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सदाचार से जीवन को धार्मिक बनाया जा सकता है : विकासानंद अवधूत

आनंद मार्ग प्रचारक संघ का तीन दिवसीय धर्म महासम्मेलन शुरू

बोकारो. आनंद मार्ग प्रचारक संघ का तीन दिवसीय आनंद पूर्णिमा धर्म महासम्मेलन शुक्रवार को आनंद नगर में शुरू हुआ. शुरुआत प्रभात संगीत गायन, बाबा नाम केवलम अखंड कीर्तन व सामूहिक ध्यान से हुई. गुरु प्रतिनिधि आचार्य विकासानंद अवधूत ने श्रीश्री आंनदमूर्ति के दर्शन व जीवन पर प्रवचन दिया. विकासानंद अवधूत ने कहा कि सदाचार से जीवन को धार्मिक बनाया जा सकता है. हर किसी को धार्मिक जीवन जीने की सलाह दी जाती है. धार्मिक जीवन जीने का अर्थ है, आचरण को सुधारना व उच्च आदर्शों के अनुरूप जीवन को ढालना. आचार्य ने कहा कि केवल पुस्तक अध्ययन करके या धर्मग्रंथों को रटकर कोई विद्वान या धार्मिक नहीं बन सकता. विद्या का असली उद्देश्य है, बंधनों से मुक्ति प्राप्त करना. विमुक्ति एक ऐसी अवस्था है, जहां बंधन से मुक्त होने के बाद फिर से बंधन में पड़ने की संभावना नहीं रहती. सच्ची विद्या वही है, जो इस विमुक्ति की ओर लेकर जाये. सच्चे विद्वान वही हैं, जिनका आचरण इस विद्या के अनुरूप होता है. आचार्य विकासानंद ने कहा : धर्म का मूल आधार आचरण है. अनपढ़ व्यक्ति भी आचरण के बल पर धार्मिक व महान बन सकता है, जबकि बड़े-बड़े विद्वान भी अधार्मिक हो सकते हैं. इसलिए, आचरण को सुधारना व उसे उच्च आदर्शों के अनुरूप ढालना ही धार्मिक जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है. जनसाधारण भी अपने आचरण को उच्च बना सकता है. आचार्य न कहा कि साधक का कर्तव्य आदर्शों का प्रचार करना व दूसरों को भी पवित्र बनाना है. आत्म-मोक्ष के साथ-साथ जगत का हित भी साधक का लक्ष्य होना चाहिए. केवल स्वयं को श्रेष्ठ बनाने की जगह समाज को आगे ले जाना होगा. मौके पर दर्जनों श्रद्धालु व आनंद मार्गी मौजूद थे.

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