लोहा तस्करों का चारागाह बना कथारा सीपीपी, गैस कटर से हजारों टन काटे गये प्लांट के लोहे के स्ट्रक्चर

सीसीएल प्रबंधन के अलावा क्षेत्रीय सुरक्षा विभाग की आंखों के सामने आज भी बचे हुए लोहा की चोरों हो रही है. लोहा चोरों के लिए कथारा सीपीसी चारागाह बना हुआ है.

By Mithilesh Jha | March 10, 2024 9:55 PM

राकेश वर्मा, बेरमो : कभी अपनी उत्पादित बिजली से पूरे कथारा एरिया को रौशन करने वाला सीपीपी (कैप्टिव पावर प्लांट) खंडहर में तब्दील हो गया है. सीसीएल के कथारा एरिया में करोड़ों की लागत से बने इस प्लांट के बंद होने के बाद लोहा तस्करों की इस पर नजर पड़ी और सभी कीमती उपकरणों सहित लोहा के पार्ट्स-पुर्जे निकाल कर ले गये. इसमें बेरमो से बाहर के भी कई लोहा तस्कर शामिल थे.

क्षेत्रीय सुरक्षा विभाग की आंखों के सामने से लोहा की हो रही चोरी

स्थानीय प्रशासन, सीसीएल प्रबंधन के अलावा क्षेत्रीय सुरक्षा विभाग की आंखों के सामने आज भी बचे हुए लोहा की चोरों हो रही है. लोहा चोरों के लिए कथारा सीपीसी चारागाह बना हुआ है. रोजाना सैकड़ों टन लोहे की चोरी हो रही है. आश्चर्य की बात है कि इस बंद प्लांट की देखरेख में एक भी सिक्यूरिटी गार्ड तक नहीं है.

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दर्जनों सिक्यूरिटी गार्ड करते थे काम

इम्पेरियल फास्टनर्स पावर लिमिटेड कंपनी जब इस प्लांट को चला रही थी तो दर्जनों प्राइवेट सिक्यूरिटी गार्डों को रखा हुआ था. वर्ष 2018 में कंपनी के अचानक चले जाने के बाद प्लांट को राम भरोसे छोड़ दिया गया. इस प्लांट के बंद होने के बाद जहां सीसीएल को प्रतिमाह लाखों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा. इस प्लांट में कार्यरत सैकड़ों मजदूर बेरोजगार हो गये. जिस वक्त यह प्लांट रनिंग स्टेज में था, उस वक्त दो यूनिटों से 20 मेगावाट बिजली उत्पादन किया जा रहा था.

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प्रति माह कंपनी ने किया 32 लाख रुपए का भुगतान

बीएचइएल कंपनी ने करीब 125 करोड़ रुपये के लागत से इस प्लांट का निर्माण कर वर्ष 1995 में सीसीएल प्रबंधन को सौंप दिया था. सीसीएल के देखरेख में लगभग दस वर्षों तक किसी तरह प्लांट चला. इसके बाद 14 अक्टूबर 2005 में 20 वर्षों के लिए दिल्ली की इम्पेरियल फास्टनर्स पावर लिमिटेड नामक कंपनी (पावर डिवीजन) का ओएंडएम कांट्रेक्ट हुआ और प्लांट कंपनी चलाने लगी. कंपनी ने प्रतिमाह 32 लाख रुपया सीसीएल को भुगतान किया.

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इन कारणों से कंपनी ने बंद कर दिया प्लांट

अचानक मार्च 2018 में जीएसटी राशि का अतिरिक्त भार बढ़ जाने और कोयला की दरों में वृद्धि का कारण बताते हुए उक्त कंपनी ने इस प्लांट को बंद कर दिया. इससे तीन सौ मजदूरों के अलावा 50 अधिकारी, इंजीनियर, मेकेनिकल, ऑफिस में कार्यरत कर्मचारी काम से बैठ गये. सभी मजदूरों व अधिकारियों का करीब तीन-चार माह के वेतन का भुगतान भी कंपनी ने नहीं किया.

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बकाया वेतन भुगतान की मांग को लेकर मजदूरों ने लेबर कमिश्नर के अलावा कई नेताओं के पास गुहार लगायी. एरिया स्तर पर दर्जनों बार आंदोलन किया. कुछ लोगों ने पीएमओ तक पत्राचार किया. स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि प्लांट बंद होने के बाद कंपनी के मालिक के पुत्र एक बार आये थे तथा सभी मजदूरों के साथ वार्ता की. कहा कि कंपनी की स्थिति ठीक नहीं है, धीरे-धीरे कर बकाया वेतन का भुगतान कर दिया जायेगा. प्लांट चलाने में मदद करें. लेकिन उनके यहां से जाने के बाद फिर कंपनी का कोई अधिकारी प्लांट को देखने नहीं आया.

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क्या-क्या खत्म हो गया सीपीपी का

कीमती उपकरण लोहा तस्करों के हत्थे चढ़ जाने के कारण अब सिर्फ प्लांट का खोखला ढांचा ही रह गया है. पावर प्लांट में लगे बॉयलर, टरबाइन, कोल हैडलिंग प्लांट, इलेक्ट्रिकल डिपार्टमेंट, प्लांट का अपना सब स्टेशन, 10 केवीए के चार ट्रांसर्फामर, आठ केवीए के तीन ट्रांसफार्मर, केबुल के अलावा लोहे के कई सामान पूरी तरह से खत्म हो गये. कंपनी के 12 डंपर, टीन ट्रैक्टर, दो पोकलेन, दो पेलोडर, एक कार तथा एक एंबुलेंस थे. इन सभी वाहनों के भी पार्ट्स-पुर्जें गायब हो गये. कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि प्लांट के बंद होने के बाद अचानक एक दिन प्लांट में आग लगी थी. कई दमकल वाहनों की मदद से आग पर काबू पाया गया था.

प्लांट का अपना प्रशासनिक भवन व जीएम कार्यालय भी था

प्लांट परिसर में प्रशासनिक भवन व जीएम कार्यालय भी था. 300 से ज्यादा मजदूरों के अलावा दर्जनों मैकेनिकल इंजीनियर व अधिकारी कार्यरत थे. यहां काम करने वाले एक मैकेनिकल इंजीनियर का कहना है कि उन सभी का तीन-चार माह का वेतन कंपनी ने नहीं दिया. पीएफ रोक दिया. 12 साल का ग्रेच्युटी भुगतान नहीं किया गया. इस प्लांट में कोल यार्ड, टरबाइन व बॉयलर चलाने के लिए कुछ लोग रोजाना लेबर सप्लाई भी करते थे. इन मजदूरों की भी तीन-चार का माह की मजदूरी बकाया है. रिजेक्ट कोल की ट्रांसपोर्टिंग करने वाले ठेकेदार का भी लाखों रुपया बकाया है.

सीपीपी डीवीसी को देता था बिजली

सीपीपी से उत्पादित बिजली बगल के ही डीवीसी के बीटीपीएस को दिया जाता था. चुकि: कंपनी का कांट्रेक्ट सीसीएल से था, इसलिए कथारा एरिया डीवीसी से जो बिजली लेता था, उसमें इस राशि को घटा दिया जाता था. सूत्रों के अनुसार उक्त कंपनी पावर प्लांट को चलाने के लिए प्रतिमाह करीब एक करोड़ रुपये का रिजेक्ट कोल सीसीएल से लेता था. जबकि प्लांट के हर माह का बजट 1.5 करोड़ तक का था. पहले उत्पादित बिजली को कंपनी ने 3.50 रुपये प्रति यूनिट तथा बाद में चार रुपये प्रति यूनिट की दर से बेचा.

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कंपनी को हर माह प्रोफिट भी हो रहा था. लेकिन वर्ष 2018 मार्च में जीएसटी राशि का अतिरिक्त भार बढ़ जाने एवं कोयला की दरों में वृद्धि को कारण बताते हुए कंपनी ने इस प्लांट को बंद कर दिया. जब प्लांट रनिंग स्टेज में था तो यहां से उत्सर्जित छाई को भी सीसीएल के बंद खदानों में डंप किया जाती थी, जिसके एवज में भी कंपनी को सीसीएल हर माह भुगतान करती थी. दूसरी ओर सुचारू रूप से बिजली नहीं मिलने पर सीसीएल कंपनी पर पेनॉल्टी भी लगाता था.

21 मार्च 2020 को कंपनी ने सीसीएल के डीटी को लिखा था पत्र

21 मार्च 2020 को कंपनी के डायरेक्टर संजीव सागर एवं राजीव सागर ने सीसीएल के डीटी को पत्र लिखा था. इसमें सीपीपी के साथ कंपनी के ओएंडएम कांट्रेक्ट को सरेंडर करने की बात कही थी.

गैस कटर से हजारों टन काटे गये प्लांट के लोहे के स्ट्रक्चर

जानकारी के अनुसार, प्लांट के बंद होने के बाद शुरुआती दौर में सबसे पहले प्लांट के सारे कीमती पार्ट्स-पुर्जे खोल लिये गये. इसके बाद तस्कर गैस कटर आदि से प्लांट के भारी-भारी लोहे का स्ट्रक्चर काट कर ट्रैक्टर व अन्य वाहनों से ले जाते हैं. प्लांट से सटे दामोदर नदी के पार भी लोहा ले जाया जाता है.

सीसीएल को आज तक नहीं किया गया प्लांट हैंड ओवर

सीसीएल प्रबंधन के अनुसार, वर्ष 2018 में अचानक इम्पेरियल फास्टनर्स पावर लिमिटेड कंपनी प्लांट को बंद कर चली गयी. आज तक कंपनी ने सीसीएल को प्लांट हैंड ओवर नहीं किया. जानकारी के अनुसार सीसीएल ने न्यायालय में कंपनी पर रिजेक्ट कोल का करोड़ों रुपया बकाया रखने संबंधी दावा ठोका है. सीसीएल प्रबंधन के अनुसार फिलहाल न्यायालय में यह मामला आरिबेटशन में है. कंपनी द्वारा प्लांट को हैंड ओवर नहीं किये जाने के कारण सीसीएल ने इस प्लांट की देखरेख से अपने आपको अलग कर लिया.

इम्पेरियल फास्टनर्स पावर लिमिटेड कंपनी को सीसीएल ने प्लांट हैंड ओवर कर दिया था. फिलहाल सीपीपी उक्त कंपनी के स्वामित्व में है.

दिनेश गुप्ता, महाप्रबंधक, सीसीएल कथारा एरिया

2018 तक कंपनी ने सीसीएल से लीज पर लेकर प्लांट को चलाया. इसके बाद अचानक प्लांट बंद कर चली गयी और सीसीएल को हैंड ओवर नहीं किया. न्यायालय में मामला आरबिटरेशन में है.

विपिन कुमार, एसओ (इएंडएम), सीसीएल कथारा एरिया

प्लांट से लगातार लोहा चोरी किया जा रहा है. पिछले छह माह में हमने छापामारी अभियान में 50 टन से ज्यादा अवैध लोहा जब्त किया है. लोहा ले जा रहे दो टेंपो व एक ट्रैक्टर को भी जब्त किया. आधा दर्जन लोगों को भी गिरफ्तार किया. चुकि: प्लांट निजी कंपनी के स्वामित्व में है, इसलिए हमलोग प्लांट परिसर के अंदर प्रवेश कर लोहा चोरी नहीं रोक सकते.

एसके गुप्ता, क्षेत्रीय सुरक्षा पदाधिकारी, सीसीएल कथारा एरिया

सीपीपी से रोजाना हो रही लोहा चोरी का मामला संज्ञान में है. वरीय पदाधिकारियों से मिले निर्देश के तहत समय-समय पर छापामारी अभियान चलाया जाता है. इस मामले में पहले भी कई केस दर्ज हुए हैं.

जितेश कुमार, प्रभारी, कथारा ओपी

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