जन के लिए यह गांव खेती पर निर्भर है. गांव के कुछ परिवार बाहर जाकर मजदूरी करते हैं. बात जब खेती की होती है, तब यहां लोग जैविक खेती पर जोर देते हैं. ग्रामीण पारंपरिक खेती (धान व गेंहू) के अलावा लोग हल्दी, अदरक, सब्जी का उत्पादन करते हैं. खेती के लिए रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद का इस्तेमाल किया जाता है. मवेशी के गोबर से खाद बनाया जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि जैविक खेती से उत्पादन अच्छा होता है. साथ ही साथ लागत भी कम होता है.
गांव में साल 2015 से एकल अभियान का विद्यालय संचालित है. 30 बच्चों को पांचवीं तक की नि:शुल्क शिक्षा दी जाती है. साथ ही बच्चों के अभिभावकों को स्वावलंबी बनाने की दिशा में भी प्रयास किया जा रहा है. गांव में जैविक खेती के तहत हल्दी की खेती की शुरुआत एकल अभियान के प्रयास से ही हुई थी. जो दिन ब दिन बढ़ी ही जा रही है.
चास कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई कर रहे गांव के युवा अक्षय कुमार कहते हैं कि शराब से दूरी की शिक्षा बुजुर्गों से मिली है. सिर्फ खुद नहीं, बल्कि फ्रेंड सर्किल में शामिल तमाम दोस्तों को भी शराब से दूर रहने की सीख देता हूं. इसका असर भी होता है. सर्किल में सभी नशामुक्त हैं. वहीं ग्रामीण धनीलाल महतो कहते हैं कि बुजुर्ग सीखा कर गये हैं, नशा से दूर रहना. साथ ही जिम्मेदारी भी मिली है कि भावी पीढ़ी को शराब से दूर रखना. इसी का पालन कर रहा हूं. फायदा यह कि अभी तक कोई रोग छू भी नहीं पाया है. एकल विद्यालय की आचार्या अनिता देवी बताती हैं कि शराब मुक्त समाज का मतलब संस्कार युक्त समाज होता है. इसका फायदा यह है कि गांव शांत है. हो-हंगामा से दूर है. विद्यालय में बच्चों को शिक्षा तो दी ही जाती है. जिम्मेदार नागरिक कैसे बनें, इस बात पर भी ध्यान दिया जाता है.
रिपोर्ट : सीपी सिंह, बोकारो