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पिछड़ों के हक के लिए लालचंद करते रहे संघर्ष

पिछड़ों के हक के लिए लालचंद करते रहे संघर्ष

गांधीनगर. सूबे के प्रथम ऊर्जा मंत्री लालचंद महतो का जीवन संघर्षों से भरा रहा. वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य बना और राज्य के प्रथम ऊर्जा मंत्री बने, उस वक्त से ही पिछड़ों के अधिकार के लिए संघर्ष करते रहे और उनका यह संघर्ष आजीवन चलता रहा. झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के साथ पिछड़ों के आरक्षण को लेकर भी मतभेद हुआ. जब झारखंड कैबिनेट की बैठक में पिछड़ों के आरक्षण को बिहार सरकार के समय मिल रहे 27 फीसदी से घटा कर 14 फीसदी करने का प्रस्ताव लाया गया लालचंद महतो ने इसका खुलकर विरोध किया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री ने कैबिनेट में इस प्रस्ताव को पास करवा लिया तो लालचंद महतो के नेतृत्व में उस वक्त के तत्कालीन मंत्री मधु सिंह, रामचंद्र केसरी, जलेश्वर महतो सहित कई और नेताओं ने पिछड़ों का आरक्षण बढ़ाने के समर्थन में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने की पेशकश कर दी. तब तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को झारखंड आना पड़ा और उन्होंने लालचंद महतो से इस संबंध में बात की. इन्होंने श्री मरांडी को मुख्यमंत्री के पद से हटाने का प्रस्ताव रखाऔर अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाने के बात कही. ठसके बाद अर्जुन मुंडा झारखंड के मुख्यमंत्री बने थे. पूर्व मंत्री स्व महतो के मंझले भाई इंद्रदेव महतो कहते हैं कि उन्होंने झारखंड में पिछड़ों का आरक्षण 50 फीसदी से अधिक करने के लिए आजीवन संघर्ष किया. पिछड़ा वर्ग संघर्ष मोर्चा का गठन कर कई पूर्व विधायक, पूर्व मंत्री सहित राज्य के विभिन्न दलों से जुड़े पिछड़ा वर्ग के नेताओं को संगठित किया और कई आंदोलन भी किया. इसी का परिणाम था कि पिछड़ों का आरक्षण झारखंड में बढ़ाने का प्रस्ताव आया. लालचंद महतो के मंत्री रहते हुआ था झारखंड राज्य विद्युत निगम का गठन लालचंद महतो के ऊर्जा मंत्री रहते झारखंड राज्य विद्युत निगम का गठन हुआ था तथा झारखंड के सभी सात हजार गांवों का विद्युतीकरण कराने का कार्य भी शुरू हुआ. उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र डुमरी के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बिजली पहुंचाने का काम किया था. प्रसिद्ध शक्तिपीठ रजरप्पा मंदिर में भी इन्हीं के कार्यकाल में बिजली पहुंची थी. लालचंद महतो मजदूर राजनीति में भी हमेशा सक्रिय रहते थे. हिंद मजदूर किसान यूनियन के केंद्रीय अध्यक्ष होने के नाते कोयला मजदूरों के हितों की आवाज बेबाक तरीके से उठाते थे. डीवीसी के मजदूरों के हक के लिए संघर्ष करते रहे और डीवीसी में सप्लाई व स्थाई मजदूरों को कई अधिकार दिलाया था.

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