मैथिल नव विवाहित जोड़ियों का मधुश्रावणी पर्व शुरू, 31 जुलाई को होगा समापन, जानें पूरी रस्म

मैथिल नवविवाहित जोड़ियों का प्रमुख पर्व मधुश्रावणी शुरू हो गया है. आगामी 31 जुलाई तक इस पर्व को मनाया जाएगा. नव विवाहिता मैथिल ललना अपने सुहाग की रक्षा के लिए यह पूजा करती है. मैथिल ललना के गीतों से बोकारो की फिजां इन दिनों गुंजायमान है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 21, 2022 4:39 PM

Jharkhand News: लालहि वन हम जायब, फूल लोढ़ब हे, माइ हे सिन्दुर भरल सोहाग, बलमु संग गौरी पूजब हे…, आयल हे सखि सर्व सोहाओन साओन केर महिमा, ठॉंओं कयलहुं अरिपन देलहुं, लीखल नाग-नगिनियां, लाबा भुजलहुं दूधो अनलहुं, पूजू नाग-नगिनियां… नव विवाहिता मैथिल ललना के गीतों से बोकारो की फिजां गुंजायमान है. नव विवाहित जोड़ियों के लिए सावन में दो सप्ताह तक मनाया जानेवाला प्रमुख पर्व मधुश्रावणी शुरू हो गया है.

सुहाग की रक्षा के लिए मैथिल नवविवाहिता करती है मधुश्रावणी पर्व

मिथिला क्षेत्र में सावन में नव विवाहित महिलाएं मधुश्रावणी पर्व मनाती हैं. सावन कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि से मधुश्रावणी पर्व की शुरुआत होती है. इस वर्ष मधुश्रावणी पूजन की शुरुआत 18 जुलाई से नाग पंचमी पर विधिपूर्वक शिव-पार्वती एवं नाग देवता की पूजा से हुई है. इस वर्ष मधुश्रावणी पर्व का समापन 31 जुलाई को होगा. नव विवाहिता मैथिल ललना अपने सुहाग की रक्षा के लिए यह पूजा करती है. इस दौरान उनका श्रद्धा एवं विश्वास देखते ही बनता है.

दो सप्ताह तक चलता है पर्व

लगभग दो सप्ताह तक चलनेवाले इस पर्व के लिए नवविवाहिता के ससुराल से पूजन सामग्री आती है. इस दौरान नवविवाहिता अपने ससुराल से आये अन्न, मिष्टान्न आदि भोजन के रूप में ग्रहण करती है. हर दिन संध्या बेला में नव विवाहिताएं अपनी सखियों के साथ बटगवनी गाते हुए फूल लोढ़ने (तोड़ने) जाती हैं. डाला में रंग-बिरंगे फूल और पत्ते सजाती हैं. इन्हीं फूल-पत्तों के साथ वे घर पर विधि-विधान से मधुश्रावणी की पूजा करती हैं.

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देवी गीत, नचारी आदि भक्तिगीतों के गायन से पूरा वातावरण हो जाता है गुंजायमान

मधुश्रावणी पूजन पर मैथिलानियों द्वारा भक्तिगीतों के गायन से पूरा वातावरण गुंजायमान हो जाता है. देवी गीत, नचारी आदि भक्तिगीतों का गायन विशेष रूप से होता है. जैसे- आयल हे सखि सर्व सोहाओन, साओन केर महिनमा…ठांओं कयलहुं अरिपन देलहुं, लीखल नाग-नगिनियां… बलमु संग गौरी पूजब हे, पीयर वन हम जायब फूल लोढ़ब हे… लाबा दूध देबनि छिड़ियाई, दीप जरय अहिताब केर, जुग-जुग सोहागिन रहथू पबनैतिन…

ससुराल से आयी नयी साड़ी, गहने, श्रृंगार आदि से सुसज्जित होकर करती है पूजा

मधुश्रावणी पर्व के समापन के दिन नव-विवाहिताएं ससुराल से आयी नयी साड़ी, गहने, श्रृंगार आदि के सामान से सुसज्जित होकर पूजा पर बैठती हैं. उनके साथ उनका दूल्हा भी पूजा पर बैठते हैं. टेमी दागने का विधान भी होता है. मधुश्रावणी पूजन कार्यक्रम की एक और खासियत है कि इसमें पूजा के सभी विधान महिला पंडित द्वारा ही संपादित कराए जाते हैं. समापन के दिन सगे-संबंधियों और मित्रों को विशेष पकवान खिलाए जाते हैं.

रिपोर्ट : सुनील तिवारी, बोकारो.

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